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झारखंड घोटाला कथा: चारा घोटाला की तर्ज पर हुआ कंबल घोटाला! जानिए कितने का और कैसे हुआ फर्जीवाड़ा

2014 में जब रघुवर दास की सरकार बनी, उस समय गरीबों के बीच बांटे जाने वाले कंबल की खरीद का टेंडर प्राइवेट कंपनियों को दिया जाता था. रघुवर सरकार ने ये फैसला लिया कि गरीबों के बीच बांटे जाने वाले कंबल का निर्माण झारक्राफ्ट से कराया जाए. इससे राज्य में ग्रामीण स्तर पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा. लेकिन कंबल न तो बनाए गए और न ही खरीद हुई लेकिन सरकारी राशि की बंदरबांट जरूर हो गई.

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Published : Oct 4, 2021, 6:04 AM IST

रांची: रघुवर सरकार के कार्यकाल में सखी मंडलों और बुनकर समितियों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने की योजना बनाई गई. इसके लिए झारक्राफ्ट के माध्यम से गरीबों को बांटे जाने वाले कंबल बनाने का टेंडर इन्हें देने का फैसला किया गया. इसके लिए झारक्राफ्ट को 10 लाख कंबल का ऑर्डर दिया गया, जिसका इस्तेमाल गरीबों के बीच बांटने और सरकारी काम में किया जाना था. हालांकि कुछ ही कंबल गरीबों को बांटे गए और बाकी कंबल की राशि कुछ लोग मिलकर डकार गए.

ये भी पढ़ें- झारखंड घोटाला कथा: ...तो क्या एक और पूर्व मुख्यमंत्री की जेल यात्रा की लिखी जा रही है स्क्रिप्ट

कैसे हुआ घोटाला?

सरकार ने झारक्राफ्ट को 10 लाख कंबल का ऑर्डर दिया था. इसके लिए 25 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया. लेकिन सखी मंडल और बुनकरों से कंबल बनावाने के बदले हरियाणा से कंबल खरीद दिखाकर सरकारी धन की बंदरबांट कर ली गई. मई 2016 से दिसंबर 2017 के बीच इस मद में पड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है.

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कैसे हुआ कंबर घोटाला

ये भी पढ़ें- झारखंड घोटाला कथा: बिना कोई काम हुए खर्च हो गए 21 करोड़, सच क्या है खंगाल रही ACB

कैसे हुआ खुलासा

झारक्राफ्ट ने 2016-2018 के बीच 633 हस्तकरघे की खरीद दिखाई. इसपर दो करोड़ दो लाख रुपए खर्च भी दिखाए गए. लेकिन किससे खरीदी गई इसका कोई अता पता नहीं है. 9 लाख 82 हजार 717 कंबल बनवाने का काम दिया गया था, लेकिन 8 लाख 13 हजार 91 कंबलों की बुनाई सखी मंडल या बुनकर सहयोग समितियों से नहीं कराई गई. झारक्राफ्ट के कुछ लोगों ने सहयोग समितियों के साथ मिलकर इस घोटाले की पटकथा तैयार की. ऊनी धागे की ढुलाई, कंबलों की बुनाई और परिवहन के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए. हरियाणा के पानीपत से धागा मंगाने की बात फर्जी पाई गई. दिसंबर 2018 में एजी की रिपोर्ट से इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ.

ये भी पढ़ें- झारखंड घोटाला कथा: 34वें राष्ट्रीय खेल के आयोजन में अधिकारी और नेता डकार गए 30 करोड़ से अधिक रुपए, जानिए कैसे

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कंबल घोटाला की महत्वपूर्ण जानकारी

चारा घोटाले की तर्ज पर...

प्रारंभिक जांच में 18 से 20 कोरोड़ के घोटाले की बात सामने आई. चारा घोटाला की तर्ज पर इस घोटाले को अंजाम दिए जाने की बात कही जा रही है. हरियाणा से ऊनी धागे की ढुलाई के लिए 144 ट्रक को 320 ट्रिप लगाने पड़े, इसमें से 318 ट्रिप फर्जी निकले. उस समय रघुवर सरकार में मंत्री सरयू राय ने सीएम से कहा था कि चारा घोटाला की तर्ज पर झारखंड में कंबल घोटाला हुआ है. इसकी जांच सीबीआई से करानी चाहिए.

ये भी पढ़ें- झारखंड घोटाला कथा: राज्यसभा चुनाव 2016 में बीजेपी को दिलाई थी जीत, अब मुश्किल में हैं पूर्व सीएम!

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इन पर हैं आरोप

इन पर है आरोप

झारक्राफ्ट की तत्कालीन सीईओ रेणु गोपीनाथ पणिकर, तत्कालीन उप महाप्रबंधक मो. नसीम अख्तर और तत्कालीन मुख्य वित्त पदाधिकारी अशोक ठाकुर पर इस घोटाला में शामिल होने का आरोप है. रेणु गोपीनाथ पणिकर मुख्य रूप से केरल की रहने वाली हैं. इनकी पढ़ाई-लिखाई झारखंड के जमशेदपुर में हुई है और वो बीजेपी कार्यकर्ता के तौर पर रघुवर दास के विधानसभा क्षेत्र में काम करती थीं. रघुवर दास के सीएम बनते ही रेणु गोपीनाथ पणिकर सक्रिए हो गईं. उन्हें झारक्राफ्ट का सीईओ और लघु उद्योग बोर्ड का सदस्य भी बनाया गया.

ये भी पढ़ें- झारखंड घोटाला कथा: राज्य में निवेश बढ़ाने के नाम पर मोमेंटम झारखंड में हो गया करोड़ों का खेला!

एसीबी के पास जांच का जिम्मा

तकरीबन 20 करोड़ के इस घोटाले की जांच एसीबी कर रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारक्राफ्ट कंबल घोटाले की जांच का जिम्मा एसीबी को दिया है.

रांची: रघुवर सरकार के कार्यकाल में सखी मंडलों और बुनकर समितियों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने की योजना बनाई गई. इसके लिए झारक्राफ्ट के माध्यम से गरीबों को बांटे जाने वाले कंबल बनाने का टेंडर इन्हें देने का फैसला किया गया. इसके लिए झारक्राफ्ट को 10 लाख कंबल का ऑर्डर दिया गया, जिसका इस्तेमाल गरीबों के बीच बांटने और सरकारी काम में किया जाना था. हालांकि कुछ ही कंबल गरीबों को बांटे गए और बाकी कंबल की राशि कुछ लोग मिलकर डकार गए.

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कैसे हुआ घोटाला?

सरकार ने झारक्राफ्ट को 10 लाख कंबल का ऑर्डर दिया था. इसके लिए 25 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया. लेकिन सखी मंडल और बुनकरों से कंबल बनावाने के बदले हरियाणा से कंबल खरीद दिखाकर सरकारी धन की बंदरबांट कर ली गई. मई 2016 से दिसंबर 2017 के बीच इस मद में पड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है.

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कैसे हुआ कंबर घोटाला

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कैसे हुआ खुलासा

झारक्राफ्ट ने 2016-2018 के बीच 633 हस्तकरघे की खरीद दिखाई. इसपर दो करोड़ दो लाख रुपए खर्च भी दिखाए गए. लेकिन किससे खरीदी गई इसका कोई अता पता नहीं है. 9 लाख 82 हजार 717 कंबल बनवाने का काम दिया गया था, लेकिन 8 लाख 13 हजार 91 कंबलों की बुनाई सखी मंडल या बुनकर सहयोग समितियों से नहीं कराई गई. झारक्राफ्ट के कुछ लोगों ने सहयोग समितियों के साथ मिलकर इस घोटाले की पटकथा तैयार की. ऊनी धागे की ढुलाई, कंबलों की बुनाई और परिवहन के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए. हरियाणा के पानीपत से धागा मंगाने की बात फर्जी पाई गई. दिसंबर 2018 में एजी की रिपोर्ट से इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ.

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कंबल घोटाला की महत्वपूर्ण जानकारी

चारा घोटाले की तर्ज पर...

प्रारंभिक जांच में 18 से 20 कोरोड़ के घोटाले की बात सामने आई. चारा घोटाला की तर्ज पर इस घोटाले को अंजाम दिए जाने की बात कही जा रही है. हरियाणा से ऊनी धागे की ढुलाई के लिए 144 ट्रक को 320 ट्रिप लगाने पड़े, इसमें से 318 ट्रिप फर्जी निकले. उस समय रघुवर सरकार में मंत्री सरयू राय ने सीएम से कहा था कि चारा घोटाला की तर्ज पर झारखंड में कंबल घोटाला हुआ है. इसकी जांच सीबीआई से करानी चाहिए.

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इन पर हैं आरोप

इन पर है आरोप

झारक्राफ्ट की तत्कालीन सीईओ रेणु गोपीनाथ पणिकर, तत्कालीन उप महाप्रबंधक मो. नसीम अख्तर और तत्कालीन मुख्य वित्त पदाधिकारी अशोक ठाकुर पर इस घोटाला में शामिल होने का आरोप है. रेणु गोपीनाथ पणिकर मुख्य रूप से केरल की रहने वाली हैं. इनकी पढ़ाई-लिखाई झारखंड के जमशेदपुर में हुई है और वो बीजेपी कार्यकर्ता के तौर पर रघुवर दास के विधानसभा क्षेत्र में काम करती थीं. रघुवर दास के सीएम बनते ही रेणु गोपीनाथ पणिकर सक्रिए हो गईं. उन्हें झारक्राफ्ट का सीईओ और लघु उद्योग बोर्ड का सदस्य भी बनाया गया.

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एसीबी के पास जांच का जिम्मा

तकरीबन 20 करोड़ के इस घोटाले की जांच एसीबी कर रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारक्राफ्ट कंबल घोटाले की जांच का जिम्मा एसीबी को दिया है.

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