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सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित, विपक्ष की मांग पर (/) चिन्ह हटा

झारखंड विधानसभा ने 2021 की जनगणना के प्रपत्र में अलग से सरना आदिवासी धर्म कोड शामिल करने की मांग वाले प्रस्ताव पर मुहर लगा दी. इससे पहले बुधवार को इस पर आयोजित विशेष सत्र में गर्मागर्म चर्चा हुई. विपक्ष ने सत्तारूढ़ दल कांग्रेस पर जमकर तीर चलाए. आखिरकार विपक्ष की मांग पर सरना/आदिवासी धर्म कोड के प्रस्ताव से (/) चिन्ह हटाने पर ध्वनि मत से प्रस्ताव पारित कर दिया गया. अब इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजा जाएगा.

special session of jharkhand assembly on sarna adivasi religion code
सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित
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Published : Nov 11, 2020, 3:43 PM IST

Updated : Nov 11, 2020, 6:53 PM IST

रांची: 2021 के जनगणना प्रपत्र में सरना आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड के प्रस्ताव पर झारखंड विधानसभा ने विशेष सत्र में ध्वनिमत से मुहर लगा दी. इससे पहले सदन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड एक आदिवासी बहुल प्रदेश है और यहां की बड़ी आबादी सरना धर्म को मानती है. पिछले कई वर्षों से धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्ष हो रहा है. इधर समय के साथ आदिवासियों की जनसंख्या में लगातार कमी हो रही है. उन्होंने बताया कि 1931 से 2011 के बीच पिछले 8 दशकों में आदिवासी जनसंख्या का प्रतिशत 38.03 से घटकर 26.03 प्रतिशत हो गया है. 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था लेकिन साल 1962 के जनगणना प्रपत्र से इसे हटा दिया गया, जबकि 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्य में रहने वाले लगभग 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र के अन्य कॉलम में सरना धर्म लिखा. लिहाजा, आदिवासी /सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाना चाहिए.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-आदिवासी सरना धर्म कोड को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र, विधायक प्रदीप यादव ने कहा- आदिवासियों का कल्याण करे बीजेपी

भाजपा ने कांग्रेस नेता रामेश्वर उरांव को घेरा

भाजपा के वरिष्ठ नेता नीलकंठ सिंह मुंडा ने सीएम के प्रस्ताव पर खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि भाजपा हमेशा आदिवासियों के हित की बात करती रही है लेकिन प्रस्ताव में आदिवासी/सरना धर्म कोड में जो (/) डाला गया है, उससे कई तरह की शंका पैदा हो रही है. अगर इस निशान को हटा दिया जाता है तो भाजपा इस प्रस्ताव का समर्थन करेगी. उन्होंने 1961 में आदिवासियों का धर्म कोड जनसंख्या प्रपत्र से हटाए जाने पर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि 2013 में भाजपा सांसद सुदर्शन भगत ने भी इस मामले को लोकसभा में उठाया था. इस पर कांग्रेस की तरफ से कहा गया था कि यह संभव नहीं है जबकि उस वक्त अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव थे. नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा कि पर इस मसले पर रामेश्वर उरांव ने कुछ नहीं किया. नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि देवड़ी मंदिर में पाहन पूजा करते हैं लेकिन इस मंदिर का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है. इससे पहानो का हक मारा जा रहा है.

सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित

मरांडी ने आदिवासियों के मुद्दे पर राजनीति करने का लगाया आरोप

विशेष सत्र के बाद बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार सरना कोड की मांग पर सिर्फ राजनीति कर रही है. सरकार आदिवासियों की मांग पूरी कराने के लिए गंभीर नहीं है. आदिवासियों के मुद्दों को लेकर बुलाए गए विशेष सत्र में उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया गया. उनका कहना है कि उनको मौका मिलता तो वे तकनीकी बातें बताते जिससे आदिवासियों की मांग पूरी होने में आसानी होती. उनका कहना है कि आदिवासियों के मुद्दों पर लंबी बहस होनी थी लेकिन सत्ता पक्ष द्वारा हम लोगों को अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि कई सारे मुद्दे थे जो आदिवासियों के हितों को लेकर हम उठाते पर सरकार इस पर तैयार नहीं हुई. साथ ही उन्होंने कहा कि स्थानीय और जाति प्रमाण पत्र बननाने को लेकर लोगों के चक्कर काटने पड़ते हैं. उनका कहना है कि इन तमाम बिंदुओं पर सदन में चर्चा होनी थी लेकिन वह हो नहीं पाया.

ये भी पढ़ें-दुमका का राजधानी रांची जैसा करेंगे विकास, ईटीवी भारत से खास बातचीत में विजेता बसंत सोरेन ने किया ऐलान

स्वच्छता मंत्री ने भाजपा को घेरा
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विशेष सत्र बुलाकर आदिवासियों को पहचान देने का प्रस्ताव पास कराया है. बीजेपी 15 सालों तक लगातार झारखंड में सत्ता में रही लेकिन कभी भी उनकी पहचान के मुद्दों को लेकर गंभीर नहीं दिखी. आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासियों की पहचान को लेकर सरना आदिवासी धर्म कोड प्रस्ताव पास कराया तो बीजेपी को ठीक नहीं लग रहा. उन्होंने कहा कि विधानसभा से प्रस्ताव को पास कर भेज दिया है अब अंतिम निर्णय केंद्र सरकार को लेना है.

रांची: 2021 के जनगणना प्रपत्र में सरना आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड के प्रस्ताव पर झारखंड विधानसभा ने विशेष सत्र में ध्वनिमत से मुहर लगा दी. इससे पहले सदन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड एक आदिवासी बहुल प्रदेश है और यहां की बड़ी आबादी सरना धर्म को मानती है. पिछले कई वर्षों से धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्ष हो रहा है. इधर समय के साथ आदिवासियों की जनसंख्या में लगातार कमी हो रही है. उन्होंने बताया कि 1931 से 2011 के बीच पिछले 8 दशकों में आदिवासी जनसंख्या का प्रतिशत 38.03 से घटकर 26.03 प्रतिशत हो गया है. 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था लेकिन साल 1962 के जनगणना प्रपत्र से इसे हटा दिया गया, जबकि 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्य में रहने वाले लगभग 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र के अन्य कॉलम में सरना धर्म लिखा. लिहाजा, आदिवासी /सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाना चाहिए.

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भाजपा ने कांग्रेस नेता रामेश्वर उरांव को घेरा

भाजपा के वरिष्ठ नेता नीलकंठ सिंह मुंडा ने सीएम के प्रस्ताव पर खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि भाजपा हमेशा आदिवासियों के हित की बात करती रही है लेकिन प्रस्ताव में आदिवासी/सरना धर्म कोड में जो (/) डाला गया है, उससे कई तरह की शंका पैदा हो रही है. अगर इस निशान को हटा दिया जाता है तो भाजपा इस प्रस्ताव का समर्थन करेगी. उन्होंने 1961 में आदिवासियों का धर्म कोड जनसंख्या प्रपत्र से हटाए जाने पर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि 2013 में भाजपा सांसद सुदर्शन भगत ने भी इस मामले को लोकसभा में उठाया था. इस पर कांग्रेस की तरफ से कहा गया था कि यह संभव नहीं है जबकि उस वक्त अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव थे. नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा कि पर इस मसले पर रामेश्वर उरांव ने कुछ नहीं किया. नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि देवड़ी मंदिर में पाहन पूजा करते हैं लेकिन इस मंदिर का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है. इससे पहानो का हक मारा जा रहा है.

सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित

मरांडी ने आदिवासियों के मुद्दे पर राजनीति करने का लगाया आरोप

विशेष सत्र के बाद बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार सरना कोड की मांग पर सिर्फ राजनीति कर रही है. सरकार आदिवासियों की मांग पूरी कराने के लिए गंभीर नहीं है. आदिवासियों के मुद्दों को लेकर बुलाए गए विशेष सत्र में उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया गया. उनका कहना है कि उनको मौका मिलता तो वे तकनीकी बातें बताते जिससे आदिवासियों की मांग पूरी होने में आसानी होती. उनका कहना है कि आदिवासियों के मुद्दों पर लंबी बहस होनी थी लेकिन सत्ता पक्ष द्वारा हम लोगों को अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि कई सारे मुद्दे थे जो आदिवासियों के हितों को लेकर हम उठाते पर सरकार इस पर तैयार नहीं हुई. साथ ही उन्होंने कहा कि स्थानीय और जाति प्रमाण पत्र बननाने को लेकर लोगों के चक्कर काटने पड़ते हैं. उनका कहना है कि इन तमाम बिंदुओं पर सदन में चर्चा होनी थी लेकिन वह हो नहीं पाया.

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स्वच्छता मंत्री ने भाजपा को घेरा
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विशेष सत्र बुलाकर आदिवासियों को पहचान देने का प्रस्ताव पास कराया है. बीजेपी 15 सालों तक लगातार झारखंड में सत्ता में रही लेकिन कभी भी उनकी पहचान के मुद्दों को लेकर गंभीर नहीं दिखी. आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासियों की पहचान को लेकर सरना आदिवासी धर्म कोड प्रस्ताव पास कराया तो बीजेपी को ठीक नहीं लग रहा. उन्होंने कहा कि विधानसभा से प्रस्ताव को पास कर भेज दिया है अब अंतिम निर्णय केंद्र सरकार को लेना है.

Last Updated : Nov 11, 2020, 6:53 PM IST
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