रांची: जाने अनजाने में छोटे-मोटे अपराध के कारण बाल सुधार गृह तक पहुंच रहे बच्चों की बढ़ रही संख्या पर झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा ने चिंता जताई है. ज्यूडिशियल एकेडमी में झारखंड उच्च न्यायालय की किशोर न्याय सह पोक्सो समिति के द्वारा महिला बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा तथा यूनिसेफ के सहयोग से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले बालकों को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने और पुर्नस्थापनात्मक न्याय प्रदान करने के प्रति भी हमारा कर्तव्य है.
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इस कार्यक्रम में झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, अधिवक्ता संघ के सदस्य, झारखंड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष, राज्य के गृह, स्वास्थ्य, शिक्षा और साक्षरता विभाग, महिला और बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा विभागों के सचिव के अलावा यूनिसेफ, बाल अधिकार विशेषज्ञ, शिक्षाविद् और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थे. इस मौके पर किशोर न्याय सह पोक्सो समिति के अध्यक्ष और झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद ने सीआईसीएल के प्रति संवेदनशीलता की आवश्यकता पर जोर देते हुए अपने विचार रखे.
कला प्रदर्शनी सह बिक्री का हुआ उद्घाटन: इस मौके पर तेजस्वी बच्चों की कला प्रदर्शनी सह बिक्री का उद्घाटन झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया गया. इस प्रदर्शनी में विभिन्न स्टॉलों पर 675 से अधिक सामान लगाए गए हैं. बाल सुधार गृह के बच्चों द्वारा तैयार सामानों में मिट्टी के बर्तन हस्तशिल्प, राखी, दीया और पेंटिंग जैसे लोकप्रिय वस्तुओं को देखकर मुख्य न्यायाधीश अभिभूत हुए और खरीदारी भी की. दिन भर चले इस कार्यक्रम में उद्घाटन सत्र के बाद तकनीकी सत्र में बाल अपराध की रोकथाम, डायवर्सन, हिरासत के विकल्पों और बिना हिरासत के विकल्पों जैसे विषयों पर न्यायाधीशों के साथ-साथ विशेषज्ञों ने विचार रखे.
दूसरे तकनीकी सत्र में निष्पक्ष सुनवाई और बाल मैत्रीपूर्ण प्रक्रियाओं के अधिकार और आपराधिक उत्तरदायित्व की न्यूनतम आयु और प्रारंभिक मूल्यांकन जैसे विषय पर चर्चा हुई. जिसकी अध्यक्षता झारखंड हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अनिल कुमार चौधरी ने की. तीसरा तकनीकी सत्र पुनर्वास और पुर्नस्थापनात्मक प्रथाओं पर था. जिसकी अध्यक्षता झारखंड हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति अनुभव रावत चौधरी ने की.