रांचीः सरकार की नाक के नीचे ही अफसर सरकार के नियमों को रौंद रहे हैं. प्रोजेक्ट भवन जैसे तमाम बड़े अफसरों के कार्यालयों में अफसर ऐसी गाड़ियां इस्तेमाल करते नजर आ जाएंगे, जो निजी वाहन के रूप में पंजीकृत हैं और कैब या टैक्सी के रूप में इस्तेमाल की जा रहीं हैं. निजी कंपनी भी इसमें पीछे नहीं हैं, टैक्सी संचालन करने वाली और खाद्य पदार्थ की होम डिलीवरी में भी ऐसे ही वाहनों का इस्तेमाल हो रहा है. यह सब इसलिए होता है क्योंकि कॉमर्शियल वाहन के पंजीकरण के लिए इंश्योरेंस शुल्क 30 से 40 हजार, रोड टैक्स 30 से 35 हजार, परमिट 9 से 10 हजार और फिटनेस के लिए 7 से 8 हजार खर्च होते हैं. जबकि निजी वाहन के पंजीकरण के लिए इंश्योरेंस के लिए 10 हजार देने के बाद सिर्फ प्रदूषण नियंत्रण के लिए खर्च करना होता है. इससे व्यावसायिक वाहन के रूप में पंजीकरण के कारण खर्च बढ़ने से लागत भी बढ़ जाती है पर इस तरह टैक्स चोरी से सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है.
बता दें कि प्रोजेक्ट भवन परिसर में पिछले दिनों खड़ी मिली गाड़ी नंबर JH01CU2929 पर झारखंड सरकार लिखा था लेकिन परिवहन वेबसाइट पर इसका रजिस्ट्रेशन प्राइवेट वाहन के रूप में है. वहीं गाड़ी नंबर JH01AT8903 स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता के संयुक्त सचिव इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन यह गाड़ी भी निजी उपयोग के लिए खरीदी गई है. ये नंबर तो महज नमूना हैं प्रोजेक्ट भवन हो चाहे दूसरे कार्यालय अफसर सरकार को चूना लगाने वाली इन गाड़ियों से घूमने में पीछे नहीं हैं. जबकि 2017 के पत्रांक संख्या 686 में सभी सचिव एवं प्रधान सचिव से कहा गया था कि विभाग में व्यावसायिक वाहनों का ही इस्तेमाल हो. इधर परिवहन सचिव इन सब से पल्ला झाड़ते नजर आते हैं. इस संबंध में परिवहन सचिव के. रविकुमार ने कहा कि हम दूसरे विभागों में चलाई जा रही निजी नंबर वाली गाड़ियों पर सीधी कार्रवाई नहीं कर सकते. हालांकि हम लोगों ने सभी विभागों के प्रमुखों से आग्रह किया है कि वे अगर टैक्सी का इस्तेमाल कर रहे हैं तो कैब या टैक्सी के लिए पंजीकृत वाहनों का ही इस्तेमाल करें. संबंधित विभाग को कार्रवाई करनी चाहिए.
टैक्स चुकाने वाले चालकों को नुकसान
ऐसा नहीं है कि निजी उपयोग के लिए गाड़ी खरीदकर कैब या टैक्सी की तरह इस्तेमाल करने से सिर्फ सरकार को नुकसान हो रहा है. इससे टैक्स चुकाने वाले चालकों को भी नुकसान हो रहा है. एक टैक्सी चालक नीरज सिन्हा का कहना है कि हमारा भाड़ा सरकारी स्लैब के हिसाब से होता है, जो टैक्स न चुकाने वालों से महंगा होता है. इससे कई बार हमें यात्री तक नहीं मिलते. लेकिन निजी वाहन कम पैसे में भी यात्रियों को ढोने का काम करते हैं क्योंकि उन्हें सरकारी टैक्स जमा नहीं करना पड़ता है. रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट, दिल्ली मार्केट टैक्सी स्टैंड, रांची रेलवे स्टेशन और दरभंगा हाउस पर ही सैकड़ों निजी वाहनों का व्यावसायिक इस्तेमाल देखा जा सकता है.
ये भी पढ़ें-लापरवाही: डॉक्टरों ने बिना इजाजत दिव्यांग शख्स की कर दी नसबंदी, कार्रवाई की मांग
सामाजिक सुरक्षा को भी खतरा
नियमों को तोड़ रहीं इन टैक्सी से सिर्फ राजस्व को ही क्षति नहीं पहुंच रही है, ये सामाजिक सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहीं हैं. टैक्सी चालक संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह बताते हैं ऐसी टैक्सी से हादसा होने पर यात्रियों को बीमा लाभ भी नहीं मिलता, जबकि जो गाड़ी टैक्सी नंबर के रूप में रजिस्ट्रेशन करा चुकी है अगर उस गाड़ी में किसी तरह का हादसा होता है तो यात्रियों को बीमा का लाभ मिलेगा.फिर भी प्रशासन ने अरसे से रांची में जांच अभियान तक नहीं चलाया, ताकि ऐसे वाहनों की नकेल कसी जा सके. नतीजा यह है कि रांची जिले में 5000 परमिट होल्डर टैक्सी हैं, जबकि 3000 से ज्यादा ऐसे निजी वाहन टैक्सी के रूप में चलाए जा रहे हैं. जमशेदपुर में परमिट वाली टैक्सी 2000 हैं. लेकिन 10,000 से ज्यादा निजी वाहन कैब और टैक्सी के रूप में चलाए जा रहे हैं. धनबाद में भी अवैध रूप से दौड़ रहीं टैक्सी की संख्या 5000 के पार है, जबकि 3000 टैक्सी ही पंजीकृत हैं. बोकारो में परमिट वाली टैक्सी का आंकड़ा डेढ़ सौ से 200 के करीब है, लेकिन कर चोरी कर चलाई जा रहीं टैक्सी की संख्या हजार के पार पहुंच चुकी हैं. इसीलिए जरूरत है कि सरकार ऐसे वाहनों के संचालन पर रोक लगाए. वहीं इस मामले में परिवहन मंत्री चंपई सोरेन का कहना है कि उन्हें किसी ने अभी तक मामले की जानकारी नहीं दी थी, अगर निजी वाहनों का सरकारी अफसरों द्वारा उपयोग किया जा रहा है तो इसे संज्ञान में लेकर कार्रवाई की जाएगी.