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एमओयू के नाम पर जनता को सब्जबाग दिखाती रही हैं सरकारें, निवेश के नाम पर होता है छलावा

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Published : Sep 2, 2021, 7:45 PM IST

Updated : Sep 2, 2021, 8:05 PM IST

झारखंड के गठन के बाद से ही विकास को लेकर राज्य सरकार एमओयू करती रही है. कई बार इन्वेस्टर समिट का आयोजन हुआ और कई बड़ी कंपनियों ने राज्य सरकार के साथ एमओयू किया. 21 साल में तीन हजार एमओयू हुए हैं लेकिन ज्यादातर एमओयू जमीन पर नहीं उतरा. इस रिपोर्ट में पढ़िये कि अब तक किस तरह एमओयू के नाम पर जनता को विकास का सपना दिखाया जाता है लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता.

investment in jharkhand
झारखंड में निवेश

रांची: राज्य गठन के बाद से ही झारखंड के विकास को लेकर सरकारें एमओयू करती रही है. स्थानीय रोजगार और विकास की संभावना का सपना दिखाते हुए अब तक राज्य में करीब तीन हजार एमओयू हो चुके हैं. कागज पर उद्योगपतियों और राज्य सरकार के हस्ताक्षर से हुए अधिकांश एमओयू के जमीन पर उतरने से पहले ही उसकी हवा निकल गई. नई औद्योगिक नीति ने एक बार फिर राज्य में उद्योग लगाने और निवेश की संभावना पर बहस छेड़ दिया है. वर्तमान हेमंत सरकार इस नई औद्योगिक नीति के जरिए निवेशकों को आकर्षित कर एमओयू करने में जुटी है. क्या राज्य सरकार इस बार सफल हो पाएगी या फिर कागज पर एमओयू का खेल चलता रहेगा, यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है.

यह भी पढ़ें: झारखंड में निवेश करने से कन्नी काटते इंवेस्टर्स, जानिए इसके पीछे क्या है वजह

मंत्री बादल पत्रलेख का कहना है कि पिछली सरकार में जो एमओयू हुआ वह सब लोग जानते हैं लेकिन हेमंत सरकार के प्रति लोगों का और खासकर उद्योगपतियों को विश्वास है कि राज्य में उद्योग लगाने के लिए उन्हें सारी सुविधाएं मिलेगी. यही वजह है कि इतनी संख्या में देश के उद्योगपतियों ने झारखंड सरकार के साथ एमओयू किया है.

देखें स्पेशल स्टोरी

एमओयू पर उठ रहे सवाल

राज्य सरकार की झारखंड औद्योगिक एवं निवेश प्रोत्साहन नीति 2021 पर सवाल उठने लगे हैं. दिल्ली में पिछले दिनों आयोजित इन्वेस्टर्स मीट में हुए एमओयू पर सवाल खड़ा करते हुए पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक अमर कुमार बाउरी ने कहा है कि जो दल ने झारखंड से उद्योगपतियों को भगाया, वह सत्ता में आते ही उद्योगपतियों को बुलाकर निवेश कराएगा यह संभव नहीं बल्कि महज दिखावा है. झारखंड चैंबर ऑफ कामर्स के पूर्व चैयरमैन पवन ने कहा कि जब तक उद्यमियों को जमीन स्तर पर सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जाएंगी तब तक निवेश और उद्योग लगाने की बात सोचना नादानी होगी.

राज्य बनने के बाद से होता रहा है MoU

राज्य गठन के बाद शुरुआती दिनों में सड़क, बिजली, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं पर विशेष बल दिया गया. बाद में राज्य में तेजी से विकास करने के लिए सरकार निवेशकों को आकर्षित करने में जुट गई. यहां की प्राकृतिक संसाधन के प्रति इंवेस्टर्स भी आकर्षित हुए. जिस गति से एक के बाद एक एमओयू पर हस्ताक्षर होते गए उससे लगा कि राज्य में रोजगार के अवसर के साथ-साथ औद्योगिकीकरण में तेजी आएगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका. जो भी सरकारें बनी सभी के समय राज्य में बड़े-बड़े निवेशकों से एमओयू कर जनता को रोजगार और विकास का सपना दिखाया गया. चाहे मधुकोड़ा का शासनकाल हो या अर्जुन मुंडा का या रघुवर दास का शासनकाल. वर्तमान में हेमंत सरकार भी कुछ इसी राह पर चल पड़ी है.

रघुवर सरकार में हुए सबसे अधिक एमओयू

राज्य में लौह अयस्क, कोयला, अभ्रक और यूरेनियम जैसे खनिज पदार्थो की प्रचुरता होने के बाबजूद औद्योगिक रुप से झारखंड पिछड़ा प्रदेश है. राज्य बनने के 21 वर्ष बीतने के बाद भी गरीबी, बेरोजगारी और ट्रैफिकिंग जैसी समस्या के कारण लोग पलायन करने को मजबूर हैं. पिछली सरकार में हुए एमओयू पर नजर डालें तो सर्वाधिक एमओयू रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए.

बिना निवेश किये चली गई कई कंपनियां

2017 में आयोजित मोमेंटम झारखंड के माध्यम से देश-विदेश की कंपनियों के साथ सरकार ने एमओयू करने में रिकार्ड बना डाला. पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, लघु एवं कुटीर उद्योग, कृषि एवं पशुपालन, कपड़ा उद्योग आदि क्षेत्रों में विकास का दावा किया गया था. मोंमेटम झारखंड से राज्य में तीन लाख करोड़ रुपए के निवेश का दावा किया गया था. इसके अलावा 1 लाख 60 हजार प्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी लोगों को मिलने का दावा किया गया. मोमेंटम झारखंड में भाग लेने आये 210 में से 162 कंपनियों ने ही पूर्ववर्ती सरकार से विधिवत एमओयू किया था जिसमें 113 भारतीय कंपनियों ने एमओयू पर आगे बढ़ने की बात तो दूर झारखंड में बगैर निवेश किए यहां से चले गए.

सरकार के साथ समझौता करने के वक्त देश-विदेश के निवेशक झारखंड की प्राकृतिक संसाधनों को देखकर यहां इंडस्ट्री लगाने के लिए आकर्षित तो होते हैं लेकिन एमओयू के बाद जिस तरह की परेशानी उन्हें झेलनी पड़ती है उससे वे परेशान होकर उद्योग लगाने से पहले ही मुंह मोड़ लेते हैं. कुछ ऐसा ही मोमेंटम झारखंड के बाद भी देखने को मिला.

कई विदेशी कंपनियां जैसे कूल लाइट फ्रांस, आईटीई एजुकेशन सिंगापुर, स्मार्ट सिटी वन दक्षिण कोरिया, कोलाज फ्रांस, एनजीपी हरक्यूलिस लिमिटेड, लाइट साउंड इंक कनाडा, कोलो ग्लोबल एबी स्वीडन ने मोमेंटम झारखंड के दौरान समझौता कर राज्य में उद्योग लगाने के लिए वादा किया था लेकिन फिर पलटकर नहीं देखा. भारतीय कंपनियों पर नजर डालें तो इन पेरिया स्ट्रक्चर लिमिटेड, श्रीराम मल्टीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, रामकृष्ण फोर्जिंग लिमिटेड, प्रसाद एक्सप्लोसिव केमिकल, त्रिमूला इंडस्टरीज लिमिटेड सहित डेढ़ दर्जन से अधिक ऐसी कंपनियां हैं जिनका अभी तक कोई अता पता नहीं है.

जमीन और खदान नहीं मिलने के चलते निवेश से धोना पड़ा हाथ

यह पहला मौका नहीं है जब बड़ी कंपनियों ने झारखंड में निवेश करने से मुंह मोड़ा है. इससे पहले आरजी स्टील लिमिटेड के साथ 26 मार्च 2004 को एमओयू हुआ था जिसमें जमीन और खदान नहीं मिलने के कारण कंपनी ने निवेश नहीं करने का निर्णय लिया. गोयल स्पोंज प्राइवेट लिमिटेड के साथ 12 अप्रैल 2005 को एमओयू हुआ था. बाद में कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. कल्याणी स्टील लिमिटेड के साथ 23 जुलाई 2005 को जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण एमओयू होने के बावजूद झारखंड को निवेश से हाथ धोना पड़ा.

कोल स्टील एंड पावर लिमिटेड के साथ सरकार ने 29 दिसंबर 2006 को समझौता किया था. माइंस और जमीन नहीं मिलने के कारण राज्य को 3300 करोड़ के निवेश से हाथ धोना पड़ा. सार्थक इंडस्ट्रीज के साथ 26 फरवरी 2007 को सरकार ने समझौता किया. जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. मां चंडी दुर्गा इस्पात के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौते हुए लेकिन बाद में कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. इसी तरह जगदंबा इस्पात सर्विसेज के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौते हुए लेकिन कंपनी ने प्लांट लगाने में रुचि नहीं दिखाई. इस तरह से राज्य में निवेश को बढ़ाने के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति होती रही है जिसमें निजी स्वार्थ और भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रही हैं. मोमेंटम झारखंड में हुई गड़बड़ी की जांच की फाइल हाई कोर्ट के आदेश पर एसीबी तक पहुंच गया है. वहीं महालेखाकार के यहां इसका स्पेशल ऑडिट हो रहा है.

एक तरफ राज्य सरकार जहां नई औद्योगिक एवं निवेश नीति लाकर उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए कई तरह की रियायत देने का प्रावधान किया है वहीं स्थानीय समस्या का समाधान करने पर गंभीरता दिखाई है. अब देखना होगा कि सरकार की इस नई पॉलिसी का लाभ झारखंड की जनता को कितना हो पाता है.

रांची: राज्य गठन के बाद से ही झारखंड के विकास को लेकर सरकारें एमओयू करती रही है. स्थानीय रोजगार और विकास की संभावना का सपना दिखाते हुए अब तक राज्य में करीब तीन हजार एमओयू हो चुके हैं. कागज पर उद्योगपतियों और राज्य सरकार के हस्ताक्षर से हुए अधिकांश एमओयू के जमीन पर उतरने से पहले ही उसकी हवा निकल गई. नई औद्योगिक नीति ने एक बार फिर राज्य में उद्योग लगाने और निवेश की संभावना पर बहस छेड़ दिया है. वर्तमान हेमंत सरकार इस नई औद्योगिक नीति के जरिए निवेशकों को आकर्षित कर एमओयू करने में जुटी है. क्या राज्य सरकार इस बार सफल हो पाएगी या फिर कागज पर एमओयू का खेल चलता रहेगा, यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है.

यह भी पढ़ें: झारखंड में निवेश करने से कन्नी काटते इंवेस्टर्स, जानिए इसके पीछे क्या है वजह

मंत्री बादल पत्रलेख का कहना है कि पिछली सरकार में जो एमओयू हुआ वह सब लोग जानते हैं लेकिन हेमंत सरकार के प्रति लोगों का और खासकर उद्योगपतियों को विश्वास है कि राज्य में उद्योग लगाने के लिए उन्हें सारी सुविधाएं मिलेगी. यही वजह है कि इतनी संख्या में देश के उद्योगपतियों ने झारखंड सरकार के साथ एमओयू किया है.

देखें स्पेशल स्टोरी

एमओयू पर उठ रहे सवाल

राज्य सरकार की झारखंड औद्योगिक एवं निवेश प्रोत्साहन नीति 2021 पर सवाल उठने लगे हैं. दिल्ली में पिछले दिनों आयोजित इन्वेस्टर्स मीट में हुए एमओयू पर सवाल खड़ा करते हुए पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक अमर कुमार बाउरी ने कहा है कि जो दल ने झारखंड से उद्योगपतियों को भगाया, वह सत्ता में आते ही उद्योगपतियों को बुलाकर निवेश कराएगा यह संभव नहीं बल्कि महज दिखावा है. झारखंड चैंबर ऑफ कामर्स के पूर्व चैयरमैन पवन ने कहा कि जब तक उद्यमियों को जमीन स्तर पर सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जाएंगी तब तक निवेश और उद्योग लगाने की बात सोचना नादानी होगी.

राज्य बनने के बाद से होता रहा है MoU

राज्य गठन के बाद शुरुआती दिनों में सड़क, बिजली, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं पर विशेष बल दिया गया. बाद में राज्य में तेजी से विकास करने के लिए सरकार निवेशकों को आकर्षित करने में जुट गई. यहां की प्राकृतिक संसाधन के प्रति इंवेस्टर्स भी आकर्षित हुए. जिस गति से एक के बाद एक एमओयू पर हस्ताक्षर होते गए उससे लगा कि राज्य में रोजगार के अवसर के साथ-साथ औद्योगिकीकरण में तेजी आएगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका. जो भी सरकारें बनी सभी के समय राज्य में बड़े-बड़े निवेशकों से एमओयू कर जनता को रोजगार और विकास का सपना दिखाया गया. चाहे मधुकोड़ा का शासनकाल हो या अर्जुन मुंडा का या रघुवर दास का शासनकाल. वर्तमान में हेमंत सरकार भी कुछ इसी राह पर चल पड़ी है.

रघुवर सरकार में हुए सबसे अधिक एमओयू

राज्य में लौह अयस्क, कोयला, अभ्रक और यूरेनियम जैसे खनिज पदार्थो की प्रचुरता होने के बाबजूद औद्योगिक रुप से झारखंड पिछड़ा प्रदेश है. राज्य बनने के 21 वर्ष बीतने के बाद भी गरीबी, बेरोजगारी और ट्रैफिकिंग जैसी समस्या के कारण लोग पलायन करने को मजबूर हैं. पिछली सरकार में हुए एमओयू पर नजर डालें तो सर्वाधिक एमओयू रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए.

बिना निवेश किये चली गई कई कंपनियां

2017 में आयोजित मोमेंटम झारखंड के माध्यम से देश-विदेश की कंपनियों के साथ सरकार ने एमओयू करने में रिकार्ड बना डाला. पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, लघु एवं कुटीर उद्योग, कृषि एवं पशुपालन, कपड़ा उद्योग आदि क्षेत्रों में विकास का दावा किया गया था. मोंमेटम झारखंड से राज्य में तीन लाख करोड़ रुपए के निवेश का दावा किया गया था. इसके अलावा 1 लाख 60 हजार प्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी लोगों को मिलने का दावा किया गया. मोमेंटम झारखंड में भाग लेने आये 210 में से 162 कंपनियों ने ही पूर्ववर्ती सरकार से विधिवत एमओयू किया था जिसमें 113 भारतीय कंपनियों ने एमओयू पर आगे बढ़ने की बात तो दूर झारखंड में बगैर निवेश किए यहां से चले गए.

सरकार के साथ समझौता करने के वक्त देश-विदेश के निवेशक झारखंड की प्राकृतिक संसाधनों को देखकर यहां इंडस्ट्री लगाने के लिए आकर्षित तो होते हैं लेकिन एमओयू के बाद जिस तरह की परेशानी उन्हें झेलनी पड़ती है उससे वे परेशान होकर उद्योग लगाने से पहले ही मुंह मोड़ लेते हैं. कुछ ऐसा ही मोमेंटम झारखंड के बाद भी देखने को मिला.

कई विदेशी कंपनियां जैसे कूल लाइट फ्रांस, आईटीई एजुकेशन सिंगापुर, स्मार्ट सिटी वन दक्षिण कोरिया, कोलाज फ्रांस, एनजीपी हरक्यूलिस लिमिटेड, लाइट साउंड इंक कनाडा, कोलो ग्लोबल एबी स्वीडन ने मोमेंटम झारखंड के दौरान समझौता कर राज्य में उद्योग लगाने के लिए वादा किया था लेकिन फिर पलटकर नहीं देखा. भारतीय कंपनियों पर नजर डालें तो इन पेरिया स्ट्रक्चर लिमिटेड, श्रीराम मल्टीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, रामकृष्ण फोर्जिंग लिमिटेड, प्रसाद एक्सप्लोसिव केमिकल, त्रिमूला इंडस्टरीज लिमिटेड सहित डेढ़ दर्जन से अधिक ऐसी कंपनियां हैं जिनका अभी तक कोई अता पता नहीं है.

जमीन और खदान नहीं मिलने के चलते निवेश से धोना पड़ा हाथ

यह पहला मौका नहीं है जब बड़ी कंपनियों ने झारखंड में निवेश करने से मुंह मोड़ा है. इससे पहले आरजी स्टील लिमिटेड के साथ 26 मार्च 2004 को एमओयू हुआ था जिसमें जमीन और खदान नहीं मिलने के कारण कंपनी ने निवेश नहीं करने का निर्णय लिया. गोयल स्पोंज प्राइवेट लिमिटेड के साथ 12 अप्रैल 2005 को एमओयू हुआ था. बाद में कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. कल्याणी स्टील लिमिटेड के साथ 23 जुलाई 2005 को जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण एमओयू होने के बावजूद झारखंड को निवेश से हाथ धोना पड़ा.

कोल स्टील एंड पावर लिमिटेड के साथ सरकार ने 29 दिसंबर 2006 को समझौता किया था. माइंस और जमीन नहीं मिलने के कारण राज्य को 3300 करोड़ के निवेश से हाथ धोना पड़ा. सार्थक इंडस्ट्रीज के साथ 26 फरवरी 2007 को सरकार ने समझौता किया. जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. मां चंडी दुर्गा इस्पात के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौते हुए लेकिन बाद में कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. इसी तरह जगदंबा इस्पात सर्विसेज के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौते हुए लेकिन कंपनी ने प्लांट लगाने में रुचि नहीं दिखाई. इस तरह से राज्य में निवेश को बढ़ाने के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति होती रही है जिसमें निजी स्वार्थ और भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रही हैं. मोमेंटम झारखंड में हुई गड़बड़ी की जांच की फाइल हाई कोर्ट के आदेश पर एसीबी तक पहुंच गया है. वहीं महालेखाकार के यहां इसका स्पेशल ऑडिट हो रहा है.

एक तरफ राज्य सरकार जहां नई औद्योगिक एवं निवेश नीति लाकर उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए कई तरह की रियायत देने का प्रावधान किया है वहीं स्थानीय समस्या का समाधान करने पर गंभीरता दिखाई है. अब देखना होगा कि सरकार की इस नई पॉलिसी का लाभ झारखंड की जनता को कितना हो पाता है.

Last Updated : Sep 2, 2021, 8:05 PM IST
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