रांची: साल 2000 में केंद्र में जब अटलजी की सरकार थी उस समय बिहार से अलग झारखंड का गठन किया गया. उस वक्त बिहार में आरजेडी की सरकार थी. लेकिन झारखंड में आरजेडी का जनाधार कम था. यहां बीजेपी का दबदबा था. लिहाजा बीजेपी झारखंड में सरकार बनाने की स्थिति में आ गई और बाबूलाल मरांडी को राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. तब से लेकर अब तक बाबूलाल झारखंड की राजनीति के पर्याय बने हुए हैं. (Babulal Marandi Political Journey)
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शिबू सोरेन को हराकर आए चर्चा में: बाबूलाल मरांडी का जन्म 11 जनवरी 1958 को गिरिडीह जिले के कोडिया बैंक गांव में हुआ था. किसान परिवार में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने शुरुआत में गिरिडीह के देवरी में प्राथमिक विद्यालय में बतौर शिक्षक नौकरी की थी. फिर विभागीय अधिकारियों से कुछ ऐसी अनबन हुई कि शिक्षक बाबूलाल मरांडी ने राजनीति की राह पकड़ ली. बाबूलाल मरांडी विश्व हिंदू परिषद के आयोजन सचिव के पद पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 1983 में दुमका चले जाने के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपना शुरुआती जीवन आरएसएस मुख्यालय में व्यतीत किया. संघ में सक्रिय होने के बाद बाबूलाल मरांडी ने साल 1990 में बीजेपी के संथाल परगना के संगठन मंत्री के रूप में काम किया. दो बार दिशोम गुरु से चुनावी समर में पराजित होने के बाद साल 1998 में उन्होंने शिबू सोरेन को और फिर 1999 में उनकी पत्नी रूपी सोरेन को हराकर अपनी राजनीतिक धाक जमाई.
केंद्र में अटल मंत्रिमंडल में हुए शामिल: 1999 में अटल जी की सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया. झारखंड राज्य अलग होने पर साल 2000 में बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने. इस दौरान उन्होंने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति बनाई, जिसे लेकर राज्य में बवाल हो गया. बाद में इस नीति को कोर्ट ने रद्द कर दिया. 2003 में पार्टी में विरोध के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. इन तीन सालों में ही उन्होंने झारखंड को पहचान दिलाई. उस वक्त उनकी जगह अर्जुन मुंडा को कमान दी गई. बीजेपी की ओर से उन्हें केद्र की राजनीति में सक्रिय होने की सलाह दी गई, जो उन्हें मंजूर नहीं हुआ.
जेवीएम का गठन: 2006 में उन्होंने बीजेपी छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा नाम से अपनी पार्टी बना ली. 2009 में बाबूलाल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा और अच्छी सफलता हासिल की. उनकी पार्टी के 11 विधायक बने लेकिन अगले चुनाव यानी 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले उनके कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. पार्टी में टूट से भी उनका इरादा बदला नहीं. 2014 के चुनाव में भी उनकी पार्टी ने 8 सीट पर कब्जा किया लेकिन चुनाव के कुछ दिन बाद ही उनके पांच विधायक बीजेपी में शामिल हो गए.
बीजेपी में जेवीएम का विलय: 2019 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने अकले चुनाव लड़ा. इस बार उन्हें मात्र तीन सीटों पर जीत मिली. अब फिर से बाबूलाल मरांडी का मन डोलने लगा और बीजेपी में विलय की बात होने लगी. पार्टी ने तीन विधायकों में से दो विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को निलंबित कर दिया और पार्टी का विलय बीजेपी में कर दिया. बीजेपी ने उन्हें विधायक दल का नेता बनाया लेकिन सदन में उसे अभी तक मान्यता नहीं मिली है. मामला स्पीकर न्यायाधीकरण में चल रहा है.
जब हो गई बेटे की हत्या: 26 अक्टूबर 2007 झारखंड बिहार की सीमा पर चिलखारी में एक फुटबॉल मैच हो रहा था. टूर्नामेंट के फाइनल के बाद जतरा का आयोजन किया गया था. इस दौरान विजेता-उपविजेता टीम और उनके समर्थकों के साथ-साथ बाबूलाल मरांडी के बेटे और भाई भी मौजूद थे. इस दौरान नक्सलियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिसमें बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी समेत 20 लोगों की मौत हो गई.