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35 साल की उम्र में बने मुख्यमंत्री, आज देश के बड़े आदिवासी नेताओं में हैं शुमार - रांची न्यूज

झारखंड निर्माता की पिछली कड़ियों में हमने दिशोम गुरु शिबू सोरेन और झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बारे में बताया था. अब ऐसे मुख्यमंत्री के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें राज्य में सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. (Arjun Munda Political Journey)

Arjun Munda Political Journey
Arjun Munda Political Journey
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Published : Nov 3, 2022, 6:04 AM IST

Updated : Nov 14, 2022, 9:53 AM IST

रांचीः अर्जुन मुंडा झारखंड की राजनीति में बड़े कद्दावर माने जाते हैं. राज्य में आदिवासियों के कल्याण की जिम्मेदारी संभालते-संभालते अब वे केंद्र में जनजातीय मामलों के मंत्रालय को संभाल रहे हैं. वक्त के साथ उनके कार्य क्षेत्र का दायरा बढ़ता जा रहा है. राज्य की राजनीति से निकलकर अब वे केंद्र की सियासत में ज्यादा सक्रिय हैं. (Arjun Munda Political Journey)

ये भी पढ़ें- नक्सल हमले में बेटे की मौत भी नहीं तोड़ सकी जनसेवा का चट्टानी इरादा, 22 साल बाबूलाल के इर्द गिर्द घूमती रही झारखंड की राजनीति

झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को गठबंधन के दलों को साथ लेकर चलने का हुनर बखूबी आता है. अपने इसी हुनर के दम पर उन्हें तीन बार मुख्यमंत्री का पद संभालने का मौका मिला. इतना ही नहीं सिर्फ 35 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी बनाया और झारखंड में सबसे लंबे समय तक सीएम की कुर्सी भी संभाली.

Arjun Munda Political Journey
अर्जुन मुंडा के बारे में जानकारियां

जेएमएम से राजनीति की शुरुआत: जमशेदपुर के घोड़ाबांधा में जन्मे अर्जुन मुंडा ने 1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़कर राजनीतिक सफर की शुरुआत की. पहली बार वे 1995 में खरसावां विधानसभा सीट से जेएमएम की टिकट पर चुनाव जीते और फिर राज्य गठन के ऐन पहले बीजेपी में शामिल हो गए. साल 2000 और 2005 में भी खरसावां विधानसभा सीट से उनकी जीत हुई. अलग झारखंड का गठन होने के बाद उन्हें मरांडी कैबिनेट में समाज कल्याण मंत्री बनाया गया.

ये भी पढ़ें- झारखंड स्थापना दिवस: राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसता रहा झारखंड, विकास रहा ठप

निर्दलीय विधायकों ने किया तख्ता पलट: गठबंधन के नेताओं में मतभेद के चलते बाबूलाल मरांडी के इस्तीफे के बाद अर्जुन मुंडा ने 18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005 तक कुल 715 दिनों तक सत्ता की कमान संभाली. इसके बाद झारखंड विधानसभा चुनाव 2005 में जनादेश बिखरा हुआ मिला. बीजेपी को 30 सीटों पर जीत मिली. जेएमएम 17, कांग्रेस 9, आरजेडी 7, जेडीयू 6 और अन्य के खाते में 12 सीटें गईं. यूपीए के बैनर तले शिबू सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया लेकिन 10 दिनों के अंदर ही बहुमत साबित करने के दिन शिबू सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा.

ऐसे ही नाजुक हालात में अर्जुन मुंडा दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए. 12 मार्च 2005 से 14 सितंबर 2006 तक अर्जुन मुंडा ने कुर्सी संभाले रखी. इस दौरान शुरू की गई मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की पूरे देश में सराहना की गई. युवा सोच वाले अर्जुन झारखंड के विकास का लक्ष्य साध पाते, उससे पहले ही एक बार फिर राजनीतिक उथलपुथल तेज हो गई और यूपीए की शह पर निर्दलीय विधायकों ने मुंडा सरकार का तख्ता पलट दिया.

ये भी पढ़ें- झारखंड निर्माण में शिबू सोरेन का योगदान अतुलनीय, जानिए क्यों कहते हैं गुरुजी

झारखंड की राजनीति स्वार्थ सिद्धि का जरिया बन चुकी थी. हर छोटी-बड़ी बात पर विधायक अपना पाला बदल रहे थे. तब लालू यादव की पहल पर जगरनाथपुर से निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया गया और जेएमएम, कांग्रेस और राजद के समर्थन से सरकार एक बार फिर पटरी पर चलती दिखने लगी. हालांकि जोड़तोड़ वाली ये सरकार विवादों में रही और मधु कोड़ा को इस्तीफा देना पड़ा. नतीजा ये हुआ कि कुर्सी की खींचतान में 4 बार सरकार बदली और शिबू सोरेन से होते हुए अंत में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ गया.

अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री की तीसरी पारी 11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 तक संभाली. विधानसभा चुनाव 2009 में भी स्पष्ट जनादेश नहीं होने के चलते जोड़तोड़ कर पहले शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन सरकार गिर गई और 102 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. इसके बाद जेएमएम के सहयोग से ही बीजेपी ने सरकार का गठन किया.

अर्जुन मुंडा को जेएमएम, आजसू, जेडीयू और दो निर्दलीय विधायकों ने बिना शर्त समर्थन दिया. अर्जुन मुंडा सीएम और हेमंत सोरेन डिप्टी सीएम बनाए गए. दोनों के बीच तालमेल नहीं बना तो 860 दिन बाद फिर से राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत आ गई. इसके बाद सत्ता के नए समीकरण बने और हेमंत सोरेन यूपीए के समर्थन से मुख्यमंत्री बन बैठे.

रांचीः अर्जुन मुंडा झारखंड की राजनीति में बड़े कद्दावर माने जाते हैं. राज्य में आदिवासियों के कल्याण की जिम्मेदारी संभालते-संभालते अब वे केंद्र में जनजातीय मामलों के मंत्रालय को संभाल रहे हैं. वक्त के साथ उनके कार्य क्षेत्र का दायरा बढ़ता जा रहा है. राज्य की राजनीति से निकलकर अब वे केंद्र की सियासत में ज्यादा सक्रिय हैं. (Arjun Munda Political Journey)

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झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को गठबंधन के दलों को साथ लेकर चलने का हुनर बखूबी आता है. अपने इसी हुनर के दम पर उन्हें तीन बार मुख्यमंत्री का पद संभालने का मौका मिला. इतना ही नहीं सिर्फ 35 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी बनाया और झारखंड में सबसे लंबे समय तक सीएम की कुर्सी भी संभाली.

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अर्जुन मुंडा के बारे में जानकारियां

जेएमएम से राजनीति की शुरुआत: जमशेदपुर के घोड़ाबांधा में जन्मे अर्जुन मुंडा ने 1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़कर राजनीतिक सफर की शुरुआत की. पहली बार वे 1995 में खरसावां विधानसभा सीट से जेएमएम की टिकट पर चुनाव जीते और फिर राज्य गठन के ऐन पहले बीजेपी में शामिल हो गए. साल 2000 और 2005 में भी खरसावां विधानसभा सीट से उनकी जीत हुई. अलग झारखंड का गठन होने के बाद उन्हें मरांडी कैबिनेट में समाज कल्याण मंत्री बनाया गया.

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निर्दलीय विधायकों ने किया तख्ता पलट: गठबंधन के नेताओं में मतभेद के चलते बाबूलाल मरांडी के इस्तीफे के बाद अर्जुन मुंडा ने 18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005 तक कुल 715 दिनों तक सत्ता की कमान संभाली. इसके बाद झारखंड विधानसभा चुनाव 2005 में जनादेश बिखरा हुआ मिला. बीजेपी को 30 सीटों पर जीत मिली. जेएमएम 17, कांग्रेस 9, आरजेडी 7, जेडीयू 6 और अन्य के खाते में 12 सीटें गईं. यूपीए के बैनर तले शिबू सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया लेकिन 10 दिनों के अंदर ही बहुमत साबित करने के दिन शिबू सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा.

ऐसे ही नाजुक हालात में अर्जुन मुंडा दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए. 12 मार्च 2005 से 14 सितंबर 2006 तक अर्जुन मुंडा ने कुर्सी संभाले रखी. इस दौरान शुरू की गई मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की पूरे देश में सराहना की गई. युवा सोच वाले अर्जुन झारखंड के विकास का लक्ष्य साध पाते, उससे पहले ही एक बार फिर राजनीतिक उथलपुथल तेज हो गई और यूपीए की शह पर निर्दलीय विधायकों ने मुंडा सरकार का तख्ता पलट दिया.

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झारखंड की राजनीति स्वार्थ सिद्धि का जरिया बन चुकी थी. हर छोटी-बड़ी बात पर विधायक अपना पाला बदल रहे थे. तब लालू यादव की पहल पर जगरनाथपुर से निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया गया और जेएमएम, कांग्रेस और राजद के समर्थन से सरकार एक बार फिर पटरी पर चलती दिखने लगी. हालांकि जोड़तोड़ वाली ये सरकार विवादों में रही और मधु कोड़ा को इस्तीफा देना पड़ा. नतीजा ये हुआ कि कुर्सी की खींचतान में 4 बार सरकार बदली और शिबू सोरेन से होते हुए अंत में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ गया.

अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री की तीसरी पारी 11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 तक संभाली. विधानसभा चुनाव 2009 में भी स्पष्ट जनादेश नहीं होने के चलते जोड़तोड़ कर पहले शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन सरकार गिर गई और 102 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. इसके बाद जेएमएम के सहयोग से ही बीजेपी ने सरकार का गठन किया.

अर्जुन मुंडा को जेएमएम, आजसू, जेडीयू और दो निर्दलीय विधायकों ने बिना शर्त समर्थन दिया. अर्जुन मुंडा सीएम और हेमंत सोरेन डिप्टी सीएम बनाए गए. दोनों के बीच तालमेल नहीं बना तो 860 दिन बाद फिर से राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत आ गई. इसके बाद सत्ता के नए समीकरण बने और हेमंत सोरेन यूपीए के समर्थन से मुख्यमंत्री बन बैठे.

Last Updated : Nov 14, 2022, 9:53 AM IST
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