रांचीः राजधानी रांची समेत राज्य के विभिन्न शहरों में स्थित निजी स्कूलों द्वारा स्कूल फी एवं अन्य मदों की राशि में इजाफा किया गया है. स्कूल प्रबंधन द्वारा लगभग 20 फीसदी तक की गई फी बढ़ोतरी ने कहीं ना कहीं अभिभावकों की परेशानी बढ़ा दी है. प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे प्रति बच्चा 500 से 700 रुपये अतिरिक्त देना होगा. झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण एक्ट 2019 की अनदेखी कर निजी विद्यालयों द्वारा मनमाने तरीके से की गई स्कूल फी वृद्धि पर अभिभावक मंच ने एतराज जताया है.
ये भी पढ़ेंः बिजली विभाग का वन टाइम सेटलमेंट स्कीम: जिसके लिए लाई गई योजना वही हैं उदासीन
अभिभावक मंच के अध्यक्ष अजय राय ने कहा है कि निजी स्कूलों द्वारा बढ़ाई गई स्कूल फी, कहीं ना कहीं गार्जियन पर भारी बोझ देने जैसा है. उन्होंने कहा कि यह छूट कहीं ना कहीं राज्य में शिक्षा न्यायाधिकरण के डिफंक्ड होने की वजह से मिली है. जिसके कारण मनमाने तरीके से स्कूल प्रबंधन अलग अलग ढंग से स्कूल फी से लेकर अन्य मदों में वृद्धि कर रहे हैं.
गौरतलब है कि राजधानी रांची सहित झारखंड के धनबाद, जमशेदपुर, देवघर जैसे शहरों में स्थित निजी स्कूलों में फी वृद्धि हुई है. जिसके खिलाफ जिला स्तर पर शिक्षा पदाधिकारी के समक्ष बड़े पैमाने पर अभिभावकों ने इसकी शिकायत की है. रांची में भी उपायुक्त के माध्यम से जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय तक शिकायत पहुंचनी शुरू हो गई है. इधर स्कूल प्रबंधन फी बढ़ोतरी के लिए अलग तर्क देते नजर आ रहे हैं. महंगाई के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर में की गई वृद्धि का हवाला देते हुए निजी स्कूल प्रबंधन इसे सही करार दे रहे हैं.
झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण है डिफंक्ड: झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण ही एक ऐसा मंच है जहां राज्य के प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने एवं अभिभावकों के द्वारा दर्ज शिकायत की सुनवाई होती है. मगर सरकार की यह संस्था भी डिफंक्ड है. हालत यह है कि शिक्षा न्यायाधिकरण में ना तो अध्यक्ष हैं और ना ही सदस्य. 13 दिसंबर 2021 से अध्यक्ष का पद खाली पड़ा है. न्यायाधिकरण में अध्यक्ष और सदस्य का पद खाली रहने के कारण स्कूलों की मनमानी शुरू हो गई है.
स्कूल प्रबंधन की प्रताड़ना के शिकार अभिभावकों शिकायतों पर किसी तरह की सुनवाई नहीं हो पा रही है. न्यायाधिकरण में करीब 80 शिकायत पत्र सुनवाई के लिए लटके हुए हैं. प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए 2010-11 में कई आदेश जारी किया गया था. स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए जिला प्रशासन स्तर पर कमेटी भी गठित की गई है. बस भाड़ा बढ़ाना हो या वार्षिक शुल्क या डेवलपमेंट शुल्क या ट्यूशन फीस में वृद्धि करनी हो, जिला स्तर पर बनी कमेटी और न्यायाधिकरण में इस संबंध में निर्णय लिया जाता रहा है. मगर जब से न्यायाधिकरण डिफंक्ड हुआ तब से यानि 2020 के बाद से मनमाने ढंग से फीस बढ़ोतरी होने शुरू हो गए.
बहरहाल अभिभावकों की नाराजगी के बीच जेवीएम श्यामली, डीपीएस, कैराली जैसे राजधानी के छोटे-बड़े निजी स्कूलों में पठन पाठन शुरू हो गए हैं. गार्जियन मजबूर हैं कि वे करें तो करें क्या, मगर नियम विरुद्ध जिस तरह से कोरोना काल में फी वृद्धि हुई, उसके बाद एक बार फिर नये शैक्षणिक सत्र में बढ़ोतरी की गई है, उस पर सरकार का मैकेनिज्म चुप है. उससे कहीं ना कहीं सवाल उठना लाजिमी ही है.