रांचीः लंबे संघर्ष के बाद अलग राज्य के रुप में बना झारखंड अपने स्थापना का 22 वर्ष पुरा करने जा रहा है. इसको लेकर सरकारी गैरसरकारी स्तर पर तैयारियां जोरों पर है. इन सबके बीच अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर लंबी लड़ाई लड़ने वाले झारखंड के आंदोलनकारी अपने आपको ठगा महसूस कर रहे (Jharkhand agitators fighting for honor for 22 years) हैं.
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पुलिस की लाठी और गोली खाने वाले झारखंड के हजारों स्थानीय लोग आज भी सरकार से मान सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं. अलग राज्य का सपना साकार होने के बाद मान सम्मान की लड़ाई लड़ने वाले झारखंड के आंदोलनकारियों को बीते 22 वर्ष में हालांकि काफी मांगें पूरी भी की गई हैं मगर आज भी इनकी बहुत सारी मांगें सरकार से जारी है. सरकार से इनकी नाराजगी की वजह आंदोलनकारियों को चिन्हित करने के लिए बने नियम हैं, जिसमें सरकारी लाभ वैसे आंदोलनकारियों को मिलेगा जो आंदोलन के दौरान या तो शहीद हो गये या जेल गये हों शामिल हैं. ऐसे में बहुसंख्यक सामान्य आंदोलनकारी आज भी पेंशन लाभ से दूर हैं.
अर्जुन मुंडा सरकार ने दिया था झारखंड आंदोलनकारियों को लाभः झारखंड बनने के बाद अलग राज्य के लिए संघर्ष करने वाले आंदोलनकारियों को 12 वर्ष बाद झारखंड सरकार ने सुध ली. 2012 में सर्वप्रथम अर्जुन मुंडा सरकार ने झारखंड आंदोलनकारियों के चिन्हितीकरण के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद के नेतृत्व में ना केवल आयोग गठित (Jharkhand Movement Marking Commission) किया बल्कि आंदोलनकारियों के लिए निर्णय (Initiative to identify agitators of Jharkhand) लिए. झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा के केंद्रीय संयोजक मुमताज अहमद खान बताते हैं कि अर्जुन मुंडा सरकार के समय सरकार ने झारखंड आंदोलन में शहीद हुए लोगों के परिजन को नौकरी और पेंशन की व्यवस्था शुरू की जिसके तहत 6 महीना से कम जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को 3000 रु. पेंशन और 6 महीना से अधिक जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को 5000रु प्रति माह पेंशन देने का निर्णय लिया गया. आंदोलनकारियों को चिन्हित करने के लिए तत्पश्चात आयोग का कार्यकाल लगातार बढाया जाता रहा मगर 22 वर्षों में अब तक सरकारी रेकॉर्ड में 4500 ही चिन्हित हो सके हैं जबकि 65 हजार आंदोलनकारी अलग राज्य में शामिल थे.
2012 के बाद 2021 में आंदोलनकारियों की मांग को एक बार फिर वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार ने सुनी. राज्य सरकार की नौकरियों में थर्ड और फोर्थ ग्रेड के पदों पर होने वाली भर्ती में 5 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का निर्णय लिया गया. इसके अलावा पेंशन की राशि में भी बढोत्तरी यूपीए सरकार ने करने का निर्णय लिया. निर्णय के अनुरूप अब आंदोलन के क्रम में 3 महीने से कम जेल में रहने वाले आंदोलनकारियों को 3500 प्रति माह पेंशन वहीं 3 माह से 6 महीने तक जेल में रहने वाले आंदोलनकारियों को 5000रुपया प्रति माह पेंशन और 6 माह से अधिक जेल में रहने वाले आंदोलनकारियों को 7000रु प्रतिमाह देने की घोषणा की गई.
इसके अलावा चिन्हित आंदोलनकारियों को प्रतीक चिन्ह एवं प्रमाण पत्र प्रदान करने का सरकार ने निर्णय लिया. मगर विडंबना यह है कि आंदोलनकारियों के परिजन को क्षैतिज आरक्षण देने का निर्णय कैबिनेट से पास होने के बाबजूद अभी तक गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है, जिस वजह से यह निर्णय सरकारी फायलों में दबकर रह गया है. वहीं झारखंड आंदोलनकारियों को पिछले पांच महीने से पेंशन लंबित है. ऐसे में झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि स्थापना दिवस के मौके पर लंबित पेंशन का भुगतान के अलावे आंदोलनकारियों को ताम्रपत्र और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जाए.