रांची: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों सरकारों को राज्य सूचना आयोग में लंबित अपीलों और रिक्तियों की स्थिति पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. साथ ही कोर्ट ने राज्य को 3 सप्ताह के भीतर रिक्त पदों को भरने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा है. नहीं तो कोर्ट की ओर से मुख्य सचिव को तलब किया जाएगा. समाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की याचिका पर न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने यह निर्देश दिया है.
राज्य में कितने पद
झारखंड में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्त के पद सृजित हैं. वर्तमान में सभी पद खाली है. 30 नवंबर 2019 से मुख्य सूचना आयुक्त पद खाली है, जबकि मई 2020 से राज्य सूचना आयोग में एक भी सूचना आयुक्त नहीं है. राज्य सूचना आयोग का कामकाज पूरी तरह ठप है. राज्य सरकार ने कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन से पहले (करीब डेढ साल पहले) सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकालकर प्रक्रिया शुरू भी की थी. 150 के करीब आवेदन सरकार के पास आए थे, लेकिन इसपर सरकार अब तक निर्णय नहीं ले पाई है.
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कितने मामले पेंडिंग
झारखंड राज्य सूचना आयोग में सुनवाई के लिए करीब 8000 से अधिक अपील मामले और 2700 से अधिक शिकायतें लंबित हैं. हर महीने 450-500 अपील आयोग तक पहुंचती है. हर दिन ऑनलाइन और ऑफलाइन करीब 70-80 अपील याचिका प्राप्त होती है, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त की बिना सहमति से याचिका पर आगे की कार्रवाई नहीं की जा सकती है.
नेता प्रतिपक्ष का रोड़ा
झारखंड में राज्य सूचना आयोग में करीब डेढ़ साल से मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का पद खाली है, जिनकी नियुक्ति सरकार के लिए काफी मुश्किल है. नियम के अनुसार सूचना आयुक्तों का मनोनयन मुख्यमंत्री के नेतृत्व में नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री की ओर से मनोनीत मंत्रिपरिषद के एक सदस्य वाली कमिटी की ओर से की जाती है. नेता प्रतिपक्ष का चयन अब तक नहीं होने के अलावा सरकार के सहयोगी दलों के बीच सूचना आयुक्तों के मनोनयन पर सामंजस्य नहीं बन पाना बड़ी वजह मानी जा रही है.
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क्या कहता है जेएमएम
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लेकर जेएमएम के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि सरकार कोशिश करेगी कि तय समय के अंदर मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का मनोनयन हो जाए. उन्होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष का नहीं होना इसके लिए कोई बड़ा हर्डल नहीं है. बीजेपी की तरफ से वरिष्ठ विधायक को बुलाकर जरूरी कोरम पूरा कर समय पर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.
संवैधानिक संस्थाओं को बनाया पंगु
झारखंड बीजेपी के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने इस मामले पर पार्टी की ओर से प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार की ओर से सभी संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बना दिया है. चुनाव आयोग से जेवीएम के बीजेपी में विलय की मान्यता मिलने और बीजेपी की ओर से बाबूलाल मरांडी को विधायक दल के नेता चुने जाने के बावजूद उन्हें अभी तक नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया गया है. इस कारण सूचना आयोग, लोकायुक्त समेत अनेक संवैधानिक संस्थाएं ठप हो गई हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी मांग करती है कि बाबूलाल को तुरंत नेता प्रतिपक्ष घोषित किया जाए और इस कारण जितनी नियुक्तियां लंबित हैं सभी को क्लियर किया जाए.
विधायक सरयू राय की राय
विधायक सरयू राय का कहना है कि बिना नेता प्रतिपक्ष के राज्य में मुख्य सूचना आयुक्त, आयुक्तों और लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा कि ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति तीन हफ्ते में हो पाना मुश्किल लग रहा है. सरयू राय ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता दे देनी चाहिए, जिससे राज्य में लंबित नियुक्तियां जल्द भरी जा सके.
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क्या कहते हैं अधिवक्ता
झारखंड हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव कुमार का कहना है कि सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में कोई बाधा नहीं है. नेता प्रतिपक्ष के नहीं होने पर सरकार बीजेपी के वरिष्ठ विधायक को सेलेक्शन कमेटी की बैठक में बुला सकती है. अगर सरकार ऐसा करती है और बीजेपी इसके लिए राजी हो जाती है तो मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के मनोनयन में कोई कठिनाई नहीं आएगी.
वरिष्ठ पत्रकार की राय
इधर, वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा का कहना है कि सरकार चाहेगी तो विधि परामर्श लेकर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन कर सकती है. सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर कमेटी में मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री की ओर से मनोनीत मंत्रिमंडल के एक सदस्य होते हैं. प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी ने पहले ही बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुनकर बतौर नेता प्रतिपक्ष की मान्यता देने को कहा है. लेकिन बाबूलाल को लेकर दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर कोर्ट में मामला लंबित है और बहुत जल्दी इस पर फैसला आए, फिलहाल ऐसा दिखता नहीं. तब सरकार कानूनी राय लेकर कोर्ट के आदेश का अनुपालन कर सकती है. नीरज सिन्हा ने कहा कि मौजूदा स्थिति को देखकर कई मामलों में सरकार नियमों को शिथिल भी करती है. इस मामले में देखना होगा कि सरकार क्या कदम उठाती है.
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झारखंड के मुख्य सूचना आयुक्त
आरटीआई लागू होने के बाद सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति हरिशंकर प्रसाद के नेतृत्व में 30 जुलाई 2006 को झारखंड को पहला मुख्य सूचना आयुक्त मिला था. न्यायमूर्ति हरिशंकर प्रसाद 30 जून 2008 को सेवानिवृत्त हो गए. इसके बाद सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति दिलीप कुमार सिन्हा को 5 अगस्त 2011 को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया. 31 जुलाई 2014 को मुख्य सूचना आयुक्त दिलीप कुमार सिन्हा के सेवानिवृत्त होने के 9 माह बाद 24 अप्रैल 2015 को भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अफसर आदित्य स्वरूप को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया. आदित्य स्वरूप का कार्यकाल 30 नवंबर 2019 को खत्म हो गया.
राज्य सूचना आयुक्त
राज्य के पहले मुख्य सूचना आयुक्त न्यायमूर्ति हरिशंकर प्रसाद के साथ रामविलास गुप्ता, प्रफुल्ल कुमार महतो, सृष्टिधर महतो, गंगोत्री कुजूर और बैजनाथ मिश्र सूचना आयुक्त बनाए गए थे. इन सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 29 जुलाई 2011 को खत्म हो गया. इसके बाद 3 अप्रैल 2013 को प्रबोध रंजन दास की नियुक्ति हुई. 9 मई 2015 को हिमांशु शेखर चौधरी सूचना आयुक्त बने. हिमांशु शेखर चौधरी भी रिटायर हो चुके हैं.
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झारखंड हाई कोर्ट में भी मामला
झारखंड राज्य सूचना आयोग के फंक्शनल नहीं होने को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में भी एक याचिका दायर है. 3 अगस्त को इस मामले में हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को तलब किया है. अदालत ने आदेश दिया है कि मुख्य सचिव खुद कोर्ट को बताएं कि राज्य सूचना आयोग क्यों नहीं फंक्शनल है? कब इसे फंक्शनल बनाया जाएगा. कोर्ट ने पूछा है कि अब तक आयोग में कितनी अपील याचिकाएं लंबित हैं. अदालत ने इन तमाम बिंदुओं पर 6 हफ्ते में विस्तृत शपथ पत्र पेश करने को कहा है.