रांची: इसमें कोई शक नहीं कि सूचना के अधिकार कानून ने व्यवस्था में पारदर्शिता लाने में अहम भूमिका निभाई है. इस कानून ने एक आम इंसान को असीम शक्तियां दी है, इसकी बदौलत कई मामले सामने आए हैं. कहा जाता है कि विकास के नाम पर घपलेबाजी करने वालों की आरटीआई के नाम से ही सांसें फूलने लगती हैं. लेकिन इस कानून का सदुपयोग के साथ-साथ दुरुपयोग भी बढ़ा है.
पेंडिंग फाइल के बोझ तले दबा सूचना आयोग
झारखंड के संदर्भ में आरटीआई की अहमियत और भी बढ़ जाती है. इसकी कई वजहें रही है. 2014 से पहले तक अस्थाई सरकारों का दौर रहा और उस दौरान कई घपले घोटाले हुए. मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सलाखों के पीछे गए. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि झारखंड का सूचना आयोग पेंडिंग फाइल के बोझ तले दबा हुआ है. यहां तारीख पर तारीख मिल रही है. आपको जानकर हैरानी होगी कि सेकंड अपील के ऐसे कई मामले हैं जिस पर सुनवाई के लिए 2022 की तारीख दी गई है.
2006 में झारखंड को मिला था पहला मुख्य सूचना आयुक्त
झारखंड सूचना आयोग की पूरी व्यवस्था पर सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर से हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने बातचीत की. सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर ने बेबाकी से कहा कि सूचना आयोग की आस्था के प्रति लोगों में कोई कमी नहीं आई है. अगर कमी आई होती तो सूचना मांगने के मामले में कमी दिखती. लेकिन उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि आरटीआई का जमकर दुरुपयोग हो रहा है. अपना हित साधने के लिए तथाकथित आरटीआई एक्टिविस्ट इस कानून का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं. पेंडिंग केस की एक सबसे बड़ी वजह है मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों का पद रिक्त होना. आरटीआई लागू होने के बाद सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति हरिशंकर प्रसाद के नेतृत्व में 30 जुलाई 2006 को झारखंड को पहला मुख्य सूचना आयुक्त मिला था. उनके साथ रामविलास गुप्ता, प्रफुल्ल कुमार महतो, सृष्टिधर महतो, गंगोत्री कुजूर और बैजनाथ मिश्र सूचना आयुक्त बनाए गए थे.
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2015 हिमांशु शेखर चौधरी बने थे सूचना आयुक्त
न्यायमूर्ति हरिशंकर प्रसाद 30 जून 2008 को सेवानिवृत्त हो गए जबकि शेष सूचना आयुक्त 29 जुलाई 2011 को. इसके बाद सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति दिलीप कुमार सिन्हा को 5 अगस्त 2011 को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया. लेकिन उन्हें 3 अप्रैल 2013 को प्रबोध रंजन दास के रुप सूचना आयुक्त मिला. यानी 29 जुलाई 2011 से ही यहां की व्यवस्था चरमरा गयी. 31 जुलाई 2014 को मुख्य सूचना आयुक्त दिलीप कुमार सिन्हा के सेवानिवृत्त होने के 9 माह बाद 24 अप्रैल 2015 को भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अफसर आदित्य स्वरूप को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया. उनके साथ 9 मई 2015 को हिमांशु शेखर चौधरी सूचना आयुक्त बने. आदित्य स्वरूप का कार्यकाल 30 नवंबर 2019 को खत्म हो गया. अब आप समझ सकते हैं कि तबसे हिमांशु शेखर चौधरी इस आयोग में आने वाले मामलों की सुनवाई और निपटारा अकेले कर रहे हैं.
नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी
फिलहाल झारखंड राज्य सूचना आयोग में पेंडिंग अपील की संख्या 9268 है. यह बताने के लिए काफी है की आम लोगों के अधिकार को लेकर पूर्ववर्ती सरकार कितना गंभीर थी। झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नई सरकार बनी है और सूचना आयोग के रिक्त पदों को भरने की कवायद शुरू हुई है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में पेंडिंग मामलों का निपटारा जल्द होगा और लोगों को उनके सवालों का सही जवाब मिलेगी. व्यवस्था दुरुस्त होगी तो पारदर्शिता आएगी और घपले घोटाले करने की मंशा रखने वालों पर लगाम लगेगा. क्योंकि कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग ने सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 15(2) (ख) के प्रावधानों के अधीन झारखंड राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए 6 पद निर्धारित किए हैं और इसके लिए विज्ञापन भी निकल चुका है.