रांची: सूबे में खुलेआम दिनभर मयखाना सजती है. ये वाक्या है धुर्वा शहीद मैदान का. सरकार ने इन देसी मयखानों को रोकने के लिए अभियान भी चलाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. फूलो झानो आशीर्वाद अभियान के तहत हड़िया दारू बेचने वाली महिलाओं को रोजगारोन्मुख बनाने का दावा किया गया था. सच्चाई ये है कि हड़िया दारू बेचकर जीवकोपार्जन करने वाली महिलाओं को पता नहीं कि इस अभियान के तहत उन्हें कैसे लाभ मिलेगा.
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राजधानी के बीचों बीच सजी इन दुकानों को देखकर आपको लगेगा कि ये कोई हाट बाजार है, लेकिन हकीकत यह नहीं है. धुर्वा शहीद मैदान के सामने दिनभर लगने वाले इस देसी मयखाने में एक साथ सैकड़ों हड़िया दारू की दुकान लगती है, जहां राजधानी में किसी काम से आने वाले लोग इसमें देसी मयखाना का आनंद उठाते हैं. इस देसी मयखाने में अधिकांश महिलाएं हैं, जो हड़िया दारु बेचने का काम करती हैं. अवैध काम मानते हुए भी महिलाएं इसे जीवकोपार्जन से जोड़कर देखती हैं.
फूलो झानो आशीर्वाद अभियान महज दिखावा
खुलेआम हड़िया दारू बिक्री को रोकने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने इस काम में लगी महिलाओं को दूसरे रोजगार से जोड़ने के लिए 29 सितंबर, 2020 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से फूलो झानो आशीर्वाद अभियान की शुरुआत की गई थी. ये अभियान पूरी तरह सफल होता हुआ नहीं दिख रहा है. हालांकि ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम (Rural Development Minister Alamgir Alam) ने इस अभियान को सफल मानते हुए कहा है कि इसके तहत दस हजार ऐसी महिलाओं को रोजगार से जोड़ने का प्रारंभिक लक्ष्य विभाग की ओर से रखा गया था. इसमें करीब 9 हजार महिलाओं को रोजगारोन्मुख करने में सफलता मिली है. कोई महिला चाय की दुकान चला रही है, तो कोई स्वयं सहायता समूह के माध्यम से काम कर रही है. सरकार ने दस हजार रुपए प्रोत्साहन राशि ऐसी महिलाओं को दी है.
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अभियान के बारे में महिलाएं अनजान
हड़िया दारु बेचने वाली ऐसी महिलाओं के लिए 29 सितंबर, 2020 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से फूलो झानो आशीर्वाद अभियान की शुरुआत की गई थी. राज्य आजीविका मिशन की ओर से ना केवल जागरूकता अभियान बल्कि महिलाओं को रोजगारोन्मुख बनाने का दावा किया गया है. लाभ की बात तो दूर, इन महिलाओं को पता तक नहीं है कि इसके तहत उन्हें कैसे लाभ मिलेगा. जबकि सरकार जागरूकता फैलाने के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर रही है. फूलो झानो योजना के तहत हड़िया-दारू के निर्माण और बिक्री से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं को चिह्नित कर सम्मानजनक आजीविका के साधनों से जोड़ना था. जिस तरह से धुर्वा के शहीद मैदान के सामने खुलेआम देसी मयखाना सजता है, उससे साफ जाहिर होता है कि इस योजना का लाभ कई लोगों को मिल रहा है.