रांची: कोरोना ने हमें यह बता दिया कि अगर मजबूत इम्यून सिस्टम नहीं है तो आपकी जान खतरे में पड़ सकती है. आपको हमेशा बिमारियों का खतरा बना रहेगा. आमतौर पर इम्युनिटी बढ़ाने के लिए डॉक्टर फल और हरी सब्जियों के सेवन की सलाह देते हैं. लेकिन, यह जानते हुए भी कि सब्जी को तैयार करने में यूरिया, डीएपी और कीटनाशक का इस कदर इस्तेमाल होता है, जिससे स्वास्थ्य को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है. फिर भी लोग इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. इससे बचने का एकमात्र उपाय है कि ऑर्गेनिक यानी पुराने तरीके से बिना केमिकल और पेस्टिसाइड के खेती. लेकिन, ज्यादा उत्पादन के लालच में किसान इसे जोखिम की राह समझ रहे हैं.
मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की बजाय खेती के गुर सिखा रहे सिद्धार्थ
सबसे बड़ा सवाल है कि ऑर्गेनिक सब्जी कैसे मिलेगी. यह संभव है. इसे संभव कर दिखाया है आईआईएम अहमदाबाद से पास आउट सिद्धार्थ जयसवाल ने. मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी करने की बजाय सिद्धार्थ ने खेतों की ओर मुड़ना मुनासिब समझा. गुजरात समेत कई राज्यों में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश की लेकिन इस राह में कई रोड़े आए. उन्हें लगा कि बगैर किसी सरकारी संस्था से जुड़े किसानों का भरोसा नहीं जीता जा सकता. इसलिए 2012 में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ज्वाइन कर लिया. बिजनेस डेवलपमेंट एंड प्लान डिपार्टमेंट के सीईओ के तौर पर सिद्धार्थ जयसवाल ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं. उन्होंने इस दिशा में कई सफल काम किए हैं.
कम्यूनिटी बनाकर शुरू की फार्मिंग
रांची से चंद किलोमीटर दूर कांके प्रखंड के दुबलिया में सिद्धार्थ ने ऑर्गेनिक फार्मिंग को लेकर पहल की है. कोरोना काल में कई लोग सिद्धार्थ जयसवाल से मिले. ऑर्गेनिक सब्जी की चाहत दिखाई. लेकिन, खेत और खेती के गुर सीखे बगैर ऑर्गेनिक सब्जी कैसे उपजती भला. इस समस्या का हल निकालने के लिए सिद्धार्थ रांची स्थित सत्यानंद आश्रम के स्वामी ज्ञान विजय सरस्वती से मिले. दुबलिया में आश्रम की ओर से लीज पर ली गई 5 एकड़ में से सवा एकड़ जमीन कम्युनिटी फार्मिंग के लिए मांगी. आश्रम को भरोसा दिलाया कि बाकी जमीन में आश्रम की डेयरी के लिए चारा मुहैया कराया जाएगा. साथ ही ऑर्गेनिक सब्जी उपजाकर आसपास के किसानों को मोटिवेट किया जाएगा और उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. स्वामी जी ने सहमति दे दी.
स्वामी जी की सहमति मिलने के बाद सिद्धार्थ ने कम्युनिटी बनाई और अब मल्टी लेयर फार्मिंग शुरू हो चुकी है. अलग-अलग सोयल बेड तैयार किया गया है जिसे 7 भागों में बांटा गया है. सभी बेड पर 4 तरह की सब्जियां अलग-अलग समय में लगाई गई हैं. खाद के रूप में अमृत जल का इस्तेमाल होता है जिसे गोबर, मूत्र और गुड़ से तैयार किया जाता है. यहां देसी बीज का इस्तेमाल किया गया है. सिद्धार्थ का कहना है कि देसी बीज से तैयार सब्जियों में न्यूट्रीशन की मात्रा हाइब्रिड बीज से तैयार सब्जियों की तुलना में बहुत ज्यादा होती है. फार्मिंग के लिए जो कम्युनिटी बनाई गई है उसमें वैसे लोग हैं जो शहरों में अच्छी जिंदगी जीते हैं लेकिन स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है.
लॉन्ग टर्म में अच्छा मुनाफा देता है ऑर्गेनिक फार्मिंग
कम्युनिटी फार्मिंग से जुड़े राजेश और अमित का कहना है कि खेत से जो भी सब्जी निकलेगी वह कम्युनिटी में शामिल 15 परिवारों को मिलेगी. सब्जी का ज्यादा उत्पादन होगा तो उसे बेच दिया जाएगा. खेत में काम करने वाले मजदूर ने बताया कि जब अनगड़ा स्थित अपने गांव लौटेंगे तब अपने खेत में भी ऑर्गेनिक खेती करेंगे. उसने कहा कि जब उसकी खेती अच्छी होगी तब गांव के किसान खुद उस राह पर चल पड़ेंगे. सिद्धार्थ ने कहा कि ऑर्गेनिक तरीके से मल्टी लेयर फार्मिंग के इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने में सिर्फ एक बार ज्यादा खर्च करना पड़ता है लेकिन लॉन्ग टर्म में परंपरागत खेती की तुलना में कम लागत आती है. ऑर्गेनिक सब्जियों के अच्छे दाम मिलते हैं. किसानों को अच्छा मुनाफा होता है.