रांचीः हिंदी भाषा को विश्व की प्राचीन समृद्ध और सरल भाषा माना जाता है. हिंदी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल, संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूजीलैंड, जर्मनी आदि देशों में भी बोली जाती है. हिंदी हमारी राजभाषा और मातृभाषा होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार है. दुनिया की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था एंथोलॉग के मुताबिक हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी. वहीं, 1950 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है.
हिंदी भाषा की देश में है यह स्थिति
हालांकि, भारत विभिनता वाला देश है. यहां हर राज्य हर क्षेत्र में भाषाएं बदल जाती हैं. तमाम राज्यों की अपनी अलग भाषा, सांस्कृतिक, वेशभूषा और ऐतिहास है. इसके बावजूद हिंदी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. इसी वजह से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था. इसके साथ ही देश के ही कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने हिंदी को राजभाषा बनाए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी, लेकिन फिर भी हिंदी को राजभाषा बनाया गया. वैसे देखा जाए तो अभी हालात कुछ ऐसे ही हैं, लोग अंग्रेजी भाषा को अत्याधिक उपयोग करने लगे हैं. लोगों के लिए अंग्रेजी भाषा एक स्टेटस सिंबल बन चुका है. आज अभिभावक अपने बच्चों को हिंदी माध्यम से नहीं बल्कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों से पढ़ाना चाहते हैं. हिंदी भाषा की अहमित युवा पीढ़ी को नहीं हैं. हिंदी भाषा को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है जिससे युवा पीढ़ी भी अपनी मातृभाषा से पूरी तरीके से रूबरू हो सके.
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हिंदी व्याख्याता और प्राध्यापक का क्या है कहना
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध हिंदी व्याख्याता और विभाग के प्राध्यापक यशोदा राठौर का कहना है कि दैनिक पखवाड़ा कार्यक्रम और आयोजन से कुछ नहीं होगा. बोलचाल की भाषा में हिंदी को आगे लाना होगा. अंग्रेजी शब्दों के बजाय हिंदी शब्दों का प्रचलन ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहिए, तब जाकर कहीं हिंदी विश्व पटल पर छाएगा और देश के हर बच्चे को हिंदी के शब्द गर्व से प्रयोग कर सकेंगे.