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देश में हिंदी भाषा की स्थिति को लेकर हिंदी व्यख्याता ने जताई चिंता, जानिए उनका क्या है कहना - हिंदी दिवस

साल 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस मनाया जाता रहा है. हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. लेकिन भारत में ही इस भाषा को उपेक्षा के नजर से देखा जाता है. हिंदी के प्रसिद्ध प्राध्यापक यशोदा राठौर ने हिंदी की दुर्दशा को लेकर चिंता व्यक्त की है.

हिंदी व्यख्याता हैं भाषा कि स्थिती को लेकर हैं चिंतित
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Published : Sep 14, 2019, 8:33 PM IST

Updated : Sep 14, 2019, 11:38 PM IST

रांचीः हिंदी भाषा को विश्व की प्राचीन समृद्ध और सरल भाषा माना जाता है. हिंदी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल, संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूजीलैंड, जर्मनी आदि देशों में भी बोली जाती है. हिंदी हमारी राजभाषा और मातृभाषा होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार है. दुनिया की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था एंथोलॉग के मुताबिक हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी. वहीं, 1950 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है.

देखें पूरी खबर

हिंदी भाषा की देश में है यह स्थिति
हालांकि, भारत विभिनता वाला देश है. यहां हर राज्य हर क्षेत्र में भाषाएं बदल जाती हैं. तमाम राज्यों की अपनी अलग भाषा, सांस्कृतिक, वेशभूषा और ऐतिहास है. इसके बावजूद हिंदी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. इसी वजह से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था. इसके साथ ही देश के ही कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने हिंदी को राजभाषा बनाए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी, लेकिन फिर भी हिंदी को राजभाषा बनाया गया. वैसे देखा जाए तो अभी हालात कुछ ऐसे ही हैं, लोग अंग्रेजी भाषा को अत्याधिक उपयोग करने लगे हैं. लोगों के लिए अंग्रेजी भाषा एक स्टेटस सिंबल बन चुका है. आज अभिभावक अपने बच्चों को हिंदी माध्यम से नहीं बल्कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों से पढ़ाना चाहते हैं. हिंदी भाषा की अहमित युवा पीढ़ी को नहीं हैं. हिंदी भाषा को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है जिससे युवा पीढ़ी भी अपनी मातृभाषा से पूरी तरीके से रूबरू हो सके.

ये भी पढ़ें- हिंदी दिवस विशेष: अंग्रेजी बोलने का मतलब हिंदी को भूलना नहीं है!


हिंदी व्याख्याता और प्राध्यापक का क्या है कहना
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध हिंदी व्याख्याता और विभाग के प्राध्यापक यशोदा राठौर का कहना है कि दैनिक पखवाड़ा कार्यक्रम और आयोजन से कुछ नहीं होगा. बोलचाल की भाषा में हिंदी को आगे लाना होगा. अंग्रेजी शब्दों के बजाय हिंदी शब्दों का प्रचलन ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहिए, तब जाकर कहीं हिंदी विश्व पटल पर छाएगा और देश के हर बच्चे को हिंदी के शब्द गर्व से प्रयोग कर सकेंगे.

रांचीः हिंदी भाषा को विश्व की प्राचीन समृद्ध और सरल भाषा माना जाता है. हिंदी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल, संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूजीलैंड, जर्मनी आदि देशों में भी बोली जाती है. हिंदी हमारी राजभाषा और मातृभाषा होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार है. दुनिया की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था एंथोलॉग के मुताबिक हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी. वहीं, 1950 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है.

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हिंदी भाषा की देश में है यह स्थिति
हालांकि, भारत विभिनता वाला देश है. यहां हर राज्य हर क्षेत्र में भाषाएं बदल जाती हैं. तमाम राज्यों की अपनी अलग भाषा, सांस्कृतिक, वेशभूषा और ऐतिहास है. इसके बावजूद हिंदी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. इसी वजह से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था. इसके साथ ही देश के ही कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने हिंदी को राजभाषा बनाए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी, लेकिन फिर भी हिंदी को राजभाषा बनाया गया. वैसे देखा जाए तो अभी हालात कुछ ऐसे ही हैं, लोग अंग्रेजी भाषा को अत्याधिक उपयोग करने लगे हैं. लोगों के लिए अंग्रेजी भाषा एक स्टेटस सिंबल बन चुका है. आज अभिभावक अपने बच्चों को हिंदी माध्यम से नहीं बल्कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों से पढ़ाना चाहते हैं. हिंदी भाषा की अहमित युवा पीढ़ी को नहीं हैं. हिंदी भाषा को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है जिससे युवा पीढ़ी भी अपनी मातृभाषा से पूरी तरीके से रूबरू हो सके.

ये भी पढ़ें- हिंदी दिवस विशेष: अंग्रेजी बोलने का मतलब हिंदी को भूलना नहीं है!


हिंदी व्याख्याता और प्राध्यापक का क्या है कहना
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध हिंदी व्याख्याता और विभाग के प्राध्यापक यशोदा राठौर का कहना है कि दैनिक पखवाड़ा कार्यक्रम और आयोजन से कुछ नहीं होगा. बोलचाल की भाषा में हिंदी को आगे लाना होगा. अंग्रेजी शब्दों के बजाय हिंदी शब्दों का प्रचलन ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहिए, तब जाकर कहीं हिंदी विश्व पटल पर छाएगा और देश के हर बच्चे को हिंदी के शब्द गर्व से प्रयोग कर सकेंगे.

Intro:हिंदी दिवस स्पेशल.....



वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस मनाया जाता रहा है .हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. लेकिन भारत में ही इस भाषा को उपेक्षा के नजर से देखा जाता है. आजकल अंग्रेजी का चलन इतना बढ़ा है कि लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी सीखने का नसीहत देते हैं. जबकि मातृभाषा और राजभाषा हिंदी में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है .यह चिंताजनक विषय है और इसी विषय को लेकर हमारी टीम ने हिन्दी के प्रसिद्ध हिंदी प्राध्यापक यशोदा राठौर से खास बातचीत की है. उन्होंने भी हिंदी की दुर्दशा को लेकर चिंता व्यक्त किया है...


Body:हिंदी विश्व की प्राचीन समृद्ध और सरल भाषा माना जाता है .हिंदी भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में बोली जाती है. हिंदी हमारी राजभाषा और मातृभाषा होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार है .दुनिया की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था एंथोलॉग के मुताबिक हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी .वहीं 1950 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है. हालांकि भारत विभिनता वाला देश है .यहां हर राज्य हर क्षेत्र में भाषाएं बदलती है. तमाम राज्यों की अपनी अपनी अलग सांस्कृतिक राजनीतिक और ऐतिहासिक पहचान तो है ही .भाषाएं भी अलग-अलग बोली जाती है .इसके बावजूद हिंदी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. इसीलिए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था. हालांकि देश के ही कुछ जाने-माने ऐसे लोग थे जो हिंदी को राजभाषा बनाए जाने पर आपत्ति दर्ज कराया था .लेकिन फिर भी हिंदी को राजभाषा बनाया गया. लेकिन अभी काफी कुछ हासिल करना है. हिंदी को लेकर जन जागरूकता अभियान छेड़ने की जरूरत है .आज भी अभिभावक अपने बच्चों को यह कहते हैं कि आप अंग्रेजी सीखिए हिंदी तो अपनी भाषा है .लेकिन उनके हिंदी इतनी खराब है कि कुछ शब्दों को तो वह सही-सही बोल भी नहीं पाते हैं और अपनी मात्र भाषा राजभाषा को लोग भूलते जा रहे हैं. वर्तमान समय में शिक्षा की भी यही हालत है. अंग्रेजी की ओर लोग आकर्षित होते हैं लेकिन हिंदी को भूल रहे हैं.


Conclusion:ऐसे ही कई सवालों का जवाब ढूढंने हमारी टीम डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध हिंदी व्याख्याता और विभाग के प्राध्यापक यशोदा राठौर से खास बातचीत की है.उनकी माने तो दैनिक पखवाड़ा कार्यक्रम और आयोजन से कुछ नहीं होगा. बोलचाल की भाषा में हिंदी को आगे लाना होगा .अंग्रेजी शब्दों के बजाय हिंदी शब्दों का प्रचलन ज्यादा से ज्यादा बढ़ानी होगी .तब जाकर हिंदी विश्व पटल पर छाएगा और देश के हर बच्चे हिंदी के शब्द गर्व से कहेंगे.


बाइट-यशोदा राठौर, हिंदी व्यख्याता।
Last Updated : Sep 14, 2019, 11:38 PM IST
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