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विधानसभा के पटल पर हिन्दी में सरकार रखेगी विधेयक, जानिए इसके पीछे का राज, क्या यह संवैधानिक रुप से है सही

झारखंड सरकार ने फैसला लिया है कि विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सदन के पटल पर हिन्दी में विधेयक रखेगी. क्योंकि कई मौकों पर हिन्दी और अंग्रेजी के ड्राफ्ट में अंतर के कारण राजभवन से बिल को वापस लौटा दिए गए हैं. लेकिन क्या हिन्दी में विधेयक पेश करना संवैधिनक रूप से सही है, पढ़िए इस रिपोर्ट में...

Jharkhand Vidhansabha Monsoon Session
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Published : Jul 26, 2023, 8:53 PM IST

Updated : Jul 26, 2023, 9:59 PM IST

देखें पूरी खबर

रांची: मानसून सत्र के दौरान इस बार सरकार द्वारा जो भी विधेयक सदन पटल पर रखे जायेंगे वो हिन्दी में होगा. सरकार के द्वारा इन विधेयकों को विधानसभा से पास करा कर यथापारित विधेयक की कॉपी को राजभवन भेजा जायेगा. आम तौर पर सदन में हिन्दी और अंग्रेजी में विधेयक की कॉपी तैयार की जाती रही है मगर हाल के दिनों में हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में तैयार बिल की कॉपी में अंतर होने और उसके बाद राजभवन से बिल को वापस करने से सरकार को फजीहत झेलनी पड़ रही है. ऐसे में सरकार ने यह तरीका अपनाने का निर्णय लिया है. स्पीकर रबीन्द्रनाथ महतो के अनुसार हिन्दी में पारित विधेयक को बाद में राजभवन या सरकार द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित की जा सकती है.

ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से, सदन की कार्यवाही को लेकर विभिन्न दलों की बैठक, बीजेपी ने बनाई दूरी

संवैधानिक रुप से अंग्रेजी में लिखित विधेयक ही है मान्य: संवैधानिक रुप से अंग्रेजी में लिखित विधेयक ही मान्य है. हिन्दी और अंग्रेजी में लिखित विधेयक के संबंध में संविधान की धारा 348 के अध्याय तीन के खंड ख में स्पष्ट रुप से इसका जिक्र किया गया है. जिसमें कहा गया है कि संसद या किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के और इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उप विधियों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे.

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1932 आधारित स्थानीयता सहित कई विधेयक लाने की है तैयारी: मानसून सत्र के दौरान राज्य सरकार राजभवन से लौटाए गए कई विधेयक को संशोधित कर एक बार फिर सदन के पटल पर लाने की तैयारी में है जिसमें बहुचर्चित स्थानीय नीति से जुड़ा हुआ विधेयक शामिल है. सरकार 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के साथ साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा बढाते हुए पिछड़ों को 27%प्रतिशत आरक्षण के साथ राज्य में कुल 77% आरक्षण से संबंधित संशोधित विधेयक सदन में लाने की तैयारी कर रही है.

इसके अलावा मॉब लिंचिंग, झारखंड स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक 2023, झारखंड माल और सेवा कर संशोधन विधेयक 2023, प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम व निवारण के उपाय) अधिनियम 2023 आदि शामिल है. इन विधेयक को सिर्फ हिन्दी भाषा में सदन के पटल पर लाई जाती है तो इसके लटकने की संभावना है.

इधर सदन में सरकार के द्वारा विधेयक को लाने की हो रही तैयारी पर सियासत शुरू हो गई है. बीजेपी विधायक सीपी सिंह ने विधेयक के हिन्दी और अंग्रेजी में होने वाले अंतर पर आलोचना करते हुए कहा है कि यदि सरकार सावधानी नहीं बरतेगी तो राजभवन से वापस होना तय है. इधर अपनी ही सरकार और हमला बोलने वाले झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने कहा है कि 1932 आधारित स्थानीय नीति सुनते सुनते अब लोग उबने लगे हैं. ऐसे में सरकार की नीयत यदि साफ नहीं होगी तो सदन में एक बार फिर मेरे द्वारा अपने ही सरकार पर हमला बोला जाएगा.

बहरहाल पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए आवश्यकता इस बात की है कि सदन में जो भी विधेयक लाये जाएं वो संवैधानिक रुप से सही और सटीक हों जिससे राजभवन से वापस आने की नौबत ना आए.

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रांची: मानसून सत्र के दौरान इस बार सरकार द्वारा जो भी विधेयक सदन पटल पर रखे जायेंगे वो हिन्दी में होगा. सरकार के द्वारा इन विधेयकों को विधानसभा से पास करा कर यथापारित विधेयक की कॉपी को राजभवन भेजा जायेगा. आम तौर पर सदन में हिन्दी और अंग्रेजी में विधेयक की कॉपी तैयार की जाती रही है मगर हाल के दिनों में हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में तैयार बिल की कॉपी में अंतर होने और उसके बाद राजभवन से बिल को वापस करने से सरकार को फजीहत झेलनी पड़ रही है. ऐसे में सरकार ने यह तरीका अपनाने का निर्णय लिया है. स्पीकर रबीन्द्रनाथ महतो के अनुसार हिन्दी में पारित विधेयक को बाद में राजभवन या सरकार द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित की जा सकती है.

ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से, सदन की कार्यवाही को लेकर विभिन्न दलों की बैठक, बीजेपी ने बनाई दूरी

संवैधानिक रुप से अंग्रेजी में लिखित विधेयक ही है मान्य: संवैधानिक रुप से अंग्रेजी में लिखित विधेयक ही मान्य है. हिन्दी और अंग्रेजी में लिखित विधेयक के संबंध में संविधान की धारा 348 के अध्याय तीन के खंड ख में स्पष्ट रुप से इसका जिक्र किया गया है. जिसमें कहा गया है कि संसद या किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के और इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उप विधियों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे.

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1932 आधारित स्थानीयता सहित कई विधेयक लाने की है तैयारी: मानसून सत्र के दौरान राज्य सरकार राजभवन से लौटाए गए कई विधेयक को संशोधित कर एक बार फिर सदन के पटल पर लाने की तैयारी में है जिसमें बहुचर्चित स्थानीय नीति से जुड़ा हुआ विधेयक शामिल है. सरकार 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के साथ साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दायरा बढाते हुए पिछड़ों को 27%प्रतिशत आरक्षण के साथ राज्य में कुल 77% आरक्षण से संबंधित संशोधित विधेयक सदन में लाने की तैयारी कर रही है.

इसके अलावा मॉब लिंचिंग, झारखंड स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक 2023, झारखंड माल और सेवा कर संशोधन विधेयक 2023, प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम व निवारण के उपाय) अधिनियम 2023 आदि शामिल है. इन विधेयक को सिर्फ हिन्दी भाषा में सदन के पटल पर लाई जाती है तो इसके लटकने की संभावना है.

इधर सदन में सरकार के द्वारा विधेयक को लाने की हो रही तैयारी पर सियासत शुरू हो गई है. बीजेपी विधायक सीपी सिंह ने विधेयक के हिन्दी और अंग्रेजी में होने वाले अंतर पर आलोचना करते हुए कहा है कि यदि सरकार सावधानी नहीं बरतेगी तो राजभवन से वापस होना तय है. इधर अपनी ही सरकार और हमला बोलने वाले झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने कहा है कि 1932 आधारित स्थानीय नीति सुनते सुनते अब लोग उबने लगे हैं. ऐसे में सरकार की नीयत यदि साफ नहीं होगी तो सदन में एक बार फिर मेरे द्वारा अपने ही सरकार पर हमला बोला जाएगा.

बहरहाल पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए आवश्यकता इस बात की है कि सदन में जो भी विधेयक लाये जाएं वो संवैधानिक रुप से सही और सटीक हों जिससे राजभवन से वापस आने की नौबत ना आए.

Last Updated : Jul 26, 2023, 9:59 PM IST
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