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विस्थापितों को लाभ नहीं दिए जाने के मामले में दायर याचिका पर हुई सुनवाई, झारखंड हाई कोर्ट ने सचिव से पूछे कई सवाल

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Published : Feb 5, 2020, 10:06 PM IST

झारखंड सरकार के पुनर्वास नीति के बावजूद भी विस्थापित को लाभ नहीं दिए जाने के मामले में दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले पर गंभीर रुख अख्तियार करते हुए कार्मिक सचिव और जल संसाधन विभाग के सचिव से पूछा कि ऐसे पुनर्वास नीति का क्या मतलब जिसका लाभ ही विस्थापितों को न मिले. अदालत ने 4 महीने में नियम बनाकर पुनर्वास नीति में दिए गए शर्तों के अनुसार विस्थापितों को लाभ दिए जाने का आदेश दिया है, मामले की अगली सुनवाई चार महीने बाद होगी.

Hearing in the High Court on a petition filed in the case of not providing benefits to the displaced
झारखंड हाई कोर्ट

रांची: झारखंड सरकार के पुनर्वास नीति के बावजूद भी विस्थापित को लाभ नहीं दिए जाने के मामले में दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले पर गंभीर रुख अख्तियार करते हुए कार्मिक सचिव और जल संसाधन विभाग के सचिव से पूछा कि ऐसे पुनर्वास नीति का क्या मतलब जिसका लाभ ही विस्थापितों को न मिले.

देखें पूरी खबर

अदालत ने पूछा कि अगर आउटसोर्सिंग से ही सरकार को काम चलाना था, तो पुनर्वास नीति में इस तरह का लाभ देने का क्या मतलब है. साल 2003 और 2012 में पुनर्वास नीति बनाई गई है. 18 वर्ष लगभग बीत रहे हैं, अब 2022 में पुनर्वास नीति खत्म हो जाएगी. सरकार के अधिकारी टालमटोल के रवैया अपनाए हुए हैं.

अधिकारी ने अदालत में किसी भी प्रकार का सकारात्मक उत्तर नहीं दे पाया. अदालत ने उन्हें फिर से 4 महीने में नियम बनाकर पुनर्वास नीति में दिए गए शर्तों के अनुसार विस्थापितों को लाभ दिए जाने का आदेश दिया है, मामले की अगली सुनवाई चार महीने बाद होगी.

ये भी देखें- 23 फरवरी से रांची में मैराथन का 5वां एडिशन, चरम पर है तैयारियां

झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में राज्य सरकार की दायर अपील याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत में राज्य सरकार के सचिव जल संसाधन विभाग अमिताभ कौशल और सचिव कार्मिक केके खंडेलवाल हाई कोर्ट में उपस्थित रहे.

सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि हाई कोर्ट के दिए जा रहे आदेश के बावजूद भी सरकार के अधिकारी गंभीरता से क्यों नहीं लेते हैं. अदालत ने पूछा कि अदालत के दिए गए आदेश के बावजूद भी विभाग का टालमटोल का रवैया क्यों रहा, सरकार की ओर से सकारात्मक जवाब नहीं दिए गई. सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने अदालत को बतायाा कि जब तक सरकार नीति नहींं बना लेगी तब तक नियुक्ति नहीं किया जा सकता है. जिस पर अदालत ने चार महीने में नीति बनाकर पुनर्वास नीति में दिए गए शर्तों के आलोक में निर्णय लेने का आदेश दिया है.

बता दें कि याचिकाकर्ता मोहम्मद सनाउल्लाह कि कतरी जलाशय योजना में सरकार ने जमीन अधिग्रहण किया था. जिसमें यह कहा गया था कि उन्हें पुनर्वास नीति के तहत नौकरी में प्राथमिकता और जमीन का मुआवजा भी दिया जाएगा, लेकिन राज्य सरकार के वर्ष 2003 और 2012 में दो बार पुनर्वास नीति बनने के बावजूद भी याचिकाकर्ता को उसका लाभ नहीं मिल सका.

ये भी देखें- राज्यस्तरीय कराटे चैंपियनशिप में खूंटी के टीम ओवरऑल विजेता, जीते कुल 82 पदक

इसके बाद उन्होंने वर्ष 2011 में हाई कोर्ट के शरण में पहुंचा. अदालत ने राज्य सरकार को प्रार्थी को कंसीडर करते हुए मामला में निर्णय लेने का आदेश दिया. उसके बावजूद भी विभाग ने किसी प्रकार का सकारात्मक निर्णय नहीं लिया. उसके बाद फिर याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. एक बार फिर अदालत ने विभाग को याचिकाकर्ता को कंसीडर करते हुए उचित निर्णय लेने का आदेश दिया, लेकिन फिर विभाग ने वही रवैया अपनाया गया. उसके बाद फिर याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की.

जिस पर अदालत ने 3 महीने में विज्ञापन जारी कर याचिकाकर्ता को मुआवजा के साथ उसका उचित लाभ देने का आदेश दिया. झारखंड सरकार के तीसरे बार दिए गए आदेश के खिलाफ जल संसाधन विभाग ने झारखंड हाई कोर्ट में अपील याचिका दायर की. उसी अपील याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव और कार्मिक विभाग के सचिव को हाई कोर्ट में हाजिर होकर जवाब देने को कहा था. उसी आदेश के आलोक में बुधवार को दोनों सचिव अदालत में उपस्थित हुए. मामले की अगली सुनवाई चार महीने बाद होगी. मामले में सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने पक्ष रखा. वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रेम पुजारी ने पक्ष रखा.

रांची: झारखंड सरकार के पुनर्वास नीति के बावजूद भी विस्थापित को लाभ नहीं दिए जाने के मामले में दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले पर गंभीर रुख अख्तियार करते हुए कार्मिक सचिव और जल संसाधन विभाग के सचिव से पूछा कि ऐसे पुनर्वास नीति का क्या मतलब जिसका लाभ ही विस्थापितों को न मिले.

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अदालत ने पूछा कि अगर आउटसोर्सिंग से ही सरकार को काम चलाना था, तो पुनर्वास नीति में इस तरह का लाभ देने का क्या मतलब है. साल 2003 और 2012 में पुनर्वास नीति बनाई गई है. 18 वर्ष लगभग बीत रहे हैं, अब 2022 में पुनर्वास नीति खत्म हो जाएगी. सरकार के अधिकारी टालमटोल के रवैया अपनाए हुए हैं.

अधिकारी ने अदालत में किसी भी प्रकार का सकारात्मक उत्तर नहीं दे पाया. अदालत ने उन्हें फिर से 4 महीने में नियम बनाकर पुनर्वास नीति में दिए गए शर्तों के अनुसार विस्थापितों को लाभ दिए जाने का आदेश दिया है, मामले की अगली सुनवाई चार महीने बाद होगी.

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झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में राज्य सरकार की दायर अपील याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत में राज्य सरकार के सचिव जल संसाधन विभाग अमिताभ कौशल और सचिव कार्मिक केके खंडेलवाल हाई कोर्ट में उपस्थित रहे.

सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि हाई कोर्ट के दिए जा रहे आदेश के बावजूद भी सरकार के अधिकारी गंभीरता से क्यों नहीं लेते हैं. अदालत ने पूछा कि अदालत के दिए गए आदेश के बावजूद भी विभाग का टालमटोल का रवैया क्यों रहा, सरकार की ओर से सकारात्मक जवाब नहीं दिए गई. सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने अदालत को बतायाा कि जब तक सरकार नीति नहींं बना लेगी तब तक नियुक्ति नहीं किया जा सकता है. जिस पर अदालत ने चार महीने में नीति बनाकर पुनर्वास नीति में दिए गए शर्तों के आलोक में निर्णय लेने का आदेश दिया है.

बता दें कि याचिकाकर्ता मोहम्मद सनाउल्लाह कि कतरी जलाशय योजना में सरकार ने जमीन अधिग्रहण किया था. जिसमें यह कहा गया था कि उन्हें पुनर्वास नीति के तहत नौकरी में प्राथमिकता और जमीन का मुआवजा भी दिया जाएगा, लेकिन राज्य सरकार के वर्ष 2003 और 2012 में दो बार पुनर्वास नीति बनने के बावजूद भी याचिकाकर्ता को उसका लाभ नहीं मिल सका.

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इसके बाद उन्होंने वर्ष 2011 में हाई कोर्ट के शरण में पहुंचा. अदालत ने राज्य सरकार को प्रार्थी को कंसीडर करते हुए मामला में निर्णय लेने का आदेश दिया. उसके बावजूद भी विभाग ने किसी प्रकार का सकारात्मक निर्णय नहीं लिया. उसके बाद फिर याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. एक बार फिर अदालत ने विभाग को याचिकाकर्ता को कंसीडर करते हुए उचित निर्णय लेने का आदेश दिया, लेकिन फिर विभाग ने वही रवैया अपनाया गया. उसके बाद फिर याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की.

जिस पर अदालत ने 3 महीने में विज्ञापन जारी कर याचिकाकर्ता को मुआवजा के साथ उसका उचित लाभ देने का आदेश दिया. झारखंड सरकार के तीसरे बार दिए गए आदेश के खिलाफ जल संसाधन विभाग ने झारखंड हाई कोर्ट में अपील याचिका दायर की. उसी अपील याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव और कार्मिक विभाग के सचिव को हाई कोर्ट में हाजिर होकर जवाब देने को कहा था. उसी आदेश के आलोक में बुधवार को दोनों सचिव अदालत में उपस्थित हुए. मामले की अगली सुनवाई चार महीने बाद होगी. मामले में सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने पक्ष रखा. वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रेम पुजारी ने पक्ष रखा.

Intro:विस्थापितों को लाभ नहीं दिए जाने के मामले में दायर याचिका पर हुई सुनवाई,झारखंड हाईकोर्ट ने सचिव से पूछा ऐसी पुनर्वास नीति का क्या मतलब जिसका विस्थापित को लाभ ही ना मिले

रांची
बाइट-- अजीत कुमार महाधिवक्ता झारखंड हाई कोर्ट

झारखंड सरकार के पुनर्वास नीति के बावजूद भी विस्थापित को लाभ नहीं दिए जाने के मामले में दायर याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई अदालत ने मामले पर गंभीर रुख अख्तियार करते हुए कार्मिक सचिव और जल संसाधन विभाग के सचिव से पूछा कि ऐसे पुनर्वास नीति का क्या मतलब जिसका लाभ ही विस्थापितों को ना मिले? उन्होंने पूछा कि अगर आउटसोर्सिंग से ही सरकार को काम चलाना था, तो पुनर्वास नीति में इस तरह का लाभ देने की क्या मतलब है। वर्ष 2003 और 2012 में पुनर्वास नीति बनाई गई है। 18 वर्ष लगभग बीत रहे हैं। अब 2022 में पुनर्वास नीति खत्म हो जाएगी। सरकार के अधिकारी टालमटोल के रवैया अपनाए हुए हैं। अधिकारी के द्वारा किसी भी प्रकार की सकारात्मक उत्तर नहीं दिए जा सके। अदालत ने उन्हें फिर से 4 माह में नियम बनाकर पुनर्वास नीति में दिए गए शर्तों के अनुसार विस्थापितों को लाभ दिए जाने का आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई चार माह बाद होगी।

झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में राज्य सरकार के द्वारा दायर अपील याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत मे राज्य सरकार के सचिव जल संसाधन विभागअमिताभ कौशल और सचिव कार्मिक के के खंडेलवाल हाई कोर्ट में स शरीर उपस्थित हुए।
सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि हाई कोर्ट के द्वारा बार-बार दिए जा आदेश दिए जाने के बावजूद भी अदालत के आदेश को सरकार के अधिकारी गंभीरता से क्यों नहीं लेते हैं। अदालत ने पूछा कि अदालत के द्वारा दिए गए आदेश के बावजूद भी विभाग का टालमटोल का रवैया क्यों रहा? सरकार की ओर से सकारात्मक जवाब नहीं दिए गई। सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने अदालत को बतायाा कि जब तक सरकार नीति नहींं बना लेगी तब तक नियुक्ति नहीं किया जा सकता है । जिस पर अदालत ने चार माह में नीति बनाकर पुनर्वास नीति मैं दिए गए शर्तों के आलोक में निर्णय लेने का आदेश दिया है।

Body:बता दें याचिकाकर्ता मोहम्मद सनाउल्लाह कि कतरी जलाशय योजना में सरकार के द्वारा जमीन अधिग्रहण किया गया था। जिसमें यह कहा गया था कि उन्हें पुनर्वास नीति के तहत नौकरी में प्राथमिकता और जमीन का मुआवजा भी दिया जाएगा लेकिन राज्य सरकार के वर्ष 2003 और 2012 में दो बार पुनर्वास नीति बनने के बावजूद भी याचिकाकर्ता को उसका लाभ नहीं मिल सका। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2011 में हाईकोर्ट के शरण में पहुंचा। अदालत ने राज्य सरकार को प्रार्थी को कंसीडर करते हुए मामला में निर्णय लेने का आदेश दिया। उसके बावजूद भी विभाग ने किसी प्रकार का सकारात्मक निर्णय नहीं लिया। उसके बाद फिर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। एक बार फिर अदालत ने विभाग को याचिकाकर्ता को कंसीडर करते हुए उचित निर्णय लेने का आदेश दिया। लेकिन फिर विभाग द्वारा वही रवैया अपनाया गया। उसके बाद फिर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर अदालत ने 3 माह में विज्ञापन जारी कर याचिकाकर्ता को मुआवजा के साथ उसका उचित लाभ देने का आदेश दिया। झारखंड सरकार के तीसरे बार दिए गए आदेश के खिलाफ जल संसाधन विभाग ने झारखंड हाई कोर्ट में अपील याचिका दायर की। उसी अपील याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव और कार्मिक विभाग के सचिव को हाई कोर्ट में हाजिर होकर जवाब देने को कहा था। उसी आदेश के आलोक में बुधवार को दोनों सचिव अदालत में उपस्थित हुए। मामले की अगली सुनवाई चार माह बाद को होगी। मामले में सरकार की ओर सेे महाधिवक्ता अजीत कुमार ने पक्ष रखा। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रेम पुजारी ने पक्ष रखा।Conclusion:
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