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Monsoon in Jharkhand: झारखंड में मानसून की बेरुखी का असर, सूख रहे तालाब, नहीं बढ़ा भूगर्भ जलस्तर - रांची न्यूज

मानसून की बेरुखी से झारखंड में हालात खराब हैं. फसलों को तो नुकसान हुआ ही है, भूगर्म जलस्तर भी नीचे चला गया है. वहीं रांची में कई ऐसे तालाब हैं जो या तो सूख चुके हैं या फिर सूखने की कगार पर हैं.

Ground water level did not increase in Jharkhand due to bad monsoon
Ground water level did not increase in Jharkhand due to bad monsoon
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 1, 2023, 5:56 PM IST

Updated : Sep 1, 2023, 8:30 PM IST

जानकारी देते संवाददाता उपेंद्र

रांची: झारखंड में इस वर्ष सामान्य से 38% कम वर्षापात की वजह से 24 में से 20 जिलों की स्थिति बेहद खराब है. धान की फसल को जबरदस्त नुकसान हुआ है. वहीं तालाब, डोभा, पोखर, कुंआ, चापाकल या तो सूख गए हैं या सूखने की कगार पर हैं. रांची जिले में भी सामान्य से 41% कम वर्षा हुई है. इस वजह से ज्यादातर तालाबों में पानी नहीं के बराबर है.

ये भी पढ़ेंः Lack of Rain in Latehar: जिले में सुखाड़ की आशंका, बारिश ना होने से किसानों के चेहरे पड़े पीले

भूगर्भ जल स्तर नहीं बढ़ने से गर्मियों में सूख गए चापाकलों में अभी तक पानी आना शुरू नहीं हुआ है. पहले जो चापाकल गर्मी में लेयर नीचे चले जाने से महीना-डेढ़ महीने के लिए सूख जाते थे, उसमें भी मानसूनी वर्षा के साथ पानी आना शुरू हो जाता था. इस बार ऐसा नहीं हो रहा है. रांची किशोरगंज के रहने वाले कौशल बताते हैं कि अब सितंबर शुरू हो गया है लेकिन किशोरगंज, सुखदेव नगर और हरमू के बड़े इलाके के चापाकलों में अभी भी पानी नहीं आया है. लोगों की चिंता से सरकार और नगर निगम के अधिकारी अंजान बने हुए हैं.

हेहल का तालाब सूखने की कागार परः रांची की पहचान पहले बड़ी संख्या में तालाबों की वजह से हुआ करती थी. ये तालाब, पठार पर बसे रांची के लोगों को पेयजल के साथ-साथ मवेशियों के लिए पानी और दैनिक कार्य के लिए जल का एक साधन हुआ करते थे. राज्य बनने के बाद से जब राजधानी के रूप में रांची का विस्तार हुआ तो कई तालाब विकास के भेंट चढ़ गए तो कई पर भू माफियाओं ने कब्जा कर लिया. अब जो तालाब बचें हैं उसकी भी स्थिति लगातार खराब होती जा रही है. वर्षा नहीं होने से तालाब का अस्तित्व ही खतरे में है. हेहल तालाब की स्थिति का जायजा लेने पहुंची ईटीवी भारत की टीम को स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले इस तालाब में एक आदमी भर पानी हुआ करता था. लोग तालाब के किनारे पूजा पाठ करते थे. छठ महापर्व भी धूमधाम से होता था. अब तो तालाब का दम घुट रहा है. निगम के अधिकारियों की नजर भी इस पर नहीं पड़ती.

रांची के लिए तालाब को बचाना बेहद जरूरीः रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्री और पर्यावरणविद डॉ. नीतीश प्रियदर्शी ने राजधानी में तालाब की दुर्दशा पर बताया कि इसकी वजह सिर्फ पिछले दो वर्षों में वर्षा का कम होना भर नहीं है. इसके अलावा एक के बाद एक कई तालाब विलुप्त होते चले गए. तालाब को भर कर बेवजह का निर्माण करा दिया गया. यही वजह है कि अब जो 30-40 तालाब बचे भी हैं उसमें पानी नहीं के बराबर है. इसका सीधा असर भूगर्भ जल के रिचार्ज पर पड़ रहा है. ग्राउंड वाटर के जबरदस्त दोहन से वह पाताल लोक में जा चुका है. अब तो बरसात में भी ग्राउंड वाटर का लेवल नहीं बढ़ता है. डॉ नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि रांची जैसे पठारी क्षेत्र में तालाब को संरक्षित रखना बेहद जरूरी है. रांची के हेहल, सुखदेवनगर, शालीमार धुर्वा, बहुबाजार, कडरू, जोड़ा तालाब सहित कई तालाब ऐसे हैं जहां पानी नहीं के बराबर बचा है. अभी भी लोगों को उम्मीद है कि भादो माह में अच्छी वर्षा होगी और खेत खलिहानों के साथ साथ तालाब भी पानी से लबालब भर जाएंगे.

जानकारी देते संवाददाता उपेंद्र

रांची: झारखंड में इस वर्ष सामान्य से 38% कम वर्षापात की वजह से 24 में से 20 जिलों की स्थिति बेहद खराब है. धान की फसल को जबरदस्त नुकसान हुआ है. वहीं तालाब, डोभा, पोखर, कुंआ, चापाकल या तो सूख गए हैं या सूखने की कगार पर हैं. रांची जिले में भी सामान्य से 41% कम वर्षा हुई है. इस वजह से ज्यादातर तालाबों में पानी नहीं के बराबर है.

ये भी पढ़ेंः Lack of Rain in Latehar: जिले में सुखाड़ की आशंका, बारिश ना होने से किसानों के चेहरे पड़े पीले

भूगर्भ जल स्तर नहीं बढ़ने से गर्मियों में सूख गए चापाकलों में अभी तक पानी आना शुरू नहीं हुआ है. पहले जो चापाकल गर्मी में लेयर नीचे चले जाने से महीना-डेढ़ महीने के लिए सूख जाते थे, उसमें भी मानसूनी वर्षा के साथ पानी आना शुरू हो जाता था. इस बार ऐसा नहीं हो रहा है. रांची किशोरगंज के रहने वाले कौशल बताते हैं कि अब सितंबर शुरू हो गया है लेकिन किशोरगंज, सुखदेव नगर और हरमू के बड़े इलाके के चापाकलों में अभी भी पानी नहीं आया है. लोगों की चिंता से सरकार और नगर निगम के अधिकारी अंजान बने हुए हैं.

हेहल का तालाब सूखने की कागार परः रांची की पहचान पहले बड़ी संख्या में तालाबों की वजह से हुआ करती थी. ये तालाब, पठार पर बसे रांची के लोगों को पेयजल के साथ-साथ मवेशियों के लिए पानी और दैनिक कार्य के लिए जल का एक साधन हुआ करते थे. राज्य बनने के बाद से जब राजधानी के रूप में रांची का विस्तार हुआ तो कई तालाब विकास के भेंट चढ़ गए तो कई पर भू माफियाओं ने कब्जा कर लिया. अब जो तालाब बचें हैं उसकी भी स्थिति लगातार खराब होती जा रही है. वर्षा नहीं होने से तालाब का अस्तित्व ही खतरे में है. हेहल तालाब की स्थिति का जायजा लेने पहुंची ईटीवी भारत की टीम को स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले इस तालाब में एक आदमी भर पानी हुआ करता था. लोग तालाब के किनारे पूजा पाठ करते थे. छठ महापर्व भी धूमधाम से होता था. अब तो तालाब का दम घुट रहा है. निगम के अधिकारियों की नजर भी इस पर नहीं पड़ती.

रांची के लिए तालाब को बचाना बेहद जरूरीः रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्री और पर्यावरणविद डॉ. नीतीश प्रियदर्शी ने राजधानी में तालाब की दुर्दशा पर बताया कि इसकी वजह सिर्फ पिछले दो वर्षों में वर्षा का कम होना भर नहीं है. इसके अलावा एक के बाद एक कई तालाब विलुप्त होते चले गए. तालाब को भर कर बेवजह का निर्माण करा दिया गया. यही वजह है कि अब जो 30-40 तालाब बचे भी हैं उसमें पानी नहीं के बराबर है. इसका सीधा असर भूगर्भ जल के रिचार्ज पर पड़ रहा है. ग्राउंड वाटर के जबरदस्त दोहन से वह पाताल लोक में जा चुका है. अब तो बरसात में भी ग्राउंड वाटर का लेवल नहीं बढ़ता है. डॉ नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि रांची जैसे पठारी क्षेत्र में तालाब को संरक्षित रखना बेहद जरूरी है. रांची के हेहल, सुखदेवनगर, शालीमार धुर्वा, बहुबाजार, कडरू, जोड़ा तालाब सहित कई तालाब ऐसे हैं जहां पानी नहीं के बराबर बचा है. अभी भी लोगों को उम्मीद है कि भादो माह में अच्छी वर्षा होगी और खेत खलिहानों के साथ साथ तालाब भी पानी से लबालब भर जाएंगे.

Last Updated : Sep 1, 2023, 8:30 PM IST
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