रांचीः राजधानी में पशु तस्करों ने सब इंस्पेक्टर संध्या टोपनो को पिकअप वैन से रौंदकर इस अवैध कारोबार की मंशा जाहिर कर दी है. झारखंड में गोवंश हत्या निषेध अधिनियम लागू होने के बाद भी गोवंश की तस्करी नहीं रूक रही है. ऐसा क्यों हो रहा है. झारखंड में संचालित गोशालाओं की क्या स्थिति है. झारखंड गौ-सेवा आयोग किस हाल में है. इन तमाम सवालों का जवाब जानने के लिए हमारे ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने रांची गौशाला न्यास समिति सह झारखंड प्रादेशिक गौशाला संघ के उपमंत्री प्रमोद कुमार सारस्वत से बात की.
सबसे पहले तो उन्होंने सब इंस्पेक्टर संध्या टोपनो की जान लेने वालों को सख्त से सख्त सजा दिलाने की मांग की ताकि भविष्य में ऐसी घटना न घटे. उन्होंने पुलिसिया कार्रवाई के दौरान जब्त गौवंशीय पशुओं की देखरेख के प्रति सरकार की संजीदगी पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने बताया कि पूरे झारखंड में 25 गौशाला का संचालन हो रहा है. इनमें करीब 30 हजार से ज्यादा गौवंशीय पशु हैं. इनमें ज्यादातर पशु ऐसे हैं जो या तो शारीरिक रूप से लाचार हैं या दूध नहीं दे पाते. इनकी देखरेख के लिए भारी भरकम राशि की जरूरत होती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि विभाग पर इन गोशालाओं का करीब पौने तीन करोड़ बकाया है.
झारखंड में गौ-सेवा आयोग जरूर है लेकिन अध्यक्ष का पद पिछले कई वर्षों से खाली पड़ा है. इसकी वजह से बिल के भुगतान के लिए साहबों का चक्कर काटते-काटते एड़ियां घिस जाती हैं. फिलहाल पूरे राज्य के गौशालाओं में पशुओं की देखरेख के लिए करीब एक हजार लोग दिन-रात जुटे हुए हैं. उन्होंने कहा कि अगर समाज के लोग सहयोग करना बंद कर दें तो एक दिन भी गोशालाओं का चलाना मुश्किल हो जाएगा. कई जगह शेड की जरूरत है. पशु चिकित्सक की जरूरत है. उन्होंने कहा कि गौशालाओं के पास अगर पर्याप्त फंड रहता तो लाचार जानवरों को पशु तस्करों को बेचने से रोकने में मदद मिल सकती है.
गौशालाओं के लिए वर्तमान सरकार की पहलः गौशाला न्यास के उपमंत्री प्रमोद कुमार सारस्वत ने कहा कि वर्तमान हेमंत सरकार ने इसी साल एक सराहनीय फैसला लिया था. कृषि पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री बादल पत्रलेख ने जब्त पशुओं की देखरेख के बाबत दी जाने वाली राशि बढ़ा दी है. अबतक जब्त पशुओं की देखरेख के लिए छह माह तक प्रति पशु प्रति दिन 50 रुपए को बढ़ाकर एक साल तक प्रति दिन सौ रुपए देने की व्यवस्था की है. लेकिन इसके बाद सारी जिम्मेदारी गौशाला को अपने स्तर पर उठानी पड़ती है.
कैसे-कैसे की जाती है पशु तस्करीः पुलिस विभाग के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक इस काले कारोबार को करने के लिए पशु तस्कर समय-समय पर अपना तौर तरीका बदलते रहते हैं. अब सवाल है कि तस्करी के लिए कौन-कौन सा हथकंडा अपनाया जाता है.
- पिकअप वैन से तस्करी - पिकअप वैन के जरिए एक जिला से दूसरे जिला बॉर्डर तक पांच-दस की संख्या में पशुओं को पहुंचाया जाता है
- ट्रक और लॉरी से तस्करी - जीटी रोड के जरिए पश्चिम बंगाल तक पशुओं को छह और दस चक्का ट्रकों से ले जाया जाता है
- टैंकर से तस्करी - ऑयल टैंकर में जानवरों को ठूंसा जाता है और टैंकर के पिछले हिस्से में एक बॉक्स बना दिया जाता है ताकि पुलिस को चकमा दिया जा सके
- बस से तस्करी - बसों का भी इस्तेमाल होने लगा है. सभी शीशे काले रंग के होते हैं. बसों में सीट को हटा दिया जाता है और जानवरों को भर दिया जाता है.
- पैदल तस्करी - इसमें ग्रामीणों का इस्तेमाल किया जाता है. एक टीम कुछ जानवरों को हांकते हुए एक गांव से दूसरे गांव में हैंडओवर करती जाती है. इसके बाद नदी या खेत के रास्ते दूसरे राज्यों में शिफ्ट कर दिया जाता है.
- मांस की तस्करी - पुलिस से बचने के लिए एक-दुक्के जानवरों को बुचड़खानों में लाकर उनके मांस को प्लास्टिक के बैग में भरकर इस्तेमाल किए जाने वाले इलाकों तक पहुंचाया जाता है.