रांचीः कोरोना महामारी का कहर पिछले 1 वर्षों से लगातार कहर बरपा रहा है. कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव को बर्बाद करके रख दिया है. राज्य सरकार ने कोरोना महामारी की दूसरे लहर के संक्रमण के खतरे को देखते हुए स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह यानी लॉकडाउन की घोषणा की थी, जिसके कारण सब्जी का उचित मूल्य न मिलने से किसानों की हालत काफी खराब हो गई.
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तो वहीं अनलॉक 1 में किसानों को अपनी फसल को लेकर एक बार फिर से उम्मीद जगी है. किसान अपनी सब्जी को लेकर स्थानीय मंडी पहुंचते थे लेकिन मंडी में मिट्टी के भाव अर्थात बहुत ही कम दामों पर किसान को मजबूरी में अपनी फसल को भेजना पड़ता है क्योंकि फसल बाहर की मंडी में नहीं जा रही थी लेकिन राज्य सरकार ने अनलॉक वन में कई रियायतों के साथ लॉकडाउन को धीरे-धीरे खत्म कर रहे हैं.
ऐसे में किसानों को एक बार फिर से उम्मीद जगी है कि आने वाली फसल को अच्छे मुनाफे पर बेच सकेंगे. पिठोरिया के किसान रामप्रसाद गोप की मानें तो पिछले 1 वर्षों से लगातार खेती के क्षेत्र में किसानों की कमर टूट गई है.
महामारी के कारण सबसे ज्यादा अगर नुकसान हुआ है तो किसानों को हुआ है. लॉकडाउन के कारण स्थानीय बाजार में सब्जी के उचित दाम नहीं मिल रहे थे तो दूसरी तरफ प्राकृतिक मार यास तूफान ने भी किसानों की कमर तोड़ दी है.
फसलों के अच्छे दाम मिलने की उम्मीद
सरकार से आग्रह है कि एक उचित आकलन करते हुए किसानों को पर ध्यान दिया जाए नहीं तो मजबूरी में किसान बाहर कमाने चले जाएंगे और फिर दोबारा सरकार को बाहर से मजदूरों को लाने को लेकर चिंता करनी होगी.
वहीं किसान रामलगन महली की मानें तो पिठोरिया एक कृषि प्रधान गांव है और यहां की फसल दूसरे प्रदेशों में भी भेजी जाती है लेकिन महामारी के कारण हुए लॉकडाउन की वजह से यहां की फसल बाहर के प्रदेशों में बहुत कम जाने लगी जिसके कारण यहां फसल का अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा था.
वहीं किसान मधु साहू ने कहा कि किसान को हर तरफ से मार पड़ रही है. महामारी की मार से किसान ₹1 ₹2 में फसल बेच रहे थे तो दूसरी तरफ तूफान के कारण खेतो में लगी फसल पूरी बर्बाद हो गई लेकिन किसान उम्मीद नहीं छोड़ते हैं यही कारण है कि एक बार फिर उम्मीद जगी है कि आने वाले फसल में इसकी भरपाई हो पाए.