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झारखंड रत्न दिवंगत गिरधारी राम गौंझू को मिला पद्मश्री, परिजनों में खुशी, बहुओं ने गिनाई खूबियां - प्रख्यात शिक्षाविद् नागपुरी साहित्यकार

प्रख्यात शिक्षाविद् नागपुरी साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी गिरधारी राम गौंझू को पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उन्हें मरणोपरांत यह अवार्ड दिया गया है. खुशी के इस लम्हे को ईटीवी भारत की टीम ने उनके परिजनों के साथ साझा किया है.

Family memebers interview of padma shri award winner girdhari ram ghonju of jharkhand
गिरधारी राम गौंझू
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Published : Jan 27, 2022, 5:32 PM IST

रांचीः पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए झारखंड के विभूतियों की सूची में एक और नाम जुड़ गया है. वह नाम है झारखंड रत्न स्वर्गीय गिरधारी राम गौंझू का. झारखंड के चर्चित शिक्षाविद, साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी गिरधारी राम गौंझू ने दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं. रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग के हेड भी रह चुके थे. खुशी के इस लम्हे को ईटीवी भारत की टीम ने उनके परिजनों के साथ साझा किया. स्वर्गीय गिरधारी राम गौंझू की पत्नी सरस्वती गौंझू भी सरकारी स्कूल की शिक्षिका रही हैं. एक पुत्री और दो पुत्र हैं. सभी सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं.

इसे भी पढ़ें- शिक्षाविद् गिरधारी राम गौंझू को मरणोपरांत पद्मश्री से किया गया सम्मानित, राज्य के लोगों ने जाहिर की खुशी

उनकी पत्नी ने बताया कि गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर दिल्ली से फोन आया था. फोन पर बताया गया कि गौंझू साहब को मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है. वह बेहद खुशी का क्षण था. इस सम्मान के मिलने से पूरा परिवार खुश है. उनकी बड़ी बहू शोभा और छोटी बहू संतोषी ने बताया कि बाबूजी बेहद मिलनसार थे. दोनों बहुओं को हमेशा बेटी की तरह प्यार किया. इनके घर में नागपुरी भाषा का ही चलन रहा. परिवार को बस एक मलाल है कि पिछले साल कोविड के दौर में उनकी सांसे फूलती रही लेकिन किसी भी अस्पताल में एक बेड नहीं मिल पाया. जिसकी वजह से उनकी जान चली गई. आज वह जिंदा होते तो खुशी बेशुमार होती. परिजनों से बताया कि पद्मश्री लोकगायक मुकुंद नायक से उनकी बेहद लगाव था. जब भी दोनों मिलते थे तो इस बात पर चर्चा करते थे कि अपनी भाषा और संस्कृति कैसे बचाए रखना है. उन्होंने हमेशा अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता दी.

पद्मश्री और झारखंड रत्न दिवंगत गिरधारी राम गौंझू के परिजनों से ईटीवी भारत की खास बातचीत

स्वर्गीय गौंझू द्वारा रचित अखरा निंदाय गेलक नाटक, झारखंड के ज्वलंत समस्या पलायन जैसे संवेदनशील विषय को लेकर प्रकाशित किया गया था, जो काफी लोकप्रिय और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पाठ्यक्रम के रूप भी शामिल है. उनकी प्रकाशित रचनाओं में कोरी भइर पझरा, नागपुरी गद तइरंगन, खुखड़ी-रूगड़ा, सहित अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लेखनी प्रकाशित होती रही हैं. स्वर्गीय गिरधारी राम गौंझू बेहद सरल और मिलनसार स्वभाव के थे. वह हिंदी और नागपुरी भाषा के मर्मज्ञ थे. उनकी रचना में झारखंड की संवेदना झलकती थी. झारखंड बनने के बाद से राज्य में अबतक 21 लोगों को साहित्य, कला-संस्कृति, खेल, पर्यटन, स्वास्थ्य, समाजसेवा जैसे क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने के लिए पद्मश्री से नवाजा जा चुका है. साल 2021 में डायन प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने वाली छुटनी देवी को पद्मश्री मिला था.

गिरधारी राम गौंझू- जीवन परिचयः प्रख्यात शिक्षाविद्, नागपुरी साहित्यकार व संस्कृतिकर्मी गिरधारी राम गौंझू रांची विवि जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष थे. इनका जन्म पांच दिसंबर 1949 को खूंटी के बेलवादाग गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम इंद्रनाथ गौंझू व मां का नाम लालमणि देवी था. वर्तमान में इनका परिवार रांची के हरमू कॉलोनी में रहता है. खूंटी में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वह अपने बड़े पापा के पास रांची आ गए. यहां उन्होंने संत अलोइस स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की. फिर संत जेवियर कॉलेज से इंटर और स्नातक के बाद हिन्दी में रांची विवि से पीजी किया. उन्होंने 1975 में गुमला के चैनपुर स्थित परमवीर अलबर्ट एक्का मेमोरियल कॉलेज से अध्यापन का कार्य शुरू किया था. डॉ. गौंझू रांची विवि स्नातकोत्तर जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में दिसंबर 2011 में बतौर अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए. डॉ. गौंझू एक मंझे हुए लेखक रहे. इनकी अब तक 25 से भी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. इसके अलावा कई नाटकें भी उन्होंने लिखी हैं. पिछले साल कोरोना के दूसरे वेब के दौरान सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद परिवार वाले उनको लेकर रांची के 7 अस्पतालों में गए थे लेकिन उन्हें बेड नहीं मिल पाया था. परिजन उनको लेकर राज अस्पताल, गुरु नानक अस्पताल, मेडिका, सैंटीमीटर आर्किड और चैंफूड लेकर घूमते रहे. लेकिन उन्हें बेड नहीं मिला था. अंत में उन्हें रिम्स लाया गया जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. इलाज में बरती गई इस लापरवाही पर झारखंड की तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी नाराजगी व्यक्त की थी.

रांचीः पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए झारखंड के विभूतियों की सूची में एक और नाम जुड़ गया है. वह नाम है झारखंड रत्न स्वर्गीय गिरधारी राम गौंझू का. झारखंड के चर्चित शिक्षाविद, साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी गिरधारी राम गौंझू ने दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं. रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग के हेड भी रह चुके थे. खुशी के इस लम्हे को ईटीवी भारत की टीम ने उनके परिजनों के साथ साझा किया. स्वर्गीय गिरधारी राम गौंझू की पत्नी सरस्वती गौंझू भी सरकारी स्कूल की शिक्षिका रही हैं. एक पुत्री और दो पुत्र हैं. सभी सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं.

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उनकी पत्नी ने बताया कि गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर दिल्ली से फोन आया था. फोन पर बताया गया कि गौंझू साहब को मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है. वह बेहद खुशी का क्षण था. इस सम्मान के मिलने से पूरा परिवार खुश है. उनकी बड़ी बहू शोभा और छोटी बहू संतोषी ने बताया कि बाबूजी बेहद मिलनसार थे. दोनों बहुओं को हमेशा बेटी की तरह प्यार किया. इनके घर में नागपुरी भाषा का ही चलन रहा. परिवार को बस एक मलाल है कि पिछले साल कोविड के दौर में उनकी सांसे फूलती रही लेकिन किसी भी अस्पताल में एक बेड नहीं मिल पाया. जिसकी वजह से उनकी जान चली गई. आज वह जिंदा होते तो खुशी बेशुमार होती. परिजनों से बताया कि पद्मश्री लोकगायक मुकुंद नायक से उनकी बेहद लगाव था. जब भी दोनों मिलते थे तो इस बात पर चर्चा करते थे कि अपनी भाषा और संस्कृति कैसे बचाए रखना है. उन्होंने हमेशा अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता दी.

पद्मश्री और झारखंड रत्न दिवंगत गिरधारी राम गौंझू के परिजनों से ईटीवी भारत की खास बातचीत

स्वर्गीय गौंझू द्वारा रचित अखरा निंदाय गेलक नाटक, झारखंड के ज्वलंत समस्या पलायन जैसे संवेदनशील विषय को लेकर प्रकाशित किया गया था, जो काफी लोकप्रिय और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पाठ्यक्रम के रूप भी शामिल है. उनकी प्रकाशित रचनाओं में कोरी भइर पझरा, नागपुरी गद तइरंगन, खुखड़ी-रूगड़ा, सहित अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लेखनी प्रकाशित होती रही हैं. स्वर्गीय गिरधारी राम गौंझू बेहद सरल और मिलनसार स्वभाव के थे. वह हिंदी और नागपुरी भाषा के मर्मज्ञ थे. उनकी रचना में झारखंड की संवेदना झलकती थी. झारखंड बनने के बाद से राज्य में अबतक 21 लोगों को साहित्य, कला-संस्कृति, खेल, पर्यटन, स्वास्थ्य, समाजसेवा जैसे क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने के लिए पद्मश्री से नवाजा जा चुका है. साल 2021 में डायन प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने वाली छुटनी देवी को पद्मश्री मिला था.

गिरधारी राम गौंझू- जीवन परिचयः प्रख्यात शिक्षाविद्, नागपुरी साहित्यकार व संस्कृतिकर्मी गिरधारी राम गौंझू रांची विवि जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष थे. इनका जन्म पांच दिसंबर 1949 को खूंटी के बेलवादाग गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम इंद्रनाथ गौंझू व मां का नाम लालमणि देवी था. वर्तमान में इनका परिवार रांची के हरमू कॉलोनी में रहता है. खूंटी में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वह अपने बड़े पापा के पास रांची आ गए. यहां उन्होंने संत अलोइस स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की. फिर संत जेवियर कॉलेज से इंटर और स्नातक के बाद हिन्दी में रांची विवि से पीजी किया. उन्होंने 1975 में गुमला के चैनपुर स्थित परमवीर अलबर्ट एक्का मेमोरियल कॉलेज से अध्यापन का कार्य शुरू किया था. डॉ. गौंझू रांची विवि स्नातकोत्तर जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में दिसंबर 2011 में बतौर अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए. डॉ. गौंझू एक मंझे हुए लेखक रहे. इनकी अब तक 25 से भी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. इसके अलावा कई नाटकें भी उन्होंने लिखी हैं. पिछले साल कोरोना के दूसरे वेब के दौरान सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद परिवार वाले उनको लेकर रांची के 7 अस्पतालों में गए थे लेकिन उन्हें बेड नहीं मिल पाया था. परिजन उनको लेकर राज अस्पताल, गुरु नानक अस्पताल, मेडिका, सैंटीमीटर आर्किड और चैंफूड लेकर घूमते रहे. लेकिन उन्हें बेड नहीं मिला था. अंत में उन्हें रिम्स लाया गया जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. इलाज में बरती गई इस लापरवाही पर झारखंड की तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी नाराजगी व्यक्त की थी.

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