रांची: पुगड़ु की 9.30 एकड़ जमीन सरकारी जांच में ही उलझ गई है. जमीन के असली मालिक की पहचान के लिए बनाई गई एसआईटी की रिपोर्ट में जमीन का मालिकाना हक किसी और का बताया जा रहा है, जबकि एलआरडीसी के रिकॉर्ड में जमीन खासमहल की है. मामला जांच में इस कदर उलझा है कि राज्य सरकार इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है और ईडी इसकी जांच कर रही है.
प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई से जमीन कारोबारियों में हड़कंप मचा हुआ है. बरियातू रोड स्थित सेना की जमीन और चेशायर होम रोड की जमीन के बाद ईडी की टीम अब नामकुम के पुगड़ु में मौजूद 9.30 एकड़ जमीन मामले की जांच कर रही है. इस मामले में झारखंड के चर्चित व्यवसायी विष्णु अग्रवाल को पांचवी बार पूछताछ के लिए तलब किया गया है. उनको 26 जुलाई को रांची स्थित ईडी दफ्तर जाना है.
अब सवाल है कि पुगड़ु की जमीन में क्या झोलझाल है. बकौल विष्णु अग्रवाल उन्होंने सारे दस्तावेज देखने के बाद जमीन खरीदी. लेकिन उन्होंने म्यूटेशन के लिए अप्लाई किया तो पता चला कि जमीन खासमहाल की सूची में है. यह सूचना पैरों के नीचे से जमीन खिसकने की तरह थी. क्योंकि रजिस्ट्री से पहले उन्होंने जमीन की पड़ताल की थी. सूचना के अधिकार के तहत उपसमाहर्ता भूमि सुधार के रांची कार्यालय से जानकारी दी गई थी कि पुगड़ु की जमीन खासमहाल लीज की सूची में नहीं है.
तसल्ली होने के बाद व्यवसायी विष्णु अग्रवाल ने आशीष कुमार गांगुली और मोबारक हुसैन के परिजनों से 8 अगस्त 2019 में जमीन खरीद ली. इसके बदले उन्होंने आशीष गांगुली को 5 करोड़ (कुछ पैसे पोजिशन के बाद देने पर सहमति) और मोबारक हुसैन के परिवार को 3.2 करोड़ रु. दिए. स्टांप ड्यूटी के एवज में करीब 1.5 करोड़ रु. भी दिए. लेकिन जब उन्होंने म्यूटेशन के लिए ऑनलाइन अर्जी डाली तो उसे रिजेक्ट कर दिया गया. बाद में यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट ने एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर व्यवसायी विष्णु अग्रवाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें सात दिन के भीतर म्यूटेशन की अर्जी देने का आदेश दिया. साथ ही तीन सप्ताह के भीतर म्यूटेशन प्रक्रिया पूरा करने को कहा. इसके बावजूद मामला लटका रहा.
क्या कहते हैं पदाधिकारी: इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने धनबाद के पुटकी में पदस्थापित नामकुम अंचल की तत्कालीन अंचलाधिकारी शुभ्रा रानी से बात की. उन्होंने कहा कि नामकुम के पुगड़ु की खाता नंबर 93, प्लॉट नंबर 543, 544, 545, 546 और 547 की 9.3 एकड़ जमीन खासमहाल की सूची में है, इसलिए म्यूटेशन नहीं किया गया. चूकि खासमहाल जमीन की सूची एलआरडीसी के पास होती है, इसलिए पूरी जानकारी उनको दे दी गई थी. ईटीवी भारत की टीम ने रांची के एलआरडीसी राजीव कुमार सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के ऑर्डर को एसएलपी के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. उनकी दलील है कि संबंधित जमीन खासमहाल की लिस्ट में है.
पुगड़ु जमीन पर क्या है एसआईटी की रिपोर्ट: जब यह बात सामने आई कि पुगड़ु की 9.30 एकड़ जमीन खासमहाल की है तो राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग ने जांच के लिए 7 दिसंबर 2020 को तत्कालीन श्रमायुक्त ए.मुथुकमार के नेतृत्व में एसआईटी गठित की दी. उसमें राजस्व निबंधन विभाग की अपर सचिव, सुमन कैथरिन, संयुक्त सचिव अभिषेक श्रीवास्तव और अवर सचिव मधुकांत त्रिपाठी को सदस्य बनाया गया.
इसके बाद एसआईटी ने जांच में पाया कि पंजी-2 के पृष्ठ संख्या 98/1 में संबंधित जमीन की जमाबंदी मेहंदी हसन के नाम पर है. परिवर्तन प्राधिकार कॉलम में इसे छप्परबंदी दिखाया गया है. इसी भूमि की जमाबंदी पंजी-2 के पृष्ठ संख्. 171/1 में आशीष कुमार गांगुली के नाम पर दाखिल खारिज कायम है. वहीं उपायुक्त, रांची के विविध वाद संख्या 38R8/03-04 में राज्य सरकार बनाम मोबारक हुसैन एवं अन्य मं पारित आदेश के आधार पर और नामकुल अंचलाधिकारी के अनुपालन में जमाबंदी पंजी-2 में अंकित है.
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एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि जमाबंदी के पेज में कहीं भी लीज का जिक्र नहीं है. संबंधित भूखंड का अबतक 04 सेल डीड हुआ है. पहला सेल डीड अप्रैल 1929 में, दूसरा सेल डीड 1940 में मौलवी मुहम्मद जहीरीरूद्दीन को डब्यूएच हिचकोक के नाम से तत्कालीन डीसी के कोर्ट द्वारा जमीन की बिक्री की अनुमति प्राप्त कर एक्सक्यूट किया गया है.
तीसरा सेल डीड 2 मई 1985 को रामचंद्र मुखर्जी के नाम से किया गया. इसमें 1 अप्रैल 1984 से 31 मार्च 2014 तक लीज हुई थी. लेकिन 2014 के बाद लीज का नवीकरण नहीं हुआ. इस आधार पर एसआईटी ने बताया कि यह जमीन खासमहाल की नहीं है. क्योंकि वर्ष 2011, 2015 और 2019 में बनी खास महाल जमीन की लिस्ट में इस जमीन का जिक्र नहीं है. इसके बाद व्यवसायी विष्णु अग्रवाल ने अपनी पत्नी अणुश्री अग्रवाल के नाम से जमीन खरीदी.
एसआईटी के मुताबिक सर्वे खतियान में मौलवी जहीरूद्दी का नाम दर्ज है. जांच के दौरान एसआईटी ने 29 जनवरी 2021 को विष्णु अग्रवाल को बुलाकर उनका पक्ष भी लिया था. एसआईटी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि रांची की लोक अदालत ने 8 फरवरी 2020 को जारी आदेश में सूट संख्या 299/2010 को मोबारक हुसैन बनाम आशीष कुमार गांगुली के बीच लंबित स्वामित्व विवाद को आपसी समझौता के तहत निष्पादित कर दिया गया था.
हालांकि तत्कालीन नामकुम अंचलाधिकारी ने 10 दिसंबर 2019 को एलआरडीसी को पत्रांक 1721(ii) के जरिए पुगड़ी की 9.30 एकड़ जमीन को खास महाल की सूची में दर्ज करने के लिए पत्र लिखा था. इसके बाद एसआईटी ने रांची के एलआरडीसी से 8 मार्च 2021 को लगान पुस्तिका की फोटो कॉपी मांगी. 10 मार्च 2021 को अपनी रिपोर्ट में एलआरडीसी ने बताया कि संबंधित जमीन का 01 से 09 तक की लगान पुस्तिका में कोई जिक्र नहीं था.
हिचकॉक ने बेची थी जमीनः सबसे खास बात है कि विवादित जमीन का दो बार पंजी-2 में जमाबंदी हुआ है. पहली बार 1965-66 में मेहंदी हसन, पिता अगनु मिंया के नाम पर हुआ था. उस वक्त डब्ल्यू एस हिचकॉक के दोस्त केली ने गवाही में बताया था अगनू मिंया के बड़े पुत्र मेहंदी हसन को हिचकॉक ने पोस-पुत्र बनाकर पूरी जायदाद का हकदार बनाया था. इसी आधार पर जमीन पर पहली बार खरीद-बिक्री हुई थी.
तत्कालीन नामकुम सीओ पर सवाल: विष्णु अग्रवाल ने 8 अगस्त 2019 को जमीन खरीदी थी और म्यूटेशन के लिए अप्लाई किया था. लेकिन तत्कालीन सीओ शुभ्रा रानी ने 10 दिसंबर 2019 को एलआरडीसी को पत्र भेजकर 2 फरवरी 1985 के लीज का हवाला देते हुए बताया था कि यह जमीन खासमहाल की है लेकिन एलआरडीसी के लीज लिस्ट में इसका जिक्र नहीं है. फिर एक साल बाद नामकुम सीओ ने 8 दिसंबर 2020 को उपायुक्त को विषयांकित भूखंड को खास महाल भूमि की प्रतिबंधित सूची में शामिल करते हुए लॉक करने की अनुशंसा की थी. तत्कालीन सीओ द्वारा एक ही मामले में अलग-अलग अनुशंसा पर एसआईटी ने सवाल खड़े किए थे.
तत्कालीन अपर समाहर्ता पर भी सवाल: पुगड़ु की 9.30 एकड़ जमीन मामले में तत्कालीन एलआरडीसी, रांची सत्येंद्र कुमार ने 3 मार्च 2020 को राजस्व एवं निबंधन विभाग के संयुक्त सचिव को लिखे पत्र में इस बात का जिक्र किया था कि संबंधित जमीन की अवैध तरीके से खरीद बिक्री हुई है. उन्होंने उस भूखंड को खास महाल कैटेगरी का बताया था. लेकिन 5 मार्च 2020 को लोकायुक्त के सचिव को प्रतिवेदित पत्र में उन्होंने कहा था कि हिचकॉक ने मौलवी मुहम्मद जहरीरूद्दीन को जमीन बेची थी. इसलिए इस जमीन का जिक्र खासमहाल की लिस्ट में नहीं है.
पूरा मामला बेहद पेचीदा: कभी बताया गया है कि यह जमीन खास महाल की नहीं है तो कभी है. हद तो यह है कि हाईकोर्ट से आदेश जारी होने के बाद भी मामले को लटका कर रखा गया. अब हाईकोर्ट के आदेश को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इस बीच 26 जुलाई को ईडी ने भी इस मामले की जांच के लिए व्यवसायी विष्णु अग्रवाल को बुलाया है. सबसे बड़ा सवाल है कि इस विवाद के लिए सही मायने में दोषी कौन है.