रांचीः राजधानी रांची में करोड़ों की सरकारी जमीन हड़पने के लिए एक बड़ी साजिश रची गई थी. इस साजिश को अंजाम देने के लिए बड़े कारोबारी, राज्य सरकार के बड़े अफसर, राजस्व विभाग के भ्रष्ट कर्मी से लेकर जमीन दलाल और भू-माफिया तक शामिल थे, लेकिन ईडी ने सबके मंसूबों पर पानी फेरते हुए सरकार की करोड़ों रुपए की जमीन को गलत हाथों में जाने से बचा लिया. ईडी ने जमीन घोटाले की एक-एक साजिश का खुलासा कर दिया है.
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हर दावेदार निकला फर्जीः ईडी ने जिस जमीन को जब्त किया उनपर पर दावा और मुकदमा करने वाले सभी फर्जी निकले. दरअसल, जमीन पर दावा करने वाले और मुकदमा करने वालों की भी जमीन नहीं थी. ईडी द्वारा जमीन से संबंधित दस्तावेज की जांच के दौरान इसकी पुष्टि हुई है. रांची के चेशायर होम जमीन मामले में ईडी ने अपनी जांच में पाया है कि बिहार सरकार ने वर्ष 1976 में भू हदबंदी कानून के तहत इस जमीन को अधिग्रहित कर लिया था. इस संबंध में गजट भी प्रकाशित किया गया था. झारखंड सरकार के राजस्व कार्यालय में इससे संबंधित दस्तावेज भी उपलब्ध हैं. इसके बावजूद इस जमीन की खरीद-बिक्री हुई. जबकि इस जमीन के दावेदार हाई कोर्ट तक पहुंचे थे, लेकिन ईडी की जांच ने सब की पोल खोल कर रख दी. चेशायर होम रोड की एक एकड़ जमीन की डील भी 1948 के फर्जी डीड के जरिए की गई थी. विष्णु अग्रवाल को इस जमीन के फर्जीवाड़े की पूरी सच्चाई पता थी, बावजूद इसके प्रेम प्रकाश के साथ मिलकर उन्होंने इस जमीन को हथियाने की साजिश रची.
फोरेंसिक जांच में भी दस्तावेज के फर्जी होने की पुष्टिः ईडी के द्वारा जमीन घोटाले की जांच में यह बात साफ हो चुकी थी कि सरकारी जमीन हड़पने के लिए बड़े पैमाने पर फर्जी दस्तावेजों का प्रयोग किया गया है. इसकी पुष्टि करने के लिए ईडी ने फोरेंसिक जांच का सहारा लिया. ईडी ने बड़गाईं अंचल से रजिस्टर 2 की मूल कॉपी की फॉरेंसिक जांच करायी. गांधीनगर एफएसएल ने जांच में पाया कि रजिस्टर 2 के पेज संख्या 249 में बीएम मुकंदराव, पिता- बीएम लक्ष्मण राव, रैयत-प्लाट नंबर 556 की इंट्री बाद में की गई है. पेज संख्या 249 के पेज के रंग और इंक के रंग बाकि अन्य पन्नों से अलग पाए गए, इससे फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई.
जांच में सामने आए चौंकानेवाले तथ्यः रांची में जमीन घोटाले में जिस तरह के तथ्य अनुसंधान में सामने आए हैं वह काफी चौंकाने वाले हैं. करमटोली में सेना की 4.55 एकड़ जमीन हथियाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए गए. सेना की जमीन को लेकर ईडी ने बड़गाईं अंचल में सर्वे किया, तब सेना की जमीन से जुड़ा म्यूटेशन का पेपर मिला. मिले कागजात के अनुसार शहर अंचल से 1960-61 में ही जमीन म्यूटेशन ( जमाबंदी) हुई, लेकिन ईडी ने जांच की तब पाया कि तब रांची में सदर अंचल ही नहीं बना था. रांची में सदर अंचल का निर्माण 1970 में हुआ था. 1971 से शहर अंचल ऑपरेशन में आया, लेकिन माफियाओं ने कागजात में हेरफेर की तो म्यूटेशन के दस्तावेजों में अंचल के निर्माण के पूर्व की तारीख डाल दी.
कोर्ट को भी किया गया गुमराहः ईडी ने जब जांच की दिशा को आगे बढ़ाने के लिए रांची के बड़गाईं अंचल का सर्वे किया, तब जांच में पाया कि प्लाट संख्या 557, मौजा मोहरबादी का जिक्र रजिस्टर 2 के पेज संख्या 249 में हैं. इस पेपर में रैयत के तौर पर बीएम मुकुंद राव का जिक्र है. इसी दस्तावेज में बीएम मुकुंदराव का म्यूटेशन केस नंबर 1298आर27/60-61 फाइल और स्वीकृत दिखाया गया है. इस दस्तावेज में अंचल की जगह शहर अंचल का जिक्र है. जांच में ईडी ने यह पाया है कि बिहार सरकार के नोटिफिकेशन संख्या 6649 से 25 अक्तूबर 1970 को शहर अंचल का गठन किया गया था. शहर अंचल में कामकाज 14 अप्रैल 1971 से शुरू हुआ था. ऐसे में जाहिर है कि म्यूटेशन नंबर 1298 आर27/60-61 शहर अंचल में स्वीकृत नहीं हुआ है. ईडी ने जांच में पाया कि रजिस्टर 2 में छेड़छाड़ कर बीएम मुकुंदराव और बीएम लक्ष्मण राव का नाम डाला गया. बाद में इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर जयंत करनाड ने झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की और जमीन के रेंट की मांग की. जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार किया. ईडी ने पाया है कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे हाइकोर्ट से अपने पक्ष में आदेश लिया गया था.
महंगी जमीन के पेपर फड़वाकर जमीन लूट का खेलः रांची के रजिस्ट्री कार्यालयों और अंचल के रिकार्ड गायब कर फर्जीवाड़े की शुरुआत की गई. इसके बाद उन जमीन के रिकार्ड कोलकाता के रजिस्ट्रार ऑफ एश्योरेंस के यहां से भी या तो गायब करा दिए गए या वहां छेड़छाड़ की गई. इसके बाद चंद रुपए में करोड़ों, अरबों की जमीन का सौदा रांची के माफियाओं ने कर लिया. ईडी की जांच में जो तथ्य आए हैं उससे स्पष्ट है कि अबतक सेना की बरियातू, बजरा की 7.16 एकड़ और चेशायर होम रोड की महंगी जमीन के असल रैयत को खोज पाना मुमकिन नहीं है. यही वजह है कि ईडी ने जमीन घोटाले में जांच के बाद 161.64 करोड़ की जमीन को जब्त कर लिया . एडुकेटिंग अथोरिटी की मुहर के बाद यह संपत्ति भारत सरकार की संपत्ति हो जाएगी.
पुगडू जमीन का ड्राफ्ट विष्णु ने तैयार किया, छवि ने निकाला आर्डरः ईडी ने अनुसंधान जांच में पाया है कि पुगडू की 9.30 एकड़ जमीन को लेकर विष्णु अग्रवाल ने एक ड्राफ्ट तत्कालीन डीसी छवि रंजन को भेजा था.इसी ड्राफ्ट में मामूली बदलाव कर छवि रंजन ने राज्य सरकार के संयुक्त सचिव अंजनी कुमार मिश्रा को पत्र भेजा. इसके बाद हस्ताक्षरयुक्त मूल कॉपी भी विष्णु अग्रवाल को भेजा गया था.दो बार इस गोपनीय पत्र को भेजा गया था, जिसमें लिखा गया था कि इस जमीन में एसआईटी ने प्रतिवेदन दिया है, डीसी के स्तर से इसकी समीक्षा का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता. ईडी ने लिखा है कि विष्णु अग्रवाल के पक्ष में आर्डर निकलावकर उन्हें फायदा पहुंचाया गया.
आखिरकार जब्त हो गई जमीन:रांची में जमीन घोटाले की जांच कर रही ईडी ने शुक्रवार को 161.64 करोड़ रुपए मूल्य के भू-खंड को अस्थाई रूप से जब्त कर लिया था. जब्त सारी जमीन कारोबारी विष्णु अग्रवाल से जुड़ी हुई थी. विष्णु अग्रवाल के द्वारा फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खरीदी गई चेशायर होम रोड की जमीन, सिमरटोली में सेना के द्वारा अधिगृहित 5.83 एकड़ जमीन और पुगडू मौजा की 9.30 एकड़ जमीन शामिल है. इन तीनों जमीन का बाजार मूल्य ईडी ने 161.64 करोड़ आंकी है. ईडी ने रांची में हुए जमीन घोटाले में अबतक कुल 236 करोड़ के बाजार मूल्य की जमीन जब्त की है. पूर्व में करमटोली स्थित सेना के कब्जे वाली जमीन और पुंदाग मौजा की 74.39 करोड़ की जमीन भी ईडी ने अस्थायी तौर पर जब्त की थी.