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कैसे धरती आबा बन गए बिरसा मुंडा, 120वीं पुण्यतिथि पर TRI के निदेशक से एक्सक्लूसिव बातचीत

पूरे झारखंड में बिरसा मुंडा की 120वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है. सीएम हेमंत सोरेन, राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू समेत सभी लोगों ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित की. 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिला के उलीहातू में सुगना मुंडा के घर बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. बिरसा मुंडा के इतिहास को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने रांची स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार से खास बातचीत की.

ETV bharat exclusive interview with TRI director on Birsa Munda 120th death anniversary in ranchi
टीआरआई के निदेशक से एक्सक्लूसिव बातचीत
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Published : Jun 9, 2020, 4:57 PM IST

रांची: 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिला के उलीहातू में सुगना मुंडा के घर जन्मे बिरसा मुंडा ने महज 25 वर्ष के अपने जीवन काल में अपने समाज के लिए ऐसा कुछ किया जिसकी वजह से उन्हें भगवान की उपाधि मिल गई. बांसुरी बजाते और बकरी चराते हुए खूंटी के चलकद में बचपन बीता. इनकी प्रारंभिक शिक्षा बुर्जू प्राथमिक विद्यालय और मध्य विद्यालय चाईबासा में हुई. किशोरावस्था में सरदारी आंदोलन का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा.

देखें पूरी बातचीत

बिरसा मुंडा ने बंदगांव के आनंद पाड़ के साथ रहकर वैष्णव धर्म को समझा, जिसका इन पर गहरा प्रभाव पड़ा. एक ऐसा समय आया जब बिरसा को सिंगबोंगा ने दर्शन दिए और यहीं से उन्हें समाज और लोगों की सेवा करने की शक्ति मिली. रोहगर यानी रोग को हरने वाले के रूप में इनकी ख्याति गांव-गांव तक फैल गई. लोगों के बीच पहचान बनने के बाद जब इन्हें समझ में आया कि अंग्रेजों के दमनकारी भू-लगान कानून और वन कानून के कारण मुंडा समाज का अधिकार छिन जाएगा तो इन्होंने अंग्रेजी हुकूमत, साहूकारों, जागीरदारों और ठेकेदारों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. अब बिरसा मुंडा अंग्रेजों को चुभने लगे थे. अगस्त 1895 में लोहरदगा के तत्कालीन एसपी मेयर्स ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन्हें 2 साल की सजा हुई और 50 रु का जुर्माना लगा. 1897 में जेल से निकलने के बाद बिरसा मुंडा अपने अनुयायियों के साथ चेचक जैसी महामारी से पीड़ित परिवारों की सेवा में जुट गए. यहीं वह समय था जब आम लोगों के प्रति सेवा भाव के कारण लोग उन्हें धरती आबा यानी भगवान के नाम से पुकारने लगे.

बिरसा मुंडा की 120वीं पुण्यतिथि

इसे भी पढे़ं:- राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा को दी श्रद्धांजलि, अपने-अपने आवास पर ही किया माल्यार्पण

बिरसा मुंडा ने अपने समाज में बिरसा धोरम (धर्म) का प्रचार रांची और सिंहभूम में किया. इसके साथ उन्होंने सिर्फ एक भगवान यानी सिंगबोंगा को मानने, हड़िया का त्याग और निरामिष जीवन अपनाने का उपदेश दिया. उनके साथ काफी संख्या में उरांव और मुंडा समाज के लोग जुड़े और उनके अनुयायी के रूप में बिरसाइत कहलाए. बिरसा मुंडा ने उलगुलान, अबुआ दिशुम-अबुआ राज, अबुआ राज एतेजना-महारानी राज तुड़ुजना का नारा दिया. देखते-देखते बीरसा के उलगुलान की आग खूंटी, तमाड़, तोरपा, पोड़ाहाट और लोहरदगा तक फैल गई. 8 जनवरी 1900 को डोंबारी बुरु के बिरसाइत आंदोलनकारियों पर अंग्रेजों की विशाल सेना ने उपायुक्त स्ट्रीट फील्ड की अगुवाई में धावा बोल दिया और फायरिंग में सैकड़ों मुंडा शहीद हो गए और 3 मार्च 1900 में गद्दारों की मदद से धरती आबा बिरसा मुंडा को बंदगांव के रोगोड़ जंगल से गिरफ्तार कर लिया गया. रांची स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार ने जनजातीय दर्शन, इतिहास और आर्थिकी पर ईटीवी भारत के साथ चर्चा की. उन्होंने कहा कि जनजातीय जीवनशैली चार बातों पर केंद्रित है, वह है - अल्प भोग और पूर्ण संतुष्टि, प्रकृति के चर अचर के साथ आत्मबोध, अगली पीढ़ी के लिए बेहतर पृथ्वी और सबके लिए खुशी, जिसे कोरोना काल के परिप्रेक्ष्य में हर इंसान को आत्मसात करने की जरूरत है.

रांची: 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिला के उलीहातू में सुगना मुंडा के घर जन्मे बिरसा मुंडा ने महज 25 वर्ष के अपने जीवन काल में अपने समाज के लिए ऐसा कुछ किया जिसकी वजह से उन्हें भगवान की उपाधि मिल गई. बांसुरी बजाते और बकरी चराते हुए खूंटी के चलकद में बचपन बीता. इनकी प्रारंभिक शिक्षा बुर्जू प्राथमिक विद्यालय और मध्य विद्यालय चाईबासा में हुई. किशोरावस्था में सरदारी आंदोलन का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा.

देखें पूरी बातचीत

बिरसा मुंडा ने बंदगांव के आनंद पाड़ के साथ रहकर वैष्णव धर्म को समझा, जिसका इन पर गहरा प्रभाव पड़ा. एक ऐसा समय आया जब बिरसा को सिंगबोंगा ने दर्शन दिए और यहीं से उन्हें समाज और लोगों की सेवा करने की शक्ति मिली. रोहगर यानी रोग को हरने वाले के रूप में इनकी ख्याति गांव-गांव तक फैल गई. लोगों के बीच पहचान बनने के बाद जब इन्हें समझ में आया कि अंग्रेजों के दमनकारी भू-लगान कानून और वन कानून के कारण मुंडा समाज का अधिकार छिन जाएगा तो इन्होंने अंग्रेजी हुकूमत, साहूकारों, जागीरदारों और ठेकेदारों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. अब बिरसा मुंडा अंग्रेजों को चुभने लगे थे. अगस्त 1895 में लोहरदगा के तत्कालीन एसपी मेयर्स ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन्हें 2 साल की सजा हुई और 50 रु का जुर्माना लगा. 1897 में जेल से निकलने के बाद बिरसा मुंडा अपने अनुयायियों के साथ चेचक जैसी महामारी से पीड़ित परिवारों की सेवा में जुट गए. यहीं वह समय था जब आम लोगों के प्रति सेवा भाव के कारण लोग उन्हें धरती आबा यानी भगवान के नाम से पुकारने लगे.

बिरसा मुंडा की 120वीं पुण्यतिथि

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बिरसा मुंडा ने अपने समाज में बिरसा धोरम (धर्म) का प्रचार रांची और सिंहभूम में किया. इसके साथ उन्होंने सिर्फ एक भगवान यानी सिंगबोंगा को मानने, हड़िया का त्याग और निरामिष जीवन अपनाने का उपदेश दिया. उनके साथ काफी संख्या में उरांव और मुंडा समाज के लोग जुड़े और उनके अनुयायी के रूप में बिरसाइत कहलाए. बिरसा मुंडा ने उलगुलान, अबुआ दिशुम-अबुआ राज, अबुआ राज एतेजना-महारानी राज तुड़ुजना का नारा दिया. देखते-देखते बीरसा के उलगुलान की आग खूंटी, तमाड़, तोरपा, पोड़ाहाट और लोहरदगा तक फैल गई. 8 जनवरी 1900 को डोंबारी बुरु के बिरसाइत आंदोलनकारियों पर अंग्रेजों की विशाल सेना ने उपायुक्त स्ट्रीट फील्ड की अगुवाई में धावा बोल दिया और फायरिंग में सैकड़ों मुंडा शहीद हो गए और 3 मार्च 1900 में गद्दारों की मदद से धरती आबा बिरसा मुंडा को बंदगांव के रोगोड़ जंगल से गिरफ्तार कर लिया गया. रांची स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार ने जनजातीय दर्शन, इतिहास और आर्थिकी पर ईटीवी भारत के साथ चर्चा की. उन्होंने कहा कि जनजातीय जीवनशैली चार बातों पर केंद्रित है, वह है - अल्प भोग और पूर्ण संतुष्टि, प्रकृति के चर अचर के साथ आत्मबोध, अगली पीढ़ी के लिए बेहतर पृथ्वी और सबके लिए खुशी, जिसे कोरोना काल के परिप्रेक्ष्य में हर इंसान को आत्मसात करने की जरूरत है.

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