रांचीः विश्व आदिवासी दिवस को यादगार बनाने के लिए व्यापक स्तर पर तैयारी की गई हैं. दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव कार्यक्रम के दौरान न सिर्फ आदिवासी कला-संस्कृति, नृत्य-संगीत, वेश-भूषा और खान-पान पर फोकस किया जाएगा, बल्कि जनजातीय अर्थव्यवस्था, आदिवासी साहित्य, जनजातीय ज्ञान, मानव विज्ञान के अतीत और भविष्य जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी. इसके लिए देशभर से आदिवासी मामलों के जानकारों को आमंत्रित किया गया है.
जनजातीय अर्थव्यवस्था पर सेमिनारः एक राष्ट्र के आर्थिक विकास में जितना महत्वपूर्ण योगदान शहरी अर्थव्यवस्था का होता है, उतना ही जनजातीय अर्थव्यवस्था का भी होता है. इस सेमिनार में आर्थिक व्यवस्था के दोहरे उद्देश्यों पर विशेष चर्चा होगी. इसके लिए डॉ सीपी चंद्रशेखर , डॉ जयति घोष, डॉ अमित भादुरी, डॉ प्रवीण झा, डॉ अरुण कुमार, डॉ ज्यां द्रेज, डॉ बेला भाटिया, डॉ रमेश शरण, डॉ जया मेहता और पी साईनाथ को आमंत्रित किया गया है. ये दिग्गज कार्यक्रम में अपने अनुभव साझा करेंगे.
जनजातीय ज्ञान, मानव विज्ञान पर सेमिनारः आदिवासी जीवन और उसके मूल्यों को समझने के लिए मानवविज्ञान से जुड़ा अतीत और भविष्य जानना जरूरी है. इससे जुड़े मुख्य कारकों पर प्रकाश डाला जाएगा. इन विषयों पर चर्चा के लिए प्रो टी कट्टीमनी, प्रो एसएम पटनायक, प्रो सत्यनारायण मुंडा, प्रो विजय एस सहाय, प्रो एमसी बेहरा, प्रो पुष्पा मोतियानी, प्रो सुमहन बंदोपाध्याय, डॉ नरेश चन्द्र साहू, डॉ पिनाक तरफदार और डॉ डैली नेली को आमंत्रित किया गया है.
आदिवासी साहित्य पर सेमिनारःसेमिनार में आदिवासी जीवन, रहन-सहन, परंपराओं, सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर आधारित साहित्य के विषयों पर भी चर्चा होगी. जनजातीय समूह के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास के सकारात्मक परिणामों पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा. इन विषयों पर प्रतिष्ठित वक्ता ममांग दाई, सेवानिवृत्त प्रो मृदुला मुखर्जी , सेवानिवृत्त प्रो आदित्य मुखर्जी, डॉ राकेश बताब्याल, प्रो महालक्ष्मी रामाकृष्णन, प्रो वी सेल्वाकुमार, डॉ स्नेहा गांगुली, डॉ किशोर लाल चंदेल, डॉ देव कुमार झाजं और प्रो रोमा चटर्जी अपने अनुभव और तथ्य साझा करेंगे.
आदिवासी संस्कृति को बचाए रखना चुनौतीः दरअसल, स्वभाव से आदिवासी समाज के लोग बेहद सरल होते हैं. कम जरूरत और संसाधन के साथ प्रकृति से जुड़कर रहना इन्हें सुकून देता है, लेकिन बदलते दौर में आदिवासी संस्कृति को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है. जाहिर है इन सेमिनारों के जरिए आदिवासी समाज में दिलचस्पी रखने वालों को बहुत कुछ जानने का मौका मिलेगा.