रांची: झारखंड में धड़ल्ले से आदिवासियों की जमीन हड़पी जा रही है. उनकी कला-संस्कृति, रीति-रिवाज पर खतरा मंडरा रहा है. इसको बचाने के लिए पेसा रूल की मांग सड़क से सदन तक उठती रही है. फिर भी राज्य बनने के 23 वर्ष बाद तक यह व्यवस्था एक अबूझ पहेली रही. लिहाजा, आदिवासी हित को देखते हुए हेमंत सरकार ने पेसा रूल 2022 के लिए आपत्ति और सुझाव मांगे थे. जिसको अंतिम रूप दे दिया गया है. इसके तहत ग्रामसभा के पास असीम शक्ति होगी.
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राज्य सरकार के इस पहल पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया आने लगी है. प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने करम परब का गिफ्ट बताते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति आभार जताया है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन की सकारात्मक सहमति पेसा कानून को मिलेगी. वहीं चाईबासा से झामुमो विधायक दीपक बिरूआ ने कहा है कि पेसा कानून का मामला हाईकोर्ट में है. इसलिए इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती.
क्या-क्या कर सकेगी ग्रामसभा: आईपीसी की कुल 36 धाराओं के तहत अपराध करने वालों पर न्यूनतम 10 रुपये से लेकर अधिकतम 1000 रुपये तक के दण्ड का प्रावधान है और मोटे तौर पर देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि जल स्रोतों को प्रदूषित करने, जीव-जंतुओं के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार, अश्लील काम करने, अश्लील गाना बजाने, धार्मिक भावनाओं को भड़काने या उसे ठेस पहुंचाने, दंगा-फसाद, चोरी करने, छल-कपट, जीव जंतु को मारने या विकलांग करने, मानहानि, खोटे बाट का इस्तेमाल, जबरन काम कराने, लोक शांति भंग करने जैसे कृत्य पर दंडित करने का अधिकार ग्राम सभा को होगा. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में सभी तरह के अपराधों पर नियंत्रण लगेगा. इसके अलावा जमीन अधिग्रहण से लेकर आदिवासी जमीन की खरीद बिक्री ग्रामसभा की सहमति के बिना नहीं हो सकेगी. पुलिस को अनुसूचित क्षेत्र में किसी की गिरफ्तारी करने पर ग्राम सभा को सूचना देनी होगी.
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नेताओं की प्रतिक्रिया: राज्य सरकार की इस कवायद पर पूर्व मंत्री सह झारखंड सरकार की समन्वय समिति के सदस्य सह प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिक्री ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है. उन्होंने इसे क्रांतिकारी कदम बताया है. उन्होंने करम परब का हवाला देते हुए सीएम हेमंत सोरेन के प्रति आभार जताया है. उन्होंने कहा कि राजीव गांधी के कारण ही पंचायती राज कानून लागू हुआ था. पेसा कानून भी कांग्रेस की ही देन है. उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायतों और पारम्परिक ग्राम सभाओं के अधिकारों को लेकर विरोधाभास था जिसका आदिवासी समाज लगातार विरोध कर रहा था.
उन्होंने कहा कि पांचवी अनुसूची के तहत आनेवाले क्षेत्रों के लिये 1996 में पेसा यानी पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया कानून बना था. इसके बाद संबंधित राज्यों को एक साल के भीतर इससे संबंधित कानून बनाना था. लेकिन झारखंड में ऐसा नहीं हो पाया. लंबे समय पर झारखंड में भाजपा का शासन रहा, जिसने इसपर कभी ध्यान नहीं दिया.
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बंधु तिर्की ने कहा है कि पारंपरिक प्रधान मानकी, मुण्डा, मांझी, परगना, दिउरी, डोकलो, सोहरो, पड़हा राजा जैसे पारम्परिक प्रधान को अधिकार मिलने से झारखंड को उसका पुराना स्वाभिमान लौटेगा. उन्होंने कहा कि पेसा कानून को लागू करवाने की मांग करते हुए उनके साथ कई लोगों को जेल की प्रताड़ना सहनी पड़ी है. उन्होंने कहा कि भाजपा ने यदि पंचायती राज अधिनियम लागू भी किया तो उसमें पांचवी अनुसूची की अवहेलना की.
लेकिन पेसा कानून के जानकारों का कहना है कि अभी भी इस राह में बहुत से रोड़े हैं. यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है. पेसा कानून को इस रूप में दिखाया जा रहा है कि इससे अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों के अधिकार का दायरा बढ़ जाएगा. लेकिन सच यह है कि यह कानून मूलवासियों को भी बराबर का हक देने की बात करता है.