रांची: पिछले साल मार्च में जब कोरोना ने दस्तक दी तब सारे स्कूल बंद कर दिए गए. ऐसे में बच्चों को मिड-डे-मील कैसे मिले इसको लेकर दिक्कत शुरू हो गई. सरकार ने यह निर्णय लिया कि मिड-डे-मील की जगह खाद्यान्न बच्चों के घर तक पहुंचाया जाएगा लेकिन पिछले साल यह योजना सिर्फ खानापूर्ति तक ही सीमित रह गई. इस साल भी यही योजना है लेकिन अब तक यह धरातल पर नहीं उतरी है.
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अब तक नहीं शुरू हुई योजना
झारखंड सरकार ने इस साल भी बच्चों के घरों तक मध्यान भोजन के लिए अनाज पहुंचाने की योजना तैयार की है. अप्रैल से इस योजना की शुरुआत करने की बात कही गई थी लेकिन अब तक यह योजना शुरू नहीं हुई है क्योंकि जिन शिक्षकों के भरोसे अनाज बच्चों के घरों में पहुंचाना है वे अभी कोविड ड्यूटी में लगे हैं.
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे स्कूलों में मिलने वाले मिड-डे-मील पर आश्रित हैं. पिछले वर्ष भी मध्यान भोजन योजना घर-घर तक पहुंचाने की बात कही गई थी. करीब 55% विद्यार्थियों को मिड-डे-मील में दिया जाने वाला खाद्यान्न और कुकिंग कॉस्ट की राशि उनके अकाउंट में भेजी गई थी बाकी विद्यार्थियों तक अनाज पहुंचा कि नहीं, यह अभी भी सवाल बना हुआ है.
अब तक नहीं मिली ऑडिट रिपोर्ट
बच्चों के घरों तक अनाज पहुंचाने और अकाउंट में राशि भेजने को लेकर शिक्षा विभाग की ओर से उच्चस्तरीय निगरानी कमेटी बनाई गई थी. लेकिन अब तक जांच रिपोर्ट और पिछले वर्ष के मिड-डे-मील की ऑडिट रिपोर्ट सरकार को नहीं मिली है.
इस वर्ष भी राज्य सरकार के शिक्षा परियोजना परिषद और मध्यान भोजन प्राधिकरण ने यह निर्णय लिया है कि स्कूल बाधित होने की वजह से विद्यार्थियों के घर-घर तक मध्यान भोजन पहुंचाए जाएंगे. कुकिंग कॉस्ट की राशि उनके अकाउंट में भेजी जाएगी.
कोविड ड्यूटी में लगे हैं शिक्षक
मध्यान भोजन बच्चों के घरों तक शिक्षकों द्वारा पहुंचाया जाना है. बार-बार शिक्षकों की तरफ से भी कहा जा रहा है कि उन्हें कोविड ड्यूटी से मुक्त किया जाए और पठन-पाठन में लगाया जाए लेकिन अब तक ऐसे सैकड़ों शिक्षक हैं जो ड्यूटी में हैं और उनके द्वारा मध्यान भोजन घर-घर तक नहीं मुहैया कराया जा रहा है.
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न खाद्यान्न मिला न पैसा
शहरी क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को भी इस वर्ष में अब तक न तो खाद्यान्न उपलब्ध हुआ है और न अकाउंट में राशि मिली है. इसको लेकर शिक्षाविदों ने सवाल खड़े किए हैं. अभिभावक प्रतिनिधियों ने भी इस योजना को विफल बताया है.
उनकी मानें तो इस योजना में किसी भी तरीके की निगरानी सही तरीके से नहीं हो रही है. ऑडिट में एक बड़ा घोटाला सामने आएगा. इस मामले को लेकर जब शिक्षा पदाधिकारी अरविंद विजय बिलुंग से जब हमने सवाल पूछा तो वे गोलमोल जवाब देकर बचते दिखे.
पिछले साल भी मिली थी शिकायत
बता दें कि पिछले वर्ष सरकारी स्कूल को बच्चों के खाते में 4 फेज में राशि भेजी गई थी. 17 मार्च से 14 अप्रैल तक पहले फेज में सर्वाधिक गड़बड़ियों की शिकायत मिली थी. पहली से पांचवीं तक के बच्चों को 2 किलो चावल और 113 .7 पैसे कुकिंग कॉस्ट के देने थे जबकि छठी से आठवीं तक के बच्चों को 3 किलो चावल और 158.20 पैसे देने थे.
बच्चों के अकाउंट में न तो कुकिंग कॉस्ट और न ही खाद्यान्न समय पर पहुंचे. इस वर्ष भी मध्यान भोजन वितरण को लेकर ऐसी स्थिति न हो, इसे लेकर लगातार निगरानी रखने की बात कही जा रही है.