रांची: झारखंड की बात भगवान बिरसा मुंडा के बगैर पूरी नहीं होती. कुछ तो बात थी, तभी तो यहां के लोगों ने उन्हें भगवान का दर्जा दिया. हक के लिए अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान करने वाले बिरसा मुंडा ने आज ही के दिन सिर्फ 25 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी. उनकी शहादत को पूरा देश नमन कर रहा है. लेकिन सच पूछिए तो झारखंड में भगवान बिरसा के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है. साल में दो बार उनको शिद्दत से याद किया जाता है. जयंती के दिन जन्मस्थली उलिहातू और शहादत के दिन कोकर स्थित समाधि स्थल पर बड़े बड़े माननीय पहुंचते हैं. उनके संघर्ष की याद दिलाते हैं. सांस्कृतिक पहचान के साथ झारखंड को आगे बढ़ाने की बात करते हैं और चले जाते हैं. अब ऐसी स्थिति हो गई है कि भगवान बिरसा मुंडा के वंशजों का सिस्टम पर से भरोसा उठने लगा है.
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भगवान बिरसा मुंडा के पौत्र सुखराम मुंडा बीमार चल रहे हैं. उनके पुत्र कानू मुंडा से ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने फोन पर बात की. उनका हालचाल जाना. उनसे पूछा गया कि कौन सी मांग अधूरी पड़ी है. उन्होंने जो बातें बताई वह बहुत तकलीफदेह थी. उनकी एक छोटी सी डिमांड है. एक आशियाना चाहते हैं. इसके पीछे भी एक मकसद है. कानू मुंडा ने कहा कि हमारा मिट्टी का छोटा घर है. भगवान बिरसा को मानने वाले बिरसाइत समाज के लोग मध्य प्रदेश, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल से उनकी पूजा करने आते हैं. लेकिन अतिथियों को दो-एक दिन ठहराने के लिए हमारे पास जगह नहीं है.
उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू जी 15 नवंबर 2022 को उलिहातू आई थीं. भगवान बिरसा की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद उनके वंशजों से मिली थीं. वंशजों ने कहा था कि मैडम जी, बस एक घर चाहिए. उसी समय राष्ट्रपति ने खूंटी के डीसी को कहा था कि इस मांग को जल्द से जल्द पूरा करें. लेकिन सिस्टम सो गया. करीब सात माह गुजरने को हैं. कानू मुंडा ने कहा कि उनके पिता सुखराम मुंडा बीमार चल रहे हैं. अपने स्तर से इलाज करवा रहे हैं. किसी से मदद नहीं मांगी है. भगवान बिरसा के वंशजों ने शहीद ग्राम विकास योजना का लाभ इसलिए नहीं लिया क्योंकि उसके तहत जो मकान बनना है, उसके कमरे का आकार आठ गुना नौ फीट का है. जबकि बरामदे का आकार सात गुना छह फीट का है.
खूंटी के डीसी शशि रंजन ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि उलिहातू में शहीद ग्राम योजना के तहत जरूरतमंदों के लिए आवास बनाया गया है. लेकिन भगवान बिरसा के वंशज सुखराम की जहां तक बात है तो इसके लिए जमीन चिन्हित की जा रही है. वंशज के पास अलग से जमीन नहीं है. इसलिए ऊपर वाले हिस्से में जी प्लस वन कांसेप्ट पर आवास बनाने की तैयारी की जा रही है. उन्होंने कहा कि वह खुद इस मसले को लेकर उलिहातू का दौरा कर चुके हैं. इस मांग को जल्द पूरा कर दिया जाएगा.
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कैसे हो रही है भगवान के नाम पर राजनीति: लंबे संघर्ष के बाद भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन यानी 15 नवंबर को झारखंड राज्य का गठन हुआ. तत्कालीन रघुवर सरकार ने उस जेल को पार्क और शौर्य स्थल के रूप में विकसित किया, जहां बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी. वर्तमान हेमंत सरकार ने कोरोना महामारी के वक्त बिरसा हरित ग्राम नाम पर बागवानी के लिए योजना शुरू की. मध्यप्रदेश में भी भगवान बिरसा मुंडा स्व-रोजगार योजना चलती है. 17 सितंबर 2017 को जब झारखंड में रघुवर दास की सरकार थी, तब भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उलिहातू पहुंचे थे. उस दिन वंशजों के लिए शहीद ग्राम विकास के तहत आवास योजना का शुभारंभ हुआ था. लेकिन वंशजों को उनके जरूरत के मुताबिक मकान नहीं मिला. जब कोई माननीय या वीआईपी रांची आते हैं तो बिरसा चौक स्थित भगवान बिरसा की प्रतिमा पर जरूर माल्यार्पण करते हैं.
बिरसाइत की बात ही है अलग: भगवान बिरसा के उलगुलान के दौरान उनके विचारों के मानने वाले आदिवासी समाज के लोगों ने खुद को बिरसाइत घोषित कर दिया. आज भी उनकी विचारधारा को मानने वाले लोग मौजूद हैं. चाईबासा के बंदगांव प्रखंड के लुम्बई गांव में करीब 30 घर हैं जहां के लोग बिरसाइत कहे जाते हैं. गुदड़ी में करीब 500 घर हैं. वहीं खूंटी के मुरहू प्रखंड स्थिति बुरूहातू और कुंदी गांव में कुछ परिवार बिरसाइत व्यवस्था से जुड़े हैं. ये लोग शराब का सेवन नहीं करते हैं. मांसाहार से दूर रहते हैं. गले में जनेऊ डालते हैं. ये लोग खुद को भगवान बिरसा की पूजा करते हैं और खुद को उनके सच्चे अनुयायी कहते हैं.