रांची: राजधानी से करीब 20 किलोमीटर दूर नगड़ी प्रखंड स्थित देवरी गांव हैं. इस गांव को लोग एलोवेरा विलेज के नाम से भी जानते हैं. यहां हर घर और खेत में एलोवेरा की खेती होती है, जो गांव की महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का माध्यम बन रहा है. यहां हजारीबाग, गढ़वा, पलामू, रांची सहित राज्य के तमाम जिलों से लोग एलोवेरा खरीदने पहुंचते हैं. लॉकडाउन में एक तरफ लोगों का रोजगार छिन चुका है, जबकि देवरी गांव की महिला एलोवेरा की खेती करके अपना नाम रोशन कर रही हैं. इस गांव में मेडिसिन प्लांट की खेती करने की योजना शुरू की जा चुकी है.
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एलोवेरा के पत्ते की बिक्री
महिला किसान का कहना है कि अगर उन्हें मशीन उपलब्ध कराई जाती है, तो वे यहीं पर एलोवेरा का जेल निकालना चालू कर देंगे. एलोवेरा पत्ते की बिक्री 40 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम है. अत्यधिक धूप की वजह से सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इसके पौधारोपण में भी किसी प्रकार का खर्च नहीं होता है. एक पौधे से ही दूसरा पौधा तैयार होता है, जिसमें किसी प्रकार का निवेश नहीं होता और बाजार भी उपलब्ध है. इन्हीं पौधों से अन्य खेतों में भी रोपण कार्य हुआ है, जिसका सुखद परिणाम कुछ महीने बाद देखने को मिलेगा. राज्य सरकार का साथ मिलता रहा तो वृहत पैमाने पर खेती करने से महिलाएं पीछे नहीं हटेंगी.
एलोवेरा जेल की मांग में बढ़ोतरी
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से एलोवेरा विलेज में उगाये जा रहे एलोवेरा की मांग पूरे राज्य में है. महिलाएं 40 से 50 रुपये किलो के हिसाब से इसके पत्ते बेच रहीं हैं. मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो पा रही है. यही वजह है कि अन्य खेतिहर परिवार भी एलोवेरा की खेती में आगे आ रहे हैं. एलोवेरा जेल की मांग इन दिनों बढ़ी है. महिलाओं का कहना है कि जेल निकालने की मशीन उन्हें सरकार जल्द उपलब्ध करा रही है. इसके बाद पत्तों के साथ-साथ वे जेल भी तैयार करेंगे. इसके लिए उत्पादक समूह बनाने की कार्य योजना है.
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प्रति एकड़ 15 हजार की लागत
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मेडिसिनल प्लांट स्पेशलिस्ट विशेषज्ञ कौशल कुमार का कहना है कि एलोवेरा की फसल उगाने में प्रति एकड़ पंद्रह हजार रुपये की लागत आती है. एक एकड़ में प्रति फसल करीब 400 क्विंटल एलोवेरा का उत्पादन होता है, जो खेतों से ही बिक जाता है. विशेषज्ञ समय-समय पर एलोवेरा की खेती का निरीक्षण करते हैं और साथ ही किसानों का मार्गदर्शन करके उनका पूरी तरह से सहयोग भी करते हैं. एक बार एलोवेरा को अगर रोपित कर दिया जाए तो चार साल तक लगातार सात फसलें मिलती हैं. हालांकि, इसकी खेती पूरी तरह से जौविक होती है, इसीलिए सिंचाई के अलावा इस पर कुछ और खर्च नहीं होता है.
आर्थिक रूप से मजबूत हो रहीं महिलाएं
इस खेती को करने से किसानों को काफी फायदा होता है. प्राकृतिक रूप से इसके पौधे को अनउपजाऊ भूमि में उगते देखा गया है. इसे किसी भी भूमि में उगाया जा सकता है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी में इसका अधिक उत्पादन होता है. यही नहीं, एलोवेरा की इस खेती को देख दूसरे गांवों के किसान भी प्रेरित हो रहे हैं. किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ इसकी खेती कर खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना रहे हैं. यहां के लोगों ने कुछ समय पहले पारंपरिक खेती को छोड़कर एलोवेरा की खेती शुरू की थी. अब यहां कई लोग मिल-जुलकर एलोवेरा की खेती कर रहे हैं. उनका मानना है कि एलोवेरा की खेती किसी भी सीजन में की जा सकती है.