रांची: झारखंड मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021 की वजह से यहां के जनजातीय समाज को काफी नुकसान होगा. ऐसा कहना है जनजाति सुरक्षा मंच का. इसी मसले को लेकर मंच से जुड़े संदीप उरांव के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात कर विधेयक पर रोक लगाने का आग्रह किया. ज्ञापन के मार्फत राज्यपाल से बताया गया कि मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक के अधिनियम में परिणत होने के बाद केंद्र और राज्य सरकार के कई अधिनियमों में प्राप्त कई अधिकार और संरक्षण से जनजाति समाज वंचित हो जाएगा. लिहाजा, जनजाति समाज के हितों के संरक्षक के नाते राज्यपाल को इस विधेयक पर रोक लगाने के लिए पहल करना चाहिए.
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आदिवासी मामलों के जानकार का कहना है कि झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है. यहां के ग्रामीण इलाकों में सामूहिक विश्वास के साथ एक इंटर्नल व्यवस्था चलती है. कई बार पंचों के जरिए किसी को गलत काम करने पर जुर्माना लगाया जाता है. संभव है कि इस कानून की वजह से संबंधित ग्रामीण द्वारा थाने में शिकायत करने पर उनका आंतरिक ताना बाना बिगड़ने लगेगा.
आपको बता दें कि पिछले साल शीतकालीन सत्र के दौरान 21 दिसंबर 2021 को झारखंड विधानसभा में मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021 पारित हुआ था. इसको लेकर खूब राजनीति भी हुई थी. मुख्य विपक्षी दल ने इसे तुष्टिकरण का टूल बताया था. हालाकि सत्ताधारी दलों ने कहा था कि इस विधेयक के कानून बनने से समाज के हर तबके को सुरक्षा मिलेगी. यह कहा जाना कि सिर्फ एक साथ धर्म के लोग ही मॉब लिंचिंग के शिकार होते हैं, यह सरासर गलत है. झारखंड में डायन प्रथा से लेकर बकरी और साइकिल चोरी जैसे मामलों में कई लोग भीड़ हिंसा के शिकार हो चुके हैं.