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दुगिया उरांव के घर पहुंचा बीजेपी महिला मोर्चा का शिष्टमंडल, हेमंत सरकार पर किया जमकर हमला - Politics started on Dugia Oraon's death

दुगिया उरांव की मौत ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है. गरीबी के कारण दुगिया आखिरकार जिंदगी की जंग हार ही गई. इस घटना के बाद से राजनीति भी शुरू हो गई है. मौत के बाद मसमानो गांव पहंची बीजेपी के पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर ने हेमंत सरकार पर जमकर हमला बोला.

दुगिया उरांव के घर पहुंची बीजेपी महिला मोर्चा की शिष्टमंडल
Delegation of BJP Mahila Morcha reached house of dugia Oraon
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Published : Mar 20, 2021, 9:19 PM IST

Updated : Mar 21, 2021, 6:09 AM IST

रांची: राजधानी के मांडर स्थित मसमानो गांव की दुगिया उरांव की मौत ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है. गरीबी के कारण किसी तरह गुजारा कर रही दुगिया आखिरकार जिंदगी की जंग हार ही गई. दुगिया के पास ना तो राशन कार्ड था और ना ही आयुष्मान कार्ड. आखिरकार इस आदिवासी महिला ने आर्थिक विपन्नता के कारण दम तोड़ ही दिया.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-रांची: मसमानो गांव में बुजुर्ग की भूख से मौत! प्रशासन ने किया इनकार

दुगिया के निधन पर राजनीति शुरू

दुगिया के निधन पर अब सवाल उठने लगा है. कोई इसे भूख से मौत बता रहा है तो कोई बीमारी से, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर मुखिया के समक्ष कई बार गुहार लगाने के बाद भी उसका राशन कार्ड क्यों नहीं बना. अगर उसका राशन कार्ड बना होता तो हो सकता है आज वह जीवित होती. इस मौत को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है. आरती कुजूर के नेतृत्व में बीजेपी महिला मोर्चा का एक शिष्टमंडल मसमानो गांव पहुंचा. इस दौरान बीजेपी के पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर ने हेमंत सरकार पर जमकर हमला बोला. उनहोंने कहा कि राज्य सरकार का यही हाल रहा तो बीमारी और प्रताड़ना से जूझ रही दुगिया की बहन सालगी उरांव को भी बचाना मुश्किल हो जाएगा. हेमंत सरकार की गरीबों के प्रति उदासीन रवैया के कारण दुगिया उरांव की मौत हुई है.


दो वक्त की रोटी के लिए भटकना परा दर-दर
दुगिया की मौत के बाद उसकी बेटी नंदी को अब अपनी मौसी की सारी जिम्मेवारी लेनी होगी, जो संभव नहीं लग रहा है. उसे डर है कि अब अपनी मौसी को न खो दें. बचपन में बाप का साया उठ गया. मां उस मासूम को लेकर अपने मायके नगड़ा आ गई, जबतक नाना थे, सब कुछ ठीक था, लेकिन उनके गुजरने के बाद मामा-मामी ने घर से निकल जाने का फरमान जारी किया. नहीं निकलने पर मारपीट और प्रताड़ित किया जाने लगा. जब सहनशक्ति जबाब देने लगी और जान पर आफत आयी तो बिहार में भट्टे में काम किया. भट्टे से वापस आकर अगल बगल के गांव में रहने लगी. पिछले 3 वर्षों से मसमानो में रह रही थी.

ये भी पढ़ें-दूधमुंही बच्ची की मौत मामले में गहराया रहस्य, बच्ची की मां ने ससुर पर लगाया आरोप

किन-किन हालातों से गुजरी दुगिया

नंदी के पास ना तो आधार कार्ड था और न राशन कार्ड. किसी तरह की कोई सरकारी मदद भी नहीं मिली. लोगों के खेतों में मजदूरी कर किसी तरह अपना गुजारा किया. अकेले नंदी बीमार और लाचार मां और मौसी को छोड़कर कहीं दूर काम करने भी नहीं जा सकी. ऐसे में उनके घर खाने कि समस्या शुरू हो गई. जब भूख लगती थी तो किसी से खाने को कुछ मांग लेती, नहीं तो भूखे सोना पड़ता था. देखने और पूछने वाला कोई नहीं था. जब इस बात की जानकारी गांव के कुछ लोगों को हुई तो वे कुछ खाने का इंतजाम किए और कुछ पत्रकारों को मामाले की जानकारी दी, लेकिन इस कोशिश से दुगिया को बचाया नहीं जा सका. फिलहाल बीमार सालगी को मांडर रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है.

रांची: राजधानी के मांडर स्थित मसमानो गांव की दुगिया उरांव की मौत ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है. गरीबी के कारण किसी तरह गुजारा कर रही दुगिया आखिरकार जिंदगी की जंग हार ही गई. दुगिया के पास ना तो राशन कार्ड था और ना ही आयुष्मान कार्ड. आखिरकार इस आदिवासी महिला ने आर्थिक विपन्नता के कारण दम तोड़ ही दिया.

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दुगिया के निधन पर राजनीति शुरू

दुगिया के निधन पर अब सवाल उठने लगा है. कोई इसे भूख से मौत बता रहा है तो कोई बीमारी से, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर मुखिया के समक्ष कई बार गुहार लगाने के बाद भी उसका राशन कार्ड क्यों नहीं बना. अगर उसका राशन कार्ड बना होता तो हो सकता है आज वह जीवित होती. इस मौत को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है. आरती कुजूर के नेतृत्व में बीजेपी महिला मोर्चा का एक शिष्टमंडल मसमानो गांव पहुंचा. इस दौरान बीजेपी के पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर ने हेमंत सरकार पर जमकर हमला बोला. उनहोंने कहा कि राज्य सरकार का यही हाल रहा तो बीमारी और प्रताड़ना से जूझ रही दुगिया की बहन सालगी उरांव को भी बचाना मुश्किल हो जाएगा. हेमंत सरकार की गरीबों के प्रति उदासीन रवैया के कारण दुगिया उरांव की मौत हुई है.


दो वक्त की रोटी के लिए भटकना परा दर-दर
दुगिया की मौत के बाद उसकी बेटी नंदी को अब अपनी मौसी की सारी जिम्मेवारी लेनी होगी, जो संभव नहीं लग रहा है. उसे डर है कि अब अपनी मौसी को न खो दें. बचपन में बाप का साया उठ गया. मां उस मासूम को लेकर अपने मायके नगड़ा आ गई, जबतक नाना थे, सब कुछ ठीक था, लेकिन उनके गुजरने के बाद मामा-मामी ने घर से निकल जाने का फरमान जारी किया. नहीं निकलने पर मारपीट और प्रताड़ित किया जाने लगा. जब सहनशक्ति जबाब देने लगी और जान पर आफत आयी तो बिहार में भट्टे में काम किया. भट्टे से वापस आकर अगल बगल के गांव में रहने लगी. पिछले 3 वर्षों से मसमानो में रह रही थी.

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किन-किन हालातों से गुजरी दुगिया

नंदी के पास ना तो आधार कार्ड था और न राशन कार्ड. किसी तरह की कोई सरकारी मदद भी नहीं मिली. लोगों के खेतों में मजदूरी कर किसी तरह अपना गुजारा किया. अकेले नंदी बीमार और लाचार मां और मौसी को छोड़कर कहीं दूर काम करने भी नहीं जा सकी. ऐसे में उनके घर खाने कि समस्या शुरू हो गई. जब भूख लगती थी तो किसी से खाने को कुछ मांग लेती, नहीं तो भूखे सोना पड़ता था. देखने और पूछने वाला कोई नहीं था. जब इस बात की जानकारी गांव के कुछ लोगों को हुई तो वे कुछ खाने का इंतजाम किए और कुछ पत्रकारों को मामाले की जानकारी दी, लेकिन इस कोशिश से दुगिया को बचाया नहीं जा सका. फिलहाल बीमार सालगी को मांडर रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है.

Last Updated : Mar 21, 2021, 6:09 AM IST
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