रांची: होली से पहले होलिका दहन का खास महत्व होता है. इस बार भी होलिकोत्सव की तैयारी जोरों पर हैं. हर जगह रंग-गुलाल के साथ होली मिलन आयोजित किया जा रहा है. इन सबके बीच लोगों में होलिका दहन की तिथि को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है. झारखंड में मूल रूप से सनातन धर्मी बनारस पंचांग और मिथिला पंचांग को मानते हुए पर्व-त्योहार मनाते हैं. दोनों पंचांग में ज्योतिषीय गणना में अंतर होने की वजह से समय-समय पर इस तरह का भ्रम उत्पन्न होता है. हालांकि जानकार मानते हैं कि परंपरा और शास्त्र में अंतर है. जिस वजह से भी इस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं. होलिका दहन की तिथि को लेकर भी यही हुआ है. जिस वजह से लोग अपने-अपने ढंग से होलिका दहन मनाने में जुटे हैं.
इस वक्त करें होलिका दहन, मिलेगी सुख-शांति और समृद्धिः होलिका दहन फाल्गुन मास के पूर्णिमा को भद्रा के अंत में और पूर्णिमा के शुरुआत में मनाया जाता है. काशी पंचांग के अनुसार मंगलवार को अहले सुबह 4 बजकर 48 मिनट पर भद्रा का अंत होगा और पूर्णिमा की शुरुआत होगी. इसलिए होलिका दहन सुबह-सुबह मनायी जाएगी. इस संबंध में रांची के हरमू शिव मंदिर के पुजारी मृत्युंजय पांडे कहते हैं कि पूर्णिमा मंगलवार की शाम 5:41 तक रहेगा. क्योंकि प्रदोष काल में प्रतिपदा नहीं रहने की वजह से होली आठ मार्च को मनायी जाएगी. क्योंकि चैत्र प्रतिपदा आठ मार्च की शाम में 5:47 तक रहेगा. इस वजह से होली आठ मार्च को मनायी जाएगी.
मिथिला पंचाग के अनुसार होलिका दहन का समयः हालांकि मिथिला पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त सात मार्च की शाम 6:30 बजे से रात 8:30 बजे तक है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि छह मार्च शाम 4:30 बजे से शुरू होगी और सात मार्च शाम 7:30 बजे तक खत्म होगी. क्योंकि उदया तिथि में प्रतिपदा आठ मार्च को है. इस वजह से होली का पर्व आठ मार्च को मनाया जाएगा.
होलिका दहन मनाने की क्या है मान्यताः होलिका दहन मनाने के पीछे मान्यता यह है कि अग्नि की विधि-विधान से पूजा करने से मनुष्य के सभी दुखों का नाश होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसे प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा से जोड़कर बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. इसके अलावे अग्नि की उपासना से धन्य-धान्य के साथ-साथ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. होलिका दहन के समय लोग गेहूं, जौ और चना की हड़ी बालियों को पवित्र अग्नि में समर्पित करते हैं. बालियों के जलने के बाद परिवार के सभी सदस्य उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं. ऐसा करना घर के लिए शुभ माना गया है.