रांची: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Congress President Mallikarjun Kharge) ने पदभार ग्रहण कर लिया है. झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर, कार्यकारी अध्यक्ष सह लोकसभा सांसद गीता कोड़ा और कार्यकारी अध्यक्ष शहजादा अनवर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे के पदभार ग्रहण करने पर दिल्ली में उनसे मुलाकात कर उन्हें बधाई दी. (Jharkhand Congress leader meets Mallikarjun Kharge) पदभार संभालने के साथ ही खड़गे एक्शन में दिखे और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की. इस दौरान उन्होंने बदलाव के संकेत दिए. इसके बाद चर्चा शुरू हो गई है कि कांग्रेस राज्यों में अपने जिस जमीन और जनाधार के साथ सबसे पुराने राजनीतक पार्टी होने का दावा करती रही है उन जगहों पर अपने जमीन और जनाधार को कैसे मजबूत कर पाएगी.
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मल्लिकार्जुन खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद इस बात की चर्चा भी शुरू हो गई है कि झारखंड के खाते में आएगा क्या और झारखंड के लिए चुनौतियां कितनी हैं. हेमंत सोरेन के साथ सरकार में कांग्रेस पार्टी हिस्सेदार है और 2019 के चुनाव के लिए जो लोग रणनीति बनाए थे उसमें बड़ा नाम आरपीएन सिंह का था जिन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. माना यह जा रहा था कि उन्होंने झारखंड कांग्रेस को खड़ा करने में काफी मेहनत की है. एक राजनीतिक विभेद का नारा भी पूरे देश में बीजेपी के साथ जुड़ा है जिसमें बीजेपी पर आरोप लगता है कि बीजेपी क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म करने की राजनीति कर रही है लेकिन कांग्रेस जितना बची है उसमें कांग्रेस की राजनीति क्षेत्रीय पार्टियों के पीछे बैठने से ज्यादा नहीं रह गई है. जिसे आगे लाने की चुनौती बहुत बड़ी है और यहीं से मल्लिकार्जुन खड़गे की चुनौती भी राजनीतक जमीन पर देखी जा रही है. देश में क्या मिलेगा यह निश्चित तौर पर बड़ी उपलब्धि के तौर पर कांग्रेस से जुड़ेगी. लेकिन झारखंड में जो मिलना है उसकी राजनीति ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है.
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मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के एक दलित परिवार से आते हैं तो संभव है कि पिछड़े राज्यों में जाति वाली सियासत का एक सिगुफा उठना लाजमी है. बीजेपी ने झारखंड की राज्यपाल रही वर्तमान महामहिम द्रौपदी मुरमू को जब राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय किया था तो कहा जा रहा था कि इससे झारखंड फतेह की राह आसान होगी. अब कांग्रेस ने अपने उसी वोट बैंक को पकड़ने के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को कमान दी है तो संभव है कि सियासत में इस तरह के सवाल उठने लाजमी है कि बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2019 में यही रही कि बीजेपी गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के नाम पर चुनाव लड़ी और सत्ता गंवा बैठी. कांग्रेस सत्ता में जरूर बैठी है लेकिन उसकी जो स्थिति है वह पीछे पीछे चलने वाली है. जिसे अपने वोट बैंक के आधार पर बाहर लाकर के खड़ा करना है, जो संभवत 1990 के पहले वाली राजनीति में बिहार में रही है. बंटवारे के बाद अब झारखंड में देखी जा रही है.
झारखंड के तमाम (Jharkhand Congress) बड़े नेता दिल्ली में मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष पद की जीत पर बधाई देने गए हैं और संभव है कि झारखंड में जो चीजें चल रही है उसको लेकर के जल्द ही कोई नीति रणनीति बनाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का आदेश भी आए. झारखंड में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने राजनैतिक जमीन को तैयार करने की है. क्योंकि 2024 की तैयारी में झारखंड मुक्ति मोर्चा हर घर हेमंत सरकार के नाम पर चली गई है और बीजेपी ने पंचायत को आधार बनाकर के 2024 की तैयारी में अपना दम लगा दिया है. अगर इसमें कांग्रेस कहीं नहीं दिख रही है तो उसके पीछे उसकी जमीन के आधार वाली वही रणनीति है जिसको दिशा देने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व वाले असर की जरूरत है. कांग्रेस दो खेमे में है इसमें दो राय नहीं है. रामेश्वर उरांव और राजेश ठाकुर जिस राजनीति को झारखंड में स्थापित कर रहे हैं उसमें कांग्रेस में बहुत दम फूटने वाली स्थिति दिख नहीं रही है. ऐसे में कांग्रेस को झारखंड में स्थापित होने के लिए किसी नई रणनीति की जरूरत पड़ेगी जो मल्लिकार्जुन खड़गे कि झारखंड को लेकर के सबसे बड़ी चुनौती भी है. क्योंकि हाल के दिनों में हेमंत सोरेन ने चाहे राज्यसभा का चुनाव रहा हो या फिर दूसरे ऐसे मामले जिसमें कांग्रेस के आलाकमान को नजरअंदाज करते हुए निर्णय लिए हैं. इसमें कांग्रेस को कई बार यह नागवार गुजरा है. झारखंड में चल रही सरकार में एक मंत्री का पद खाली है जो झारखंड के कांग्रेस कोटे का है उसे आज तक हेमंत सोरेन ने नहीं दिया है. वह भी एक विवाद का विषय है जो मल्लिकार्जुन खड़गे को शायद आते ही समझ ना पड़े.
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झारखंड में मजबूत हो रही राजनीति में मजबूरी वाली सियासत को लेकर कांग्रेस उलझी पड़ी है. क्योंकि जिस मुद्दे को सुलझाने का दावा हेमंत सोरेन के साथ होता है वह मुद्दा आगे जाकर कांग्रेस और हेमंत सोरेन के बीच उलझ कर रह जाता है. सरकार जरूर साथ चल रही है लेकिन विभेद भी उतना बड़ा ही साथ चल रहा है. 3 कांग्रेसी विधायक कोलकाता में कैश के साथ पकड़े गए तो दामन पर लगे दाग को धोने का भी काम कांग्रेसियों को करना पड़ेगा और कांग्रेस में जो विभेद चल रहा है उसे पाटने के लिए भी कांग्रेस को रणनीति बनानी पड़ेगी. खड़गे के लिए सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय स्तर पर खड़े हो रहे उन मुद्दों के साथ तो होगा ही जो बीजेपी से लड़ने के लिए 2024 में हथियार बने लेकिन जहां पर सरकार चल रही है वहां पार्टी के भीतर लड़ाई ना हो इसका सामंजस्य स्थापित करना भी खड़गे के लिए बड़ी चुनौती है जो झारखंड में सबसे पहले मुंह बाए खड़ी है तो ऐसे में देखना होगा कि मल्लिकार्जुन खड़गे के आने के बाद झारखंड की कांग्रेस की राजनीति में किस तरीके का बदलाव आता है और बदलने की राजनीति पर अब कांग्रेस उतरी है उसका कौन सा स्वरूप मल्लिकार्जुन खड़गे झारखंड में खड़ा कर पाते हैं यह दोनों चीजें चुनाव के बाद सबसे बड़ी चुनौती लिए खड़ी है.