रांची: गिरिडीह के पारसनाथ में चले तीन दिवसीय चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस अब आक्रामक दिखने लगी है. शिविर में संबोधन के दौरान मुख्यमंत्री के तौर-तरीके पर दीपिका पांडे सिंह और मंत्री बन्ना गुप्ता द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद केंद्रीय स्तर के नेता भी सरकार को आईना दिखाने लगे हैं. प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ अजय ने सीएम हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर भाषा विवाद के मसले पर चेतावनी के साथ-साथ सुझाव भी दिया है.
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कांग्रेस नेता डॉ अजय ने सीएम से आग्रह किया है कि रोजगार नीति में सरकार को हिंदी भाषा को सामान्य भाषा के रूप में शामिल करना चाहिए. उन्होंने मुख्यमंत्री को बताया है कि राज्य के सभी सरकारी स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में हिंदी भाषा ही मुख्य माध्यम है. इसके बावजूद जेएसएससी ने सरकारी नौकरियों के लिए अनिवार्य भाषाओं की सूची से हिंदी को हटा दिया है. यह उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो लंबे समय से झारखंड में रह रहे हैं. डॉ अजय ने लिखा है कि यहां के स्थानीय लोगों को प्राथमिकता जरूर मिलनी चाहिए लेकिन हिंदी को सामान्य भाषा के श्रेणी में शामिल नहीं करने से स्थिति सुलझने के बजाय और खराब हो जाएगी. उन्हें सुझाव दिया है कि झारखंड के नागरिकों की सरकारी नौकरी पाने के अधिकारों की रक्षा के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है.
डॉ अजय ने अपने पत्र में लिखा है कि झारखंड में भाषा विवाद की आंच में युवा वर्ग झुलस रहा है. इस विवाद की वजह से कई परीक्षाएं अटकी हुई हैं. हिंदीभाषी बहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के खिलाफ होगा. लिहाजा, रांची, जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद, गोड्डा, देवघर, साहिबगंज, जामताड़ा, डाल्टेनगंज, हजारीबाग, लोहरदगा और गुमला समेत अन्य जिलों के अभ्यर्थियों को समान अवसर मुहैया कराने के लिए हिंदी को सामान्य भाषा की सूची में शामिल किया जाना चाहिए.
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डॉ अजय द्वारा सीएम हेमंत सोरेन के नाम जारी इस खुले पत्र के कई मायने निकाले जा रहे हैं. दरअसल धनबाद और बोकारो में भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषा की सूची में शामिल किए जाने के बाद चले आंदोलन को देखते हुए सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं की नई सूची जारी कर विवाद को पाटने की कोशिश की है. दूसरी तरफ क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में उर्दू को शामिल करना और हिंदी को जगह नहीं देना, एक नए विवाद का कारण बन गया है. कांग्रेस अच्छी तरह समझ रही है कि झारखंड में हर स्तर पर हिंदी ही बोली जाती है, इसलिए इसकी अनदेखी उसके वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है. अब देखना है कि इस मसले पर सरकार का अगला रुख क्या होता है.