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दर्द-ए-एचईसीः जिन हाथों से बनाते थे इसरो के लिए उपकरण, आज तल रहे पकोड़े - एचईसी की हालत

जिंदगी कब किस करवट ले ले, किसी को नहीं पता. ऐसा ही कुछ हुआ है रांची के शंकर के साथ. पेशे से वेल्डर हैं, एचईसी में अच्छी खासी नौकरी है, लेकिन मायूस हैं. मायूस इसलिए कि मां को दवा नहीं दे पा रहे हैं, बेटे को स्कूल नहीं भेज सकते, पत्नी सड़क किनारे पकोड़े तलने को मजबूर है. ऐसा क्यों पढ़िए इस रिपोर्ट में.

condition of HEC employees is very bad
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Published : Jan 23, 2023, 4:37 PM IST

Updated : Jan 23, 2023, 5:02 PM IST

देखें पूरी खबर

रांची: राजधानी रांची में बना एचईसी कभी देश की आन बान शान कहलाता था और उसमें काम करने वाले कर्मचारी खुद को सौभाग्यशाली मानते थे. लेकिन आज अपने को सौभाग्यशाली मानने वाले कर्मचारी जब सड़क पर एक एक पैसे के लिए मोहताज हो रहे हैं तो वह खुद से ज्यादा दुर्भाग्यशाली किसी को नहीं कहते.

ये भी पढ़ेंः सोशल मीडिया पर आंदोलन शुरू करेंगे एचईसी के कर्मी, पिछले 13 महीनो से नहीं मिला है वेतन

दाने-दाने को मोहताजः एचईसी के एक ऐसे ही कर्मचारी शंकर कुमार हैं जो वेतन नहीं मिलने के कारण सड़क पर अपने परिवार के साथ सब्जी और पकोड़े बेचने को मजबूर हैं. शंकर कुमार के घर में गरीबी कूट-कूट कर दिखती है. उन्होंने बताया कि उनके घर में पानी के अलावा कुछ भी नहीं है खाने के लिए वह मोहताज हैं. अपने दर्द को बयां करते हुए शंकर बताते हैं कि उनका बच्चा काफी छोटा है लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपने बच्चे को किसी स्कूल में एडमिशन करा सके. उन्हें भी शौक है कि वह अपने बच्चे को दूसरे के तरह अच्छे स्कूल में पढ़ाए लेकिन अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उनके परिवार के पास कुछ भी नहीं बचा. वेल्डर के पद पर काम करने वाले शंकर बताते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से इसरो, रेलवे और डिफेंस के लिए कई उपकरण के निर्माण में सहयोग दिया है. शंकर बताते हैं कि जिन हाथों से वह इतने बड़े-बड़े उपकरण बनाते थे उन हाथों से अभी सब्जी बेचना पड़ रहा है.

सब्जी पकोड़े बेचने को मजबूरः शंकर की पत्नी बताती हैं कि जब उनके पति एचईसी में काम करते थे तो महीने के पच्चीस से तीस हजार रुपये वेतन मिलता था. जिससे उनके परिवार का खर्चा चल जाता था और वह अपने बच्चे को पढ़ा भी पाते थे, लेकिन पिछले 15 महीने से वेतन नहीं मिलने के कारण उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है. इसीलिए अब सड़क पर पूरा परिवार सब्जी और पकोड़े बेचने को मजबूर है.

दवाई नहीं खरीद पातेः शंकर की मां बताती है कि वह काफी बीमार रहती है. बेटे को जो वेतन मिलता था, उससे उनकी दवाई आती थी लेकिन अब एचईसी ने वेतन देना बंद कर दिया है और सरकारी स्तर पर जो इलाज होता था वह भी होना बंद हो गया है. ऐसे में अब उनके पास मरने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. उन्होंने सरकार और एचईसी के वरिष्ठ अधिकारियों से यह मांग की कि कर्मचारियों की खराब हालत को देखते हुए उन्हें कुछ उपाय निकालना चाहिए ताकि कर्मचारी और उनके परिवार फिर से बेहतर जीवन जी सके.

15 महीने से नहीं मिला वेतनः मालूम हो कि शंकर को पिछले 15 महीने से वेतन नहीं मिला है. जिस वजह से उसकी आर्थिक हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है. शंकर और उसका पूरा परिवार आज एक एक पैसे के लिए मोहताज है. सभी लोग एक स्वर में कहते हैं कि जब एचईसी में उनकी नौकरी हुई थी तो उनका पूरा परिवार खुश था और उन्हें गर्व होता था कि वह इतने बड़े उद्योग में काम करते हैं, लेकिन जिस प्रकार से एचइसी की हालत दिन प्रतिदिन खराब हो रही है और लोग सड़क पर दूसरे काम करने को मजबूर हो रहे हैं, ऐसे में लोग अब अपने हुनर को भूलते जा रहे हैं.

यह स्थिति सिर्फ शंकर की नहीं, बल्कि एचईसी में काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों की है. ऐसे अब यह देखने वाली बात होगी की एचईसी के जो कर्मचारी सड़क पर बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं, उनकी जिंदगी में सुधार लाने के लिए प्रबंधन और केंद्र सरकार के द्वारा क्या कुछ कदम उठाए जाते हैं.

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रांची: राजधानी रांची में बना एचईसी कभी देश की आन बान शान कहलाता था और उसमें काम करने वाले कर्मचारी खुद को सौभाग्यशाली मानते थे. लेकिन आज अपने को सौभाग्यशाली मानने वाले कर्मचारी जब सड़क पर एक एक पैसे के लिए मोहताज हो रहे हैं तो वह खुद से ज्यादा दुर्भाग्यशाली किसी को नहीं कहते.

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दाने-दाने को मोहताजः एचईसी के एक ऐसे ही कर्मचारी शंकर कुमार हैं जो वेतन नहीं मिलने के कारण सड़क पर अपने परिवार के साथ सब्जी और पकोड़े बेचने को मजबूर हैं. शंकर कुमार के घर में गरीबी कूट-कूट कर दिखती है. उन्होंने बताया कि उनके घर में पानी के अलावा कुछ भी नहीं है खाने के लिए वह मोहताज हैं. अपने दर्द को बयां करते हुए शंकर बताते हैं कि उनका बच्चा काफी छोटा है लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं है कि वह अपने बच्चे को किसी स्कूल में एडमिशन करा सके. उन्हें भी शौक है कि वह अपने बच्चे को दूसरे के तरह अच्छे स्कूल में पढ़ाए लेकिन अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उनके परिवार के पास कुछ भी नहीं बचा. वेल्डर के पद पर काम करने वाले शंकर बताते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से इसरो, रेलवे और डिफेंस के लिए कई उपकरण के निर्माण में सहयोग दिया है. शंकर बताते हैं कि जिन हाथों से वह इतने बड़े-बड़े उपकरण बनाते थे उन हाथों से अभी सब्जी बेचना पड़ रहा है.

सब्जी पकोड़े बेचने को मजबूरः शंकर की पत्नी बताती हैं कि जब उनके पति एचईसी में काम करते थे तो महीने के पच्चीस से तीस हजार रुपये वेतन मिलता था. जिससे उनके परिवार का खर्चा चल जाता था और वह अपने बच्चे को पढ़ा भी पाते थे, लेकिन पिछले 15 महीने से वेतन नहीं मिलने के कारण उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है. इसीलिए अब सड़क पर पूरा परिवार सब्जी और पकोड़े बेचने को मजबूर है.

दवाई नहीं खरीद पातेः शंकर की मां बताती है कि वह काफी बीमार रहती है. बेटे को जो वेतन मिलता था, उससे उनकी दवाई आती थी लेकिन अब एचईसी ने वेतन देना बंद कर दिया है और सरकारी स्तर पर जो इलाज होता था वह भी होना बंद हो गया है. ऐसे में अब उनके पास मरने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. उन्होंने सरकार और एचईसी के वरिष्ठ अधिकारियों से यह मांग की कि कर्मचारियों की खराब हालत को देखते हुए उन्हें कुछ उपाय निकालना चाहिए ताकि कर्मचारी और उनके परिवार फिर से बेहतर जीवन जी सके.

15 महीने से नहीं मिला वेतनः मालूम हो कि शंकर को पिछले 15 महीने से वेतन नहीं मिला है. जिस वजह से उसकी आर्थिक हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है. शंकर और उसका पूरा परिवार आज एक एक पैसे के लिए मोहताज है. सभी लोग एक स्वर में कहते हैं कि जब एचईसी में उनकी नौकरी हुई थी तो उनका पूरा परिवार खुश था और उन्हें गर्व होता था कि वह इतने बड़े उद्योग में काम करते हैं, लेकिन जिस प्रकार से एचइसी की हालत दिन प्रतिदिन खराब हो रही है और लोग सड़क पर दूसरे काम करने को मजबूर हो रहे हैं, ऐसे में लोग अब अपने हुनर को भूलते जा रहे हैं.

यह स्थिति सिर्फ शंकर की नहीं, बल्कि एचईसी में काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों की है. ऐसे अब यह देखने वाली बात होगी की एचईसी के जो कर्मचारी सड़क पर बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं, उनकी जिंदगी में सुधार लाने के लिए प्रबंधन और केंद्र सरकार के द्वारा क्या कुछ कदम उठाए जाते हैं.

Last Updated : Jan 23, 2023, 5:02 PM IST
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