रांची: आम उपभोक्ता के साथ होनेवाले धोखाधड़ी के खिलाफ देश में बना उपभोक्ता संरक्षण कानून झारखंड में दम तोड़ने लगा है. हालत यह है कि राज्य स्तर से लेकर सभी जिलों में उपभोक्ता के अधिकार को संरक्षित करने के लिए कंज्यूमर कोर्ट है. मगर इन न्यायालयों में चेयरमैन और सदस्यों के अभाव की वजह से सुनवाई प्रभावित है. राज्य उपभोक्ता आयोग से लेकर राज्य के 24 में से पांच ऐसे जिले हैं जहां अध्यक्ष और सदस्यों के पद खाली हैं. स्वाभाविक रूप से इन न्यायालयों में सुनवाई नहीं होने से यहां दाखिल याचिका कार्यालय का शोभा बढ़ा रही है.
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राज्य उपभोक्ता आयोग एकमात्र सदस्य बसंत कुमार गोस्वामी हैं जो प्रभारी अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं. सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने की वजह से 14 जुलाई 2023 से कोरम के अभाव में सुनवाई बंद है. गौरतलब है कि 01.09.2020 से आयोग में अध्यक्ष का पद खाली है. राज्य उपभोक्ता आयोग में अध्यक्ष के एक और सदस्य के चार पद स्वीकृत हैं. इसी तरह पाकुड़, रामगढ़, दुमका, चतरा,पश्चिम सिंहभूम में जिला उपभोक्ता न्यायालय में अध्यक्ष और प.सिहभूम को छोड़कर अन्य चारों जिलों में सदस्य का पद खाली है.
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राज्य उपभोक्ता आयोग के प्रभारी अध्यक्ष बसंत कुमार गोस्वामी ने क्या कहा: राज्य उपभोक्ता आयोग के प्रभारी अध्यक्ष बसंत कुमार गोस्वामी कहते हैं कि कोरम के अभाव की वजह से केसों की सुनवाई अभी नहीं चल रही है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सदस्यों और अध्यक्ष के चयन को लेकर नियम में बदलाव हुए हैं. अब लिखित और इंटरव्यू परीक्षा के आधार पर अध्यक्ष और सदस्य का चयन होना है. राज्य सरकार द्वारा इस दिशा में पहल की जा रही है, संभावना है आने वाले समय में नियुक्ति की जाएगी.
लंबित केसों की बढ़ रही है संख्या: उपभोक्ता न्यायालयों में सदस्य और अध्यक्ष नहीं होने की वजह से लंबित केसों की संख्या में वृद्धि हो रही है. राज्य उपभोक्ता आयोग में वर्तमान समय में 832 केस लंबित हैं. इसी तरह राज्यभर में 5498 केस लंबित हैं. लंबित केसों में सर्वाधिक इंश्योरेंस क्लेम, रेलवे, मोटर एक्सीडेंट, बिजली और डाक विभाग से संबंधित मामले हैं. राज्य उपभोक्ता आयोग में सुनवाई नहीं होने से परेशान अधिवक्ता विवेक कुमार राय कहते हैं कि इससे कहीं ना कहीं न्याय मिलने में कंज्यूमर को देरी होती है. जिसका नुकसान उन्हें उठाना पड़ता है.
बहरहाल, उपभोक्ताओं के अधिकार को संरक्षित करने के उद्देश्य से संवैधानिक रूप से कई प्रावधान किए गए हैं. मगर बड़ा सवाल यह है कि जब न्याय देनेवाला ही नहीं हो तो आखिर कन्जयूमर जायें तो जायें कहां.