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लालफीताशाही ने उड़ा दी हेमंत के सपनों की बुनियाद, सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस नहीं है एक्सीलेंट, अभिभावकों के आरोप- खतरे में छात्रों की जान - सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की व्यवस्था

झारखंड में कोई भी व्यवस्था अपने मूल उद्देश्य के साथ जमीन पर उतरेगी यह हर बार सवालों में रहता है. 1 जुलाई 2023 से झारखंड ने शिक्षा के विकास में एक नया अध्याय जोड़ तो दिया. लेकिन जो सोच थी उसपर खरा नहीं उतरा. सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड के लिए सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस को चालू तो किया लेकिन इसने व्यवस्था पर कई बड़े सवाल उठा दिए. सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में छात्रों का जीवन ही संकट में है.. पढ़े रिपोर्ट

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Published : Jul 1, 2023, 9:49 PM IST

Updated : Jul 2, 2023, 8:18 AM IST

रांची: "पढ़ेगा झारखंड तभी तो बढ़ेगा झारखंड" सूबे के बच्चे को पढ़ने के लिए बड़ी सोच तो सरकार बना लेती है लेकिन झारखंड की किस्मत ऐसी है कि जो उसकी झोली में आना है वह किसी और के बदइंतजामी की भेंट चढ़ जाती है. 1 जुलाई 2023 झारखंड के शैक्षणिक विकास के लिए एक मील का पत्थर साबित होता, क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के तहत जिन विद्यालयों का चयन किया आज वहां से पढ़ाई शुरू हुई है. लेकिन जो सोच कर के अभिभावक इस स्कूल में अपने बच्चे को भेजे हैं. और जो हालात इन स्कूलों के दिखे अब इन सभी अभिभावकों के माथे पर बल पड़ गया है कि यहां बच्चे पढ़ेंगे क्या यहां रहेंगे कैसे?

ये भी पढ़ें- CM School of Excellence के पहले सत्र की शुरुआत, अब सरकारी स्कूल के बच्चे बनेंगे स्मार्ट

सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के पहले दिन जब विद्यालय खुला तो लोगों में काफी उत्साह था. बच्चे भी उत्साहित थे. शिक्षक भी उत्साहित थे. अभिभावक तो फूले नहीं समा रहे थे कि हमारे बच्चे वैसे विद्यालय में पढ़ेंगे जो निजी विद्यालयों को टक्कर देते हैं. यहां से निकलकर झारखंड, अपने जिले, अपने गांव और माता पिता का नाम रोशन करेंगे. इन तमाम सोच के साथ जो अभिभावक सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस पहुंचे थे उन लोगों को वहां दिखावे की तो तैयारी दिखी, लेकिन जो तैयारी दिखनी चाहिए थी वह अभिभावकों को रास नहीं आई.

बच्चे के एडमिशन के बाद वहां की हालात को गार्जियन किस तरीके से देख रहे हैं. जब ईटीवी भारत ने इसकी पड़ताल की तो वहां पहुंची एक महिला ने कहा कि पढ़ाई का क्या हाल होगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा. लेकिन पढ़ाने के लिए जो माहौल देने की बात थी वैसा इंतजाम यहां दिख नहीं रहा है. हॉस्टल में गंदगी का अंबार है. और जानकारी में यह बातें भी आई हैं कि खाना गंदे पानी से बन रहा है. ऐसे में तो बच्चे बीमार पड़ जाएंगे और पढ़ाई क्या करेंगे. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए था क्योंकि गंदा खाना खा कर के कोई कैसे ठीक रह पाएगा.

सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के लिए एक महिला ने जो सवाल उठाया है पूरे झारखंड के लिए सरकारी व्यवस्था पर बहुत बड़ी चोट है. इसमें दो राय नहीं कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड के शिक्षा व्यवस्था के लिए चिंतित नहीं हैं. या फिर छात्रों को क्या मिलना चाहिए उसके लिए उनकी तरफ से की जाने वाली तैयारी में कोई कमी है.

सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की बात करें या फिर विदेशों में भेज करके झारखंड के छात्रों को पढ़ाने की, यूपीएससी की पीटी परीक्षा को पास कर चुके छात्रों को मेंस की तैयारी के लिए ₹100000 देने की बात हो. यह तमाम योजनाएं सरकार और हेमंत सरकार की बड़ी सोच में है. इसके लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सराहना हो ही रही हैं. बड़ा सवाल यह है कि जिन अधिकारियों को इसकी निगरानी करनी है वह उसकी निगरानी आंख बंद करके कर रहे हैं. या फिर बंद आंख से ही उसकी निगरानी करनी है यह तंत्र के हिस्से में शामिल है. क्योकि मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट पर ही सवाल उठ रहा है.

ये भी पढ़ें- सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में प्रवेशोत्सव समारोह, तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत

सवाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी है. जिन नौनिहालों को आप कल देश के भविष्य के तौर पर देखना चाहते हैं. उनके लिए आपकी योजनाओं की तैयारी जितनी मजबूत है. योजना को तैयार करने के लिए जो मेहनत हुई है. उसे जब अमलीजामा पहनाने की बात आती है तो उसको मटियामेट क्यों कर दिया जाता है. जिन अधिकारियों के जिम्मे सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की जिम्मेदारी दी गई थी वह एक्सीलेंट क्यों नहीं रही.

यह बड़ा सवाल है अगर रहने के लिए हॉस्टल की व्यवस्था नहीं है, तो फिर जान जोखिम में डालकर के कोई शिक्षा कैसे ग्रहण करेगा. उनके अभिभावक इसे कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे कि उनके जिगर के टुकड़े ने पढ़ने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रखा है. हॉस्टल की व्यवस्था ठीक नहीं है, खाने के लिए जो खाना दिया जा रहा है वह भी गंदे पानी से बन रहा है. बच्चे बीमार पड़ जाएंगे तो ऐसे में उनकी जिंदगी और पढ़ाई दोनों कैसे ठीक ढंग से हो पाएगी यह बड़ा सवाल है. इस सवाल को फिलहाल एक महिला ने ही उठाया है, वह भी राजधानी रांची में.

सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में पढ़ाई के पहले ही दिन जो हालात देखे हैं उससे एक बात तो साफ है कि जो तैयारी होनी थी उसे तैयार नहीं किया गया. और जिसे तैयार किया गया है वह सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की सोच वाली तैयारी नहीं है और यह अपने अंजाम तक नहीं पहुंचेगी. देखने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसको लेकर किस तरह के आदेश को जारी करते हैं.

यह तो तय है कि इसे करने की हेमंत सोरेन की सोच मजबूत है, लेकिन करने वालों की सोच किसी टेबल के नीचे से आने वाली सुविधा के दबाव में मजबूर है. और इसमें जनता कुछ कर नहीं पाएगी क्योंकि उसकी जरूरतों ने उसे इतना मजबूर कर दिया है कि जान जोखिम में डालकर के भी अपने जिगर के टुकड़े को भेजने को मजबूर दिख रहे हैं.

सवाल यह भी है कि सीएम हेमंत सोरेन की सोच और झारखंड के विकास पर ग्रहण की कुंडली मारकर कौन बैठा हुआ है. कुव्यवस्था की दीमक इतना बड़ा क्यों है कि झारखंड के भविष्य से खुला खिलवाड़ कर रहा है. अगर इसे ठीक नहीं किया गया तो संभव है कि सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस, एक्सीलेंट बनाने के बजाय हमेशा सवालों के दायरे में ही खड़ा रहेगा. क्योंकि सरकारी अधिकारी अगर लालफीताशाही से बाज नहीं आए तो झारखंड के विकास की हर सोच भटकती ही रहेगी. फिलहाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के पढ़ाई के पहले दिन ही उजागर हो गई है विचार बड़ा करना होगा तभी झारखंड पढ़कर कुछ बड़ा कर पाएगा.

रांची: "पढ़ेगा झारखंड तभी तो बढ़ेगा झारखंड" सूबे के बच्चे को पढ़ने के लिए बड़ी सोच तो सरकार बना लेती है लेकिन झारखंड की किस्मत ऐसी है कि जो उसकी झोली में आना है वह किसी और के बदइंतजामी की भेंट चढ़ जाती है. 1 जुलाई 2023 झारखंड के शैक्षणिक विकास के लिए एक मील का पत्थर साबित होता, क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के तहत जिन विद्यालयों का चयन किया आज वहां से पढ़ाई शुरू हुई है. लेकिन जो सोच कर के अभिभावक इस स्कूल में अपने बच्चे को भेजे हैं. और जो हालात इन स्कूलों के दिखे अब इन सभी अभिभावकों के माथे पर बल पड़ गया है कि यहां बच्चे पढ़ेंगे क्या यहां रहेंगे कैसे?

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सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के पहले दिन जब विद्यालय खुला तो लोगों में काफी उत्साह था. बच्चे भी उत्साहित थे. शिक्षक भी उत्साहित थे. अभिभावक तो फूले नहीं समा रहे थे कि हमारे बच्चे वैसे विद्यालय में पढ़ेंगे जो निजी विद्यालयों को टक्कर देते हैं. यहां से निकलकर झारखंड, अपने जिले, अपने गांव और माता पिता का नाम रोशन करेंगे. इन तमाम सोच के साथ जो अभिभावक सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस पहुंचे थे उन लोगों को वहां दिखावे की तो तैयारी दिखी, लेकिन जो तैयारी दिखनी चाहिए थी वह अभिभावकों को रास नहीं आई.

बच्चे के एडमिशन के बाद वहां की हालात को गार्जियन किस तरीके से देख रहे हैं. जब ईटीवी भारत ने इसकी पड़ताल की तो वहां पहुंची एक महिला ने कहा कि पढ़ाई का क्या हाल होगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा. लेकिन पढ़ाने के लिए जो माहौल देने की बात थी वैसा इंतजाम यहां दिख नहीं रहा है. हॉस्टल में गंदगी का अंबार है. और जानकारी में यह बातें भी आई हैं कि खाना गंदे पानी से बन रहा है. ऐसे में तो बच्चे बीमार पड़ जाएंगे और पढ़ाई क्या करेंगे. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए था क्योंकि गंदा खाना खा कर के कोई कैसे ठीक रह पाएगा.

सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के लिए एक महिला ने जो सवाल उठाया है पूरे झारखंड के लिए सरकारी व्यवस्था पर बहुत बड़ी चोट है. इसमें दो राय नहीं कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड के शिक्षा व्यवस्था के लिए चिंतित नहीं हैं. या फिर छात्रों को क्या मिलना चाहिए उसके लिए उनकी तरफ से की जाने वाली तैयारी में कोई कमी है.

सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की बात करें या फिर विदेशों में भेज करके झारखंड के छात्रों को पढ़ाने की, यूपीएससी की पीटी परीक्षा को पास कर चुके छात्रों को मेंस की तैयारी के लिए ₹100000 देने की बात हो. यह तमाम योजनाएं सरकार और हेमंत सरकार की बड़ी सोच में है. इसके लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सराहना हो ही रही हैं. बड़ा सवाल यह है कि जिन अधिकारियों को इसकी निगरानी करनी है वह उसकी निगरानी आंख बंद करके कर रहे हैं. या फिर बंद आंख से ही उसकी निगरानी करनी है यह तंत्र के हिस्से में शामिल है. क्योकि मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट पर ही सवाल उठ रहा है.

ये भी पढ़ें- सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में प्रवेशोत्सव समारोह, तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत

सवाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी है. जिन नौनिहालों को आप कल देश के भविष्य के तौर पर देखना चाहते हैं. उनके लिए आपकी योजनाओं की तैयारी जितनी मजबूत है. योजना को तैयार करने के लिए जो मेहनत हुई है. उसे जब अमलीजामा पहनाने की बात आती है तो उसको मटियामेट क्यों कर दिया जाता है. जिन अधिकारियों के जिम्मे सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की जिम्मेदारी दी गई थी वह एक्सीलेंट क्यों नहीं रही.

यह बड़ा सवाल है अगर रहने के लिए हॉस्टल की व्यवस्था नहीं है, तो फिर जान जोखिम में डालकर के कोई शिक्षा कैसे ग्रहण करेगा. उनके अभिभावक इसे कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे कि उनके जिगर के टुकड़े ने पढ़ने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रखा है. हॉस्टल की व्यवस्था ठीक नहीं है, खाने के लिए जो खाना दिया जा रहा है वह भी गंदे पानी से बन रहा है. बच्चे बीमार पड़ जाएंगे तो ऐसे में उनकी जिंदगी और पढ़ाई दोनों कैसे ठीक ढंग से हो पाएगी यह बड़ा सवाल है. इस सवाल को फिलहाल एक महिला ने ही उठाया है, वह भी राजधानी रांची में.

सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में पढ़ाई के पहले ही दिन जो हालात देखे हैं उससे एक बात तो साफ है कि जो तैयारी होनी थी उसे तैयार नहीं किया गया. और जिसे तैयार किया गया है वह सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की सोच वाली तैयारी नहीं है और यह अपने अंजाम तक नहीं पहुंचेगी. देखने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसको लेकर किस तरह के आदेश को जारी करते हैं.

यह तो तय है कि इसे करने की हेमंत सोरेन की सोच मजबूत है, लेकिन करने वालों की सोच किसी टेबल के नीचे से आने वाली सुविधा के दबाव में मजबूर है. और इसमें जनता कुछ कर नहीं पाएगी क्योंकि उसकी जरूरतों ने उसे इतना मजबूर कर दिया है कि जान जोखिम में डालकर के भी अपने जिगर के टुकड़े को भेजने को मजबूर दिख रहे हैं.

सवाल यह भी है कि सीएम हेमंत सोरेन की सोच और झारखंड के विकास पर ग्रहण की कुंडली मारकर कौन बैठा हुआ है. कुव्यवस्था की दीमक इतना बड़ा क्यों है कि झारखंड के भविष्य से खुला खिलवाड़ कर रहा है. अगर इसे ठीक नहीं किया गया तो संभव है कि सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस, एक्सीलेंट बनाने के बजाय हमेशा सवालों के दायरे में ही खड़ा रहेगा. क्योंकि सरकारी अधिकारी अगर लालफीताशाही से बाज नहीं आए तो झारखंड के विकास की हर सोच भटकती ही रहेगी. फिलहाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस के पढ़ाई के पहले दिन ही उजागर हो गई है विचार बड़ा करना होगा तभी झारखंड पढ़कर कुछ बड़ा कर पाएगा.

Last Updated : Jul 2, 2023, 8:18 AM IST
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