रांचीः झारखंड की राजनीति में मई महीने के बाद से जिस तरह का सियासी माहौल बना है, उसमें हर दिन इस बात की चर्चा होती है कि हेमंत सरकार का क्या होगा. भाजपा के कई नेताओं ने तो तय कर दिया था कि शायद इस बार की दीपावली में राज तिलक कर पूरे राज्य में उजाला करने के लिए बीजेपी दीया जलागी. लेकिन दीपावली भी आ गई, बीजेपी के लिए बहुत कुछ का दावा करने वाले नेताओं की एक भी नहीं चली. झारखंड की राजनीति में एक बात जोरों से चर्चा में है कि बीजेपी की हर तरह की राजनीति पर झारखंड की हेमंत सोरेन वाली अपनी राजनीति भारी पड़ी है और यह अब दिखने भी लगा है (Players In Jharkhand Politics).
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6 मई को ईडी की सबसे बड़ी रेड के बाद 11 मई को हेमंत सोरेन की खास कही जाने वाली आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. पूजा सिंघल अभी भी जेल में हैं और उसके बाद से खनन घोटाले को लेकर जिस तरह की बात झारखंड की राजनीति में चली, उसमें एक के बाद एक कई ऐसे नामों पर ईडी ने अपना फंदा कसा जो झारखंड के अवैध खनन में हिस्सेदार माने जा रहे थे. अपनी सबसे बड़े गिरफ्तारी को लेकर ईडी ने यह माना था और ईडी ने यह पत्र भी दिया है कि कई आईएएस अधिकारी और व्यवसाई खनन घोटाले में शामिल हैं और सरकार के करीबी भी हैं. इन तमाम चीजों का सीधा असर झारखंड पर पड़ा है. यह हेमंत सरकार पर उस दबाव के रूप में भी था, जिसमें राजनीति में नैतिकता का तकाजा और नैतिकता वाली राजनीति की कहानी भी खूब कही गई.
यहां हुई बीजेपी फेलः झारखंड में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले पर सबसे ज्यादा हेमंत सोरेन को डराने वाली बीजेपी के कई नेता तो ट्वीट के माध्यम से सरकार बनने और बिगड़ने की तारीख तक तय कर रहे थे. हालांकि उसका कुछ असर झारखंड की राजनीति में दिखा भी, जिसमें विधायकों को बुला करके एक जगह रखना, छत्तीसगढ़ तक ले जाना फिर फ्लोर पर बहुमत साबित करना, ऐसे तमाम काम हेमंत सोरेन ने किए. लेकिन इसमें विपक्ष पीछे ही खड़ा दिखा. हेमंत की राजनैतिक मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा बवाल खड़ा किया गया. क्या ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में निर्वाचन आयोग ने राज्यपाल रमेश बैस से उसकी अनुमति मांगी है और उसके न मिलने के बाद या उसमें देर होने को लेकर जो सियासत झारखंड में हुई उसका जवाब हेमंत सोरेन ने जिस मजबूती से दिया, वह बीजेपी के लिए झारखंड फतेह का सपना सजाने के लिए जो तैयारी है उसके सामने बड़ा रोड़ा तो खड़ा ही है.
चिट्ठी पर सियासतः ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में राजभवन द्वारा चिट्ठी नहीं दिए जाने, चिट्ठी देने में देर करने को लेकर के जो राजनीति हुई उसमें हेमंत सोरेन सीधे पत्र देकर राजभवन से यह गुजारिश कर लिए अगर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में किसी तरह की कोई कानूनी प्रक्रिया के तहत बात है तो उसे स्पष्ट किया जाए ताकि उसके लिए निर्णय लिया जा सके. हेमंत सोरेन यहीं नहीं रूके अपने वकील के माध्यम से निर्वाचन आयोग को भी पत्र दे दिया कि हमारे बारे में जो भी चीजें हैं, उसे साफ-साफ बता दिया जाए. हेमंत सोरेन खुले मंच से इस बात को कह रहे हैं कि झारखंड सरकार को फंसाने और चल रही सरकार को अस्थिर करने की राजनीति बीजेपी कर रही है. अगर उनके पास निर्वाचन आयोग का कोई भी पत्र है तो उसे साफ तौर पर दिया जाए. हेमंत सोरेन ने यहां तक कह दिया कि एक ऐसा काम किया जा रहा है जिसमें गुनहगार बताने के लिए तैयार खड़े राजनीतिक दल से यह पूछा जा रहा है कि मेरा गुनाह क्या है. इसकी चिट्ठी दे दीजिए लेकिन वह दी ही नहीं जा रही है.
बीजेपी को ऐसे पछाड़ाः हेमंत सोरेन के तमाम आरोप के बाद बीजेपी के पास अगर कोई दलील या राजभवन के पास कोई उत्तर था तो उससे राज भवन का और राज्यपाल का एक उत्तर आया जिसमें यह कहा गया कि जो लिफाफा आया है वह चिपक गया है खुल नहीं रहा है. अब इस बयान के बाद बीजेपी का और बीजेपी के बयान देने वाले नेताओं का जो भी हौसला था. इस रूप में जरूर टूटा है कि फिलहाल इस दीपावली में बीजेपी को राजनैतिक उजाले की कोई किरण झारखंड में नहीं दिख रही है और हेमंत ने जिस तरीके से बीजेपी को जवाब दिया है. निश्चित तौर पर उसमें जलने वाले दीपावली के पटाखों की आवाज ज्यादा तेज हो गई है जो बीजेपी के लोगों को खलेगी जरूर. इस खेल में कांग्रेस चुपचाप एक किनारे बैठी है जिसमें हेमंत सोरेन के लिए एक समर्थन भी है और बीजेपी के लिए एक सबक भी. उसके सारे राजनीतिक फार्मूले और जोड़ तोड़ के सारे आंकड़े फेल हो गए. इस बीच एक चीज तो साफ है कि झारखंड में बीजेपी की किसी भी राजनीति पर हेमंत सोरेन वाली अपनी सियासत अभी तक भारी पड़ी है.