रांची: 15 नवंबर को झारखंड ने अपने 22 सालगिरह को मनाया तो अब झारखंड नए मापदंड को घेरने की तैयारी में भी जुट गया है. रांची के मंच से सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड के लोगों से यह अपील की है कि घर में चाहे जैसा राशन कार्ड हो उसे फाड़ (Tear ration card) कर फेंक दीजिए, जो झारखंड के हिम्मती लोगों की जिजीविषा और उस हौसले का परिचायक है जो झारखंड ने समय-समय पर अपने वीर सपूतों के माध्यम से देश और विश्व के फलक पर रखा है चाहे वीर महापुरुषों की बात हो या फिर अपने गर्भ में छुपाए उस मिनरल से जो देश की आर्थिक समृद्धि को मजबूत करते हैं. अब झारखंड को मजबूत करने की बारी है और शायद यही वजह है कि सीएम हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) ने झारखंड के लोगों से अपील की है कि अपने राशन कार्ड को फाड़ दीजिए (CM Hemant Soren appeal to tear ration card) क्योंकि आप को स्वावलंबी बनना है.
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देश के कोर्ट में बहस छिड़ी है कि सरकार मुफ्त की जितनी योजनाओं को चला रही है उसकी प्रासंगिकता क्या है और कब तक यह मुफ्त की चीजें जनता को दी जाती रहेंगी. आखिर भारत के लोग कब स्वाबलंबी हो करके देश को देना शुरू करेंगे. अब यहां से अगर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की बात को रखा जाए तो जिस भी स्थिति में झारखंड खड़ा है उसमें सरकार के मुखिया का आत्मबल इतना मजबूत दिख रहा है कि अगर झारखंड के लोग यह तय कर लें कि उन्हें सरकारी सुविधाओं पर नहीं रहना है तो पूरे देश के फलक पर झारखंड अपने विकास की मिसाल पेश कर सकता है.
कोरोना काल के बाद चालू हुए वित्तीय वर्ष में 2020-21 में जहां झारखंड की प्रति व्यक्ति आय ₹52000 थी वह अब बढ़कर वित्तीय वर्ष 2122 में 55000 से ज्यादा हो गई है. इस नजरिए से अगर देखा जाए तो एक साल में झारखंड के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 7.3 फीसदी ज्यादा हुई है जो झारखंड के विकास को उस कालखंड के दौरान बताता है जब कोरोना महामारी से पूरे देश की आर्थिक संरचना बेपटरी हो रखी है. झारखंड का आत्मबल कोविड-19 के बाद निश्चित तौर पर मजबूत हुआ है और यही सशक्त हो रहे झारखंड के मजबूत आत्मबल की कहानी भी कहता है.
हेमंत सोरेन ने झारखंड के लोगों से अपील की है कि अपने घरों के राशन कार्ड को फाड़ कर फेंक दें, तो सभी राजनीतक दलों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि अगर देश की न्यायिक संस्थाएं, केंद्र और राज्य की सरकारों के सामने यह सवाल रख रही हैं कि मुफ्त में देने वाली योजनाओं को कितने दिनों तक रखा जाए या फिर इसकी प्रासंगिकता पर अब सवाल उठने लगे हैं. मुद्दा चाहे जितना बड़ा हो या फिर मुद्दे पर जिन भी चीजों को रखा गया हो लेकिन सवाल यह है कि मुफ्त में देने वाली चीजों को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं तो ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह बयान निश्चित तौर पर पूरे देश में पिछड़ा कहे जाने वाले झारखंड के उस हिम्मत और आत्मबल को बताता है जिसमें झारखंड के लोग अगर चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं.
मामला सिर्फ झारखंड की जनता का नहीं झारखंड की राजनीति करने वाले सभी राजनीतिक दलों का है उनके नेताओं का है सभी जनप्रतिनिधियों का है झारखंड को विकास की जगह पर ले जाने वाले हर सोच का है जो संकल्प में कम से कम इस बात को लाना शुरू कर दें कि झारखंड अब वयस्क हो चुका है, 22 बसंत देख चुका है, तो अब जो कुछ देखना है वह अपने हिम्मत और हौसले से विकास की नई बुनियाद को गढ़ना है बजाय इसके कि किसी के द्वारा मिलने वाले टुकड़ों की रोटी पर टकटकी लगाए बैठे रहना. झारखंड में हिम्मत है झारखंड में हौसला है क्योंकि यह धरती बिरसा मुंडा की है, धरती सिदो कान्हू की है, यह धरती जो चाह लेती है वह कर देती है. जरूरत इस बात की है कि इस बात को कम-से-कम सियासत से बाहर रखकर सभी राजनीतिक दलों को झारखंड को आत्म स्वाबलंबी बनाने पर आज से ही टूट जाने का प्रयास शुरू कर देना चाहिए, ताकि पूरे देश के लिए झारखंड एक मिसाल कायम कर सके. क्योंकि पूरे देश में सिर्फ हेमंत सोरेन एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राशन कार्ड फाड़ कर के सभी झारखंड वासियों को स्वावलंबी होने की बात कहकर सियासत को एक नई दिशा भी दी है और झारखंड की हिम्मत भी बताई है.