रांची: झारखंड में बाल विवाह के आंकड़े डराने वाले हैं. अब लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल किए जाने को लेकर झारखंड में भी नेता अपनी अपनी राय दे रहे हैं. केंद्र सरकार के इस फैसले का हफीजुल अंसारी और जगरनाथ महतो जैसे नेताओं ने विरोध किया है. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर ये कानून लागू भी हो गया तो हो सकता है कि झारखंड में बाल विवाह के आंकड़े और बढ़ जाएं.
नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में 2020 में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी. इस टास्क फोर्स का गठन मातृत्व की आयु से संबंधित मामले और डिलिवरी के दौरान होने जच्चा बच्चा की मौत के अलावा पोषण स्तर में सुधार पर सुझाव मागे गए थे. इस टास्क फोर्स ने जो रिपोर्ट दी उसमें कहा गया कि बच्चे को जन्म देते वक्त कम से कम महिला की उम्र 21 साल होनी चाहिए. वहीं, सेव द चिल्ड्रन द्वारा ‘ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021 में कहा गया है कि भारत में बाल विवाह के कारण गर्भधारण और बच्चे को जन्म देने की वजह से हर साल करीब 22 हजार लड़कियों की मौत हो रही है. ऐसे में समझा जा सकता है कि ये कानून लोगों की सेहत पर कितना जरूरी है.
झारखंड की बात करें तो यहां देश में सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं. एक अनुमान के मुताबिक झारखंड में 10 में से 3 लड़कियां 18 वर्ष से कम उम्र में ब्याह दी जा रही हैं. राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के अनुसार साल 2020-21 की रिपोर्ट में 32.2 फीसदी मामले झारखंड में बाल विवाह को लेकर दर्ज किए गए हैं. NFHS-4 के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार बाल विवाह के 37.9 प्रतिशत मामले दर्ज किए गए थे. इस लिहाज से देखें तो बाल विवाह के अनुपात में इन 5 वर्षों में मामूली गिरावट दर्ज की गई है.
क्या कहते हैं झारखंड के नेता
झारखंड में इस पर राजनीतिक सामाजिक स्तर पर बहस जारी है. संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम इसे राजनीतिक चश्मे से देखते हुए भाजपा पर चुनाव के वक्त इस तरह का एजेंडा चलाने की बात कही है. उन्होंने कहा कि नियम कानून तो बहुत हैं मगर जब तक लोगों में जागरूकता नहीं आयेगी तब तक इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. वहीं, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफिजुल अंसारी ने लड़कियों के शादी की उम्र 18 वर्ष ही रहने को उचित माना है. उन्होंने कहा कि जब 18 साल में ही वोट डालने का अधिकार होता है तो शादी करने का भी अधिकार होना चाहिए. जबकि, भाजपा विधायक नीरा यादव ने झारखंड में बाल विवाह पर चिंता जताते हुए कहा कि 21 वर्ष शादी की उम्र होने से वे परिपक्व हो जाएंगी और जच्चा बच्चा भी स्वस्थ रहेंगे. भाजपा के साथ साथ कांग्रेस के भी विधायक और प्रदेश अध्यक्ष लड़कियों के शादी की उम्र 21 वर्ष किये जाने के पक्षधर हैं. धनबाद की कांग्रेस विधायक पूर्णिमा सिंह ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि इसे धार्मिक दृष्टि से नहीं देखकर जेंडर विशेष के रूप में देखना चाहिए. वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने भी लड़कियों के शादी का उम्र 21वर्ष करने पर सहमति जताते हुए केंद्र सरकार को इस पर व्यापक रूप से एक्सरसाइज करने की वकालत की है.
लिंगानुपात के आंकड़े
सबसे चिंताजनक स्थिति लिंगानुपात के मामले में है. NFHS-4 के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में प्रति 1000 पुरुषों पर 919 लड़कियां थीं. NFHS-2 यानी 2020-21 में ये आंकड़ा 899 हो गया है. यानी झारखंड में लिंगानुपात में गिरावट आई है. हालांकि देश में लिंगानुपात में सुधार दर्ज किया गया है. देश में ये अनुपात 1000 पुरुषों पर 929 महिलाएं हैं.
निरक्षरता ने बढ़ाया बाल विवाह
कई सर्वे में ये निकल कर सामने आया है कि जहां लड़कियां शिक्षित हैं उन राज्यों में उनकी शादी देर से होती है. मतलब साफ है कि अगर लड़कियों को शिक्षित किया जाए तो बाल विवाह की दर अपने आप घट सकती है. झारखंड की बात करें तो बिहार से अलग होने के समय राज्य की आधी आबादी निरक्षर थी. 2001 में झारखंड के 53.56 प्रतिशत लोग साक्षर थे. दस साल बाद 2011 में यह प्रतिशत बढ़कर 66.41 हो गया. 2018 में यह आंकड़ा 73.20 प्रतिशत तक पहुंचा. मतलब अब भी राज्य में 27 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं. 18 सालों में मात्र 20 प्रतिशत आबादी साक्षर हो पाई. लोगों को साक्षर करने के लिए सरकार की ओर से बहुत प्रयास हो रहे हैं हालांकि ये नाकाफी साबित हो रहे हैं.
रोजगार पर ब्रेक से बढ़ा बालविवाह
दस साल पहले राज्य में बेरोजगारी दर 27.4 प्रतिशत थी. यानी कि 100 योग्य लोगों में 27 लोग बेरोजगार थे. साल 2018 में बेरोजगारी दर 12 प्रतिशत हो गई. 2019 के अंत में झारखंड में 100 योग्य युवाओं में से मात्र 7.6 युवा ही बेरोगार थे. यानी बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत थी. कोरोना के कारण नवंबर 2020 से अक्टूबर 2021 के बीच बेरोजगारी दर 18.1 प्रतिशत हो गई. पिछले कुछ सालों में रोजगार बढ़ने के बजाय घटा है. माना जा रहा है कि घटते रोजगार के अवसर ने भी बाल विवाह को बढ़ावा दिया है. रोजगार नहीं होने की वजह से लोगों के पास पैसे नहीं होते हैं और फिर वे अपनी लड़कियों की कम उम्र में ही शादी कर देते हैं.
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क्या कहते हैं सोशल एक्टिविस्ट
झारखंड में पालोना संस्था चलाने वाली महिला एक्टिविस्ट मोनिका गुंजन आर्या के अनुसार झारखंड में बाल विवाह एक बहुत बड़ी समस्या है. राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार साल 2020-21 की रिपोर्ट में 32.2 फीसदी मामले झारखंड में बाल विवाह को लेकर दर्ज किए गए हैं. मोनिका के अनुसार इससे पहले भी शादी की उम्र 18 साल थी और इसे लेकर कानून बनाया गया था. इसके बावजूद झारखंड में यह कानून प्रभावी कई इलाकों में नहीं था. ऐसे में जब शादी की उम्र 21 साल निर्धारित की गई है तो फिर इस कानून को लेकर सब को जागरूक भी करना होगा. इसकी जिम्मेवारी सभी को उठानी होगी, न सिर्फ सरकार को बल्कि निजी संस्थाएं, स्कूल-कॉलेज से जुड़े लोगों को भी इसमें आगे आना होगा.
देश में पढ़े लिखे लोगों का एक बड़ा वर्ग है. उनका यह मानना है कि शादी की उम्र कम होने से, कम उम्र में लड़कियां मां बनती है जिसे मां और बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. वहीं तमाम शैक्षणिक योग्यताएं हासिल करने की उम्र भी 18 साल से ही शुरू होती है. ऐसे में लड़कियां ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाती हैं. ऐसी लड़कियों की संख्या गांव में ज्यादा है. वहीं अगर किसी लड़की की शादी 21 साल के बाद होती है तो उसमें अपने परिवार अपने पति को समझने की समझ भी बढ़ेगी. ऐसे में शादी की सफलता का प्रतिशत भी बढ़ेगा. देश में विवाह की उम्र में यह बदलाव 43 साल बाद किया जा रहा है. इससे पहले 1978 में बदलाव किया गया था, तब शादी की उम्र 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी.