रांचीः झारखंड में स्कूली शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने और उसे गुणवत्तापरक बनाने का दावा करने वाली सरकार और शिक्षा मंत्री, जरा इन तस्वीरों पर भी गौर फरमाइये. ये तस्वीरें किसी गांव या सुदूर अंचल की नहीं. बल्कि राजधानी रांची के एक सरकारी स्कूल की हैं. जो झारखंड में शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है.
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रांची में सरकारी स्कूल के भवन जर्जर हैं. राजधानी के बीचोंबीच करम टोली स्थित राजकीयकृत मध्य विद्यालय की हालत काफी खराब है. भवन जर्जर में बच्चे डर के साए में पढ़ने को मजबूर हैं. इस बाबत कई बार शिक्षा विभाग को अवगत कराया गया है. इसके बावजूद शिक्षा विभाग का ध्यान इस ओर नहीं है. एक तरफ अनहोनी का डर, दूसरी ओर कागजों में योजनाएं धरातल पर कुछ भी नहीं. व्यवस्थाओं दो बदलने का दावा करने वाली सरकार और मंत्री, समस्याओं का चुटकी में निदान की बात तो करते हैं. लेकिन धरातल पर कुछ नहीं दिखता है. क्या सिर्फ कागजों पर योजनाएं चलेंगी, ये सवाल आज यहां पढ़ने वाले हर एक नौनिहाल का है.
एक तरफ जहां राज्य सरकार स्कूली शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की बात कहकर दम भरती हैं तो दूसरी और धरातल पर चीजें कुछ और ही नजर आती है. स्कूली व्यवस्था को सुधारने के लिए सबसे पहले इंफ्रास्ट्रक्चर (भवन) को डेवलप करना पहला काम होता. जो इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से ही डेवलोप हैं, उनका मेंटेनेंस कर बेहतर ढंग से रखना यह व्यवस्था की जिम्मेदारी बनती है. लेकिन व्यवस्था सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है और जिम्मेदार लोग जिम्मेदारी निभाने में ईमानदार नहीं है.
इसी वजह से आज राज्य के अधिकतर स्कूलों की हालत बद से बदतर और दयनीय है. बच्चों की हालत तो स्कूलों में इस कदर हो गई है कि वह अपने आप को मजबूर और लाचार समझने लगे हैं. राजधानी रांची के बीचोंबीच करम टोली स्थित इस मध्य विद्यालय की हालत काफी खराब है. यहां का भवन जर्जर है, बच्चे डर के साए में पठन-पाठन करने को विवश हैं. इसको लेकर कई बार संबंधित लोगों को स्कूल के प्रिंसिपल की ओर से अवगत कराया गया है. लेकिन अधिकारियों और शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों का कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा है.
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जर्जर क्लास रूम और एसेंबली हॉलः जहां बच्चों का असेंबली (प्रार्थना) होता है उस जगह कोई भी 10 मिनट तक ठहर नहीं पाएगा. डर लगा रहता है कि कहीं छत ऊपर से नीचे आकर ना गिर जाए, क्लास रूम की हालत भी कमोबेश वैसी ही है. बेंच डेस्क की हालत देखकर आपको सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर भरोसा उठ जाएगा. अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर पठन पाठन मिले इसी उद्देश्य को लेकर स्कूल भेजते हैं. लेकिन जहां बच्चे बैठकर पठन पाठन करते हैं, उस जगह की हालत काफी खराब और बदतर स्थिति में है. गंदगी, भवन जर्जर, अनहोनी का डर बच्चों को सताता रहता है. बारिश के मौसम में खतरा और बढ़ जाता है.
व्यवस्था बदहाल-नौनिहाल बेहालः चमकता और रंग रोगन किया हुआ भवन प्रिंसिपल और शिक्षकों का है. इस भवन को चकाचक रखा गया है और जिस भवन में बच्चे पठन-पाठन कर रहे हैं. वह भवन दयनीय हालत में है. किसी को यहां बच्चों की चिंता नहीं है बल्कि शिक्षक इन सरकारी स्कूलों में मोटी पगार लेकर किस तरह आराम फरमाएं. इसकी चिंता व्यवस्था को जरूर रहती है. वाकई में राज्य के लिए यह व्यवस्था चिंता का विषय है.