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झारखंड विधानसभा में 'ट्राइबल फेस' को नेता प्रतिपक्ष बनाने के मूड में बीजेपी, नीलकंठ के नाम पर बन सकती है सहमति

झारखंड विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी फूंक-फूंक कर आगे कदम बढ़ा रही है. बीजेपी सदन में अब विपक्ष की भूमिका निभाएगी. पार्टी सूत्रों के अनुसार नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के लेकर पार्टी काफी सोच विचार कर रही है. चूंकि हेमंत सोरेन अनुसूचित जनजाति से आते हैं इसलिए नेता प्रतिपक्ष के लिए पार्टी कोई ट्राइबल फेस का चुनाव करने के मूड में है.

Leader of Opposition in Jharkhand
झारखंड विधानसभा
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Published : Dec 31, 2019, 5:33 PM IST

रांचीः झारखंड विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बीजेपी सदन में अपने नेता को चुनने के लिए काफी सोच-विचार कर रही है. पार्टी सूत्रों की मानें तो 28 ट्राइबल सीट में से महज 2 पर बीजेपी ने कब्जा किया है. नेता के रूप में इन बीजेपी विधायकों के नामों पर सहमति बनाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है. इन 2 सीटों में से एक खूंटी और दूसरा तोरपा विधानसभा सीट है. खूंटी से राज्य के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा अपनी सीट बचाने में सफल हुए. वहीं तोरपा में बीजेपी के कोचे मुंडा ने झामुमो से यह सीट छीनी है.

देखें पूरी खबर

क्या कहना है बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का
अंदरखाने से आ रही खबरों पर यकीन करे तो वरिष्ठता के हिसाब से पार्टी के पास फिलहाल दो चेहरे हैं, जिन पर विचार किया जा रहा है. उनमें से पहला नीलकंठ सिंह मुंडा का है, जबकि दूसरा रांची से छठीं बार विधायक बने सीपी सिंह का है. हालांकि सीपी सिंह नन ट्राईबल और अगड़ी जाति से आते हैं. ऐसे में पार्टी उन्हें दूसरे स्थान पर रखने के मूड में है. विधानसभा चुनावों के परफार्मेंस के बाद अब बीजेपी पूरी तरह से 'प्रो ट्राईबल' चेहरे को बरकरार रखने की नीयत से नीलकंठ सिंह मुंडा पर दांव खेलने के मूड में है.

ये है दूसरी वजह
इसकी दूसरी बड़ी वजह यह है कि भले ही खूंटी में बीजेपी को लोकसभा चुनाव के दौरान बढ़त नहीं मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपनी सीट वापस हासिल की है. वह भी तब जब अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित दुमका सीट से तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी को हार का मुंह देखना पड़ा.
ये भी पढ़ें- रांचीः रातू में नकाबपोश अपराधियों ने जमीन कारोबारी की गोली मारकर की हत्या

कोल्हान और संथाल खराब प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव में एक तरफ जहां कोल्हान से बीजेपी पूरी तरह साफ हो गई. वहीं, दूसरी तरफ संथाल परगना इलाके में भी एसटी सीटों पर उसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के रूप में ज्यादा सहमति नीलकंठ के नाम पर बनने की संभावना है. विधानसभा के मौजूदा स्वरूप को देखें तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अनुसूचित जनजाति से आते हैं, ऐसे में उन्हें काउंटर करने के लिए उसी समुदाय के व्यक्ति के हाथ में विपक्षी नेतृत्व देने पर पूरे सहमति बनने की उम्मीद है.
ये भी पढ़ें-अहंकारी सरकार को झारखंड की जनता ने नकारा, बिहार में भी दिखेगा असर: जयप्रकाश नारायण यादव

झारखंड विधानसभा के मौजूदा आंकड़े
मौजूदा आंकड़ों के अनुसार महागठबंधन को 47 सीटें हासिल हुई हैं. जबकि उसे झाविमो के तीन, भाकपा माले और एक निर्दलीय विधायक का भी समर्थन हासिल है. ऐसे में हेमंत सोरेन की अगुवाई में बनी सरकार के पास 81 इलेक्टेड सदस्यों वाले विधानसभा में 52 सदस्यों का समर्थन हासिल है.

रांचीः झारखंड विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बीजेपी सदन में अपने नेता को चुनने के लिए काफी सोच-विचार कर रही है. पार्टी सूत्रों की मानें तो 28 ट्राइबल सीट में से महज 2 पर बीजेपी ने कब्जा किया है. नेता के रूप में इन बीजेपी विधायकों के नामों पर सहमति बनाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है. इन 2 सीटों में से एक खूंटी और दूसरा तोरपा विधानसभा सीट है. खूंटी से राज्य के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा अपनी सीट बचाने में सफल हुए. वहीं तोरपा में बीजेपी के कोचे मुंडा ने झामुमो से यह सीट छीनी है.

देखें पूरी खबर

क्या कहना है बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का
अंदरखाने से आ रही खबरों पर यकीन करे तो वरिष्ठता के हिसाब से पार्टी के पास फिलहाल दो चेहरे हैं, जिन पर विचार किया जा रहा है. उनमें से पहला नीलकंठ सिंह मुंडा का है, जबकि दूसरा रांची से छठीं बार विधायक बने सीपी सिंह का है. हालांकि सीपी सिंह नन ट्राईबल और अगड़ी जाति से आते हैं. ऐसे में पार्टी उन्हें दूसरे स्थान पर रखने के मूड में है. विधानसभा चुनावों के परफार्मेंस के बाद अब बीजेपी पूरी तरह से 'प्रो ट्राईबल' चेहरे को बरकरार रखने की नीयत से नीलकंठ सिंह मुंडा पर दांव खेलने के मूड में है.

ये है दूसरी वजह
इसकी दूसरी बड़ी वजह यह है कि भले ही खूंटी में बीजेपी को लोकसभा चुनाव के दौरान बढ़त नहीं मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपनी सीट वापस हासिल की है. वह भी तब जब अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित दुमका सीट से तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी को हार का मुंह देखना पड़ा.
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कोल्हान और संथाल खराब प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव में एक तरफ जहां कोल्हान से बीजेपी पूरी तरह साफ हो गई. वहीं, दूसरी तरफ संथाल परगना इलाके में भी एसटी सीटों पर उसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के रूप में ज्यादा सहमति नीलकंठ के नाम पर बनने की संभावना है. विधानसभा के मौजूदा स्वरूप को देखें तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अनुसूचित जनजाति से आते हैं, ऐसे में उन्हें काउंटर करने के लिए उसी समुदाय के व्यक्ति के हाथ में विपक्षी नेतृत्व देने पर पूरे सहमति बनने की उम्मीद है.
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झारखंड विधानसभा के मौजूदा आंकड़े
मौजूदा आंकड़ों के अनुसार महागठबंधन को 47 सीटें हासिल हुई हैं. जबकि उसे झाविमो के तीन, भाकपा माले और एक निर्दलीय विधायक का भी समर्थन हासिल है. ऐसे में हेमंत सोरेन की अगुवाई में बनी सरकार के पास 81 इलेक्टेड सदस्यों वाले विधानसभा में 52 सदस्यों का समर्थन हासिल है.

Intro:रांची। राज्य के विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद बीजेपी सदन में अपने नेता को चुनने को लेकर बहुत खूब फूंक कर कदम बढ़ा रही है। पार्टी सूत्रों का यकीन करें तो 28 ट्राइबल सीट में से महज दो पर चुनाव जीत कर आने वाले बीजेपी विधायकों को लेकर सहमति बनाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। इन 2 सीटों में से एक खूंटी विधानसभा इलाका है, वही दूसरा तोरपा विधानसभा सीट है।खूंटी से राज्य के तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा अपनी सीट बचाने में सफल हो पाए वहीं दूसरी तरफ तोरपा में बीजेपी के कोचे मुंडा ने झामुमो से यह सीट छीनी है।


Body:क्या बताते हैं बीजेपी के अंदरूनी सूत्र
बीजेपी के सूत्रों का यकीन करें तो वरिष्ठता के हिसाब से पार्टी के पास फिलहाल दो चेहरे हैं जिन पर विचार किया जा रहा है। उनमें से पहला नीलकंठ सिंह मुंडा का है। जबकि दूसरा रांची से छठी बार विधायक बने सीपी सिंह का है। चूंकि सीपी सिंह नन ट्राईबल और अगड़ी जाति से आते हैं ऐसे में पार्टी उन्हें दूसरे स्थान पर रखने के मूड में है। विधानसभा चुनावों के परफार्मेंस के बाद अब बीजेपी पूरी तरह से 'प्रो ट्राईबल' चेहरे को बरकरार रखने की नीयत से नीलकंठ सिंह मुंडा पर दांव खेलने के मूड में है।

ये है दूसरी वजह
इसकी दूसरी बड़ी वजह यह है कि भले ही नीलकंठ सिंह मुंडा के विधानसभा क्षेत्र में लोकसभा चुनावों में पार्टी को बढ़त नहीं मिली लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी सीट वापस हासिल की। वह भी तब जब अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित दुमका सीट से तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी को हार का मुंह देखना पड़ा।


Conclusion:कोल्हान और संताल में नहीं रह संतोषजनक प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव में एक तरफ जहां कोल्हान से बीजेपी पूरी तरह साफ हो गई। वहीं दूसरी तरफ संताल परगना इलाके में भी एसटी सीटों पर उसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के रूप में ज्यादा सहमति नीलकंठ के नाम पर बनने की संभावना है। विधानसभा के मौजूदा स्वरूप को देखें तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अनुसूचित जनजाति से आते हैं। ऐसे में उन्हें काउंटर करने के लिए उसी समुदाय के व्यक्ति के हाथ में विपक्षी नेतृत्व देने पर पूरे सहमति बनने की उम्मीद है।

क्या हैं झारखण्ड विधानसभा के मौजूदा आंकड़े
मौजूदा आंकड़ों के अनुसार महागठबंधन को 47 सीटें हासिल हुई हैं। जबकि उसे झाविमो के तीन, भाकपा माले और एक निर्दलीय विधायक का भी समर्थन हासिल है। ऐसे में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी सरकार के पास 81 इलेक्टेड सदस्यों वाले विधानसभा में 52 सदस्यों का समर्थन हासिल है।
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