रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सियासत जारी है. इधर, झारखंड हाई कोर्ट में चल रहे इस मामले पर कोर्ट के बाहर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली के बयान को जेएमएम ने अपनी ढाल बना लिया है. जेएमएम नेताओं ने पीसी कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लगे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले की इन्हीं तर्कों से बचाव किया. इस पर बीजेपी भड़क गई है. भाजपा प्रवक्ता ने पूर्व न्यायाधीश और जेएमएम के इस कदम की निंदा की है. बीजेपी ने इसे कोर्ट की अवमानना और फैसले पर कोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश करार दिया है और इस पर कार्रवाई की मांग की है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त जज जस्टिस एके गांगुली ने एक निजी चैनल को इंटरव्यू दिया था. आरोप है कि उन्होंने हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले पर टिप्पणी की थी, जबकि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है. इसी को लेकर शुक्रवार को जेएमएम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और चुनाव आयोग से जेएमएम का भी पक्ष रखने की मांग की. आरोप है कि जेएमएम ने भी पीसी में वही दलीलें रखीं, जो पूर्व न्यायाधीश ने रखी थी.
बिजली पर बात न करने पर सवालः इधर, जस्टिस गांगुली के बयान के बाद जेएमएम का पीसी में उसी तरह की बातें कही जाने पर बीजेपी ने इसे कोर्ट की अवमानना करने का आरोप लगाया है. भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय में प्रेस वार्ता में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि झामुमो की प्रेस वार्ता में बिजली पानी की समस्या के चर्चा नहीं करना,उस पर कोई स्पष्टीकरण या जवाब नहीं देना दुर्भाग्यपूर्ण है. राज्य की बिजली पानी की जो समस्या है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण कोई विषय नहीं था.
विचाराधीन मामले में पब्लिक ओपिनियन बनाने की कोशिशः प्रतुल शाहदेव ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से दिल्ली से लेकर रांची तक कोर्ट रूम के बाहर एक एजेंडा सेट किया जा रहा है.उच्च न्यायालय में विचाराधीन मामलों में एक सोची समझी साजिश के तहत पब्लिक ओपिनियन बनाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि कोर्ट के बाहर दिल्ली के गलियारों में या रांची के कॉरिडोर में एक एजेंडा सेट किया जा रहा है.
बीजेपी बोली-विचाराधीन मामले पर बयान देना कोर्ट की अवमाननाः प्रतुल शाहदेव ने कहा कि दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली विचाराधीन मामले पर अपना वक्तव्य देते हैं जबकि वह मामला हाई कोर्ट में चल रहा है, इसमें 2 सुनवाई हो चुकी है. शाहदेव ने कहा कि पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली को जुडिशल कंडक्ट की अच्छे से जानकारी है कि किसी न्यायालय में विचाराधीन मामले में सार्वजनिक टिप्पणी कर किसी को क्लीन चिट देना कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के दायरे में आता है. इसके बावजूद वह सर्वोच्च न्यायालय के जजमेंट को दरकिनार करके एक चैनल को इंटरव्यू देने के दौरान राज्य सरकार को क्लीन चिट दे रहे हैं.
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि जिन मामलों का उल्लेख जस्टिस गांगुली ने किया था, आज उसी मामले को लेकर हू ब हू झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं ने भी प्रेस वार्ता की और सरकार के बचाव में वही सब बातें दोहराईं जो 1 दिन पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली ने कही थी. भाजपा इन दोनों प्रकरण को पूर्णतः अदालत की अवमानना का मामला मानती है. क्योंकि जो मामला विचाराधीन है, उस पर किसी को टिप्पणी करने का हक नहीं है.
प्रतुल शाहदेव ने पूर्व न्यायाधीश पर भी कई आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि एक ऐसा व्यक्ति झारखंड सरकार को क्लीन चिट दे रहा है, जिसके ऊपर बड़े-बड़े आरोप लगे हैं. उन्होंने कहा कि फॉर्मर जस्टिस एके गांगुली को वेस्ट बेंगाल ह्यूमन राइट कमीशन चेयरमैन पद से इस्तीफा क्यों देना पड़ा था यह पब्लिक डोमेन में है. उन्होंने कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट 1971 की धारा सी (2) का हवाला देते हुए कहा की यह कानून कहता है कि कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट उस व्यवहार को माना जाएगा जिसमें न्यायालय में चल रहे मामले में अदालत के बाहर इंटरफेयर या पब्लिक ऑपिनियन बनाने की कोशिश की जाती है.
प्रशांत भूषण केस का हवालाः भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट प्रशांत भूषण Vs यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर विचाराधीन मामले में अदालत के बाहर कोई बयान दे कर निर्णय को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है तो उसे कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है कि "इग्नोरेंस ऑफ लॉ इज नो एक्सक्यूज" इसलिए झामुमो के नेता यह नहीं कह सकते कि उन्हें कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के नियम की जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि जस्टिस एके गांगुली और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं का कोर्ट रूम के बाहर टिप्पणी करना यह जाहिर करता है कि वह सभी ज्यूडिशरी के प्रोसेस में इंटरफेयर कर रहे हैं,यह कंटेंपट ऑफ कोर्ट है. यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है.