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रांची: प्रवासी मजदूरों को लेकर सियासत तेज, केंद्र और राज्य में चल रहे हैं बयानों के बाण

झारखंड में प्रवासी मजदूरों को लेकर राजनीति जारी है. एक तरफ झारखंड सरकरा केंद्र से मजदूरों को वापस लाने के लिए मदद मांग रही है, वहीं केंद्र सरकार राज्य सरकार पर कोऑपरेट नहीं करने का आरोप लगा रही है. पूरे देश में सबसे पहले श्रमिक स्पेशल ट्रेन तेलंगाना से झारखंड के लिए ही चलाई गई थी. अब भी झारखंड के सबसे अधिक लोग महाराष्ट्र में फंसे हुए हैं.

BJP and JMM face to face regard to bringing back migrant workers in jharkhand
प्रवासी मजदूरों पर राजनीति
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Published : May 17, 2020, 11:47 AM IST

रांची: वैश्विक महामारी कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों को लेकर केंद्र और झारखंड सरकार में जमकर बयानों के बाण चल रहे हैं. एक तरफ राज्य सरकार प्रवासी मजदूरों को झारखंड वापस लाने के लिए केंद्र से गुहार लगा रही है. वहीं केंद्र का साफ कहना है कि राज्य सरकार इस मामले में कोऑपरेट नहीं कर रही है. झारखंड से बाहर 6,85,000 लोग लॉकडाउन की वजह से फंसे हुए हैं. इनमें सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र की है.

देखें पूरी खबर

यह है प्रवासी मजदूरों का आंकड़ा
सरकारी आंकड़ों पर यकीन करें तो महाराष्ट्र के बाद गुजरात में 63,800, राजस्थान में 58,000, कर्नाटक में 45,100, तमिलनाडु में 43,400, दिल्ली में 33,100, पश्चिम बंगाल में 30,300, आंध्र प्रदेश में 29,800, उत्तर प्रदेश में करीब 25,700 लोग फंसे हुए हैं. वहीं वापस लौटने वालों में जिन्होंने सरकार के एप्लीकेशन पर नाम रजिस्टर कराया है, उनमें ओडिशा से 24,900, बिहार से 23,400, केरल से 18,300, हरियाणा से 17,700, तेलंगाना से 15,900, पंजाब से 13,300, गोवा से 12,900, अंडमान निकोबार में से 11,080, मिजोरम से 10000, छत्तीसगढ़ से 10000, मध्य प्रदेश से 7,500, हिमाचल प्रदेश से 6,500, उत्तराखंड से 6,100, दादर और नगर हवेली से 4,400, जम्मू कश्मीर से 2,000, आसाम से 1,500, दमन दीव से 100, मणिपुर से 70, पांडिचेरी से 60, त्रिपुरा से 50, चंडीगढ़ से 40, सिक्किम से 40, मेघालय से 20 लोग शामिल हैं. इनके अलावा अन्य इलाकों में फंसे लोगों की संख्या लगभग 40,000 है.

इसे भी पढे़ं:- रांची के हिंदपीढ़ी में बवाल, पुलिस ने किया लाठीचार्ज और छोड़े आंसू गैस के गोले

प्रवासी मजदूरों को लेकर झारखंड पहुंची सबसे पहली ट्रेन
वहीं देश के अलग-अलग इलाकों में फंसे प्रवासी मजदूरों को लेकर देश में सबसे पहली ट्रेन झारखंड के लिए चली थी. रांची पहुंची इस ट्रेन से 1200 मजदूर रांची पहुंचे थे. दरअसल तेलंगाना से 1 मई को वहां फंसे 1200 मजदूरों को लेकर पहली ट्रेन हटिया पहुंची थी. उसके बाद से अब तक झारखंड के अलग-अलग इलाकों में 44 से अधिक ट्रेनें आ चुकी है.

दूसरे राज्यों की इकोनॉमी के हिस्सा है झारखंड के श्रमिक

दरअसल, देश के बड़े राज्यों में लगे उद्योग धंधे में मुख्य रूप से श्रमिक के रूप में झारखंड के लोग कार्यरत हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली और राजस्थान कुछ ऐसे इलाके हैं जहां बड़ी संख्या में झारखंड के अलग-अलग इलाकों से माइग्रेट कर मजदूर के रूप में यहां के लोग काम करने जाते हैं. इतना ही नहीं यहां की लड़कियां और महिलाएं भी काम की तलाश में दिल्ली और दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में जाती हैं.

क्या कहता है पक्ष और विपक्ष
प्रवासी मजदूरों को लेकर बीजेपी का साफ कहना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सुविधा के अनुसार गोलपोस्ट बदल रहे हैं. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि जब केंद्र सरकार ने मजदूरों को वापस भेजने की घोषणा की तब राज्य सरकार ट्रेन की डिमांड की, सबसे बड़ी बात यह है कि दिल्ली में झारखंड के वरिष्ठ अधिकारी बैठते हैं, वह वहां से गृह मंत्रालय और रेल मंत्रालय से कोऑर्डिनेट कर मजदूरों को वापस ला सकते हैं, हैरत की बात यह है कि जब इस मुद्दे पर बीजेपी के सांसद जयंत सिन्हा ने मुख्यमंत्री से संपर्क करने की कोशिश की तो 6 दिनों तक उनके फोन कॉल का रिस्पांस नहीं मिला, ऐसे में आम आदमी को कितना रिस्पांस मिलेगा यह समझने वाली बात है. उन्होंने कहा कि अभी राजनीति का समय नहीं है, केंद्र और राज्य सरकार को बेहतर समन्वय कर लोगों को वापस लाना चाहिए.

वहीं, झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि केंद्र सरकार कुछ करना नहीं चाहती है, वह मामले को डायवर्ट कर रही है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर हवाई जहाज चलाने के लिए परमिशन मांगी, लेकिन उनकी चिट्ठी दबाकर केंद्र सरकार बैठी हुई है. झारखंड के मजदूर दूसरे राज्यों के उद्योगों की लाइफ लाइन है, यही वजह है कि वहां के उद्योगपति नहीं चाहते हैं कि वह उन श्रमिकों को वापस भेजें.

रांची: वैश्विक महामारी कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों को लेकर केंद्र और झारखंड सरकार में जमकर बयानों के बाण चल रहे हैं. एक तरफ राज्य सरकार प्रवासी मजदूरों को झारखंड वापस लाने के लिए केंद्र से गुहार लगा रही है. वहीं केंद्र का साफ कहना है कि राज्य सरकार इस मामले में कोऑपरेट नहीं कर रही है. झारखंड से बाहर 6,85,000 लोग लॉकडाउन की वजह से फंसे हुए हैं. इनमें सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र की है.

देखें पूरी खबर

यह है प्रवासी मजदूरों का आंकड़ा
सरकारी आंकड़ों पर यकीन करें तो महाराष्ट्र के बाद गुजरात में 63,800, राजस्थान में 58,000, कर्नाटक में 45,100, तमिलनाडु में 43,400, दिल्ली में 33,100, पश्चिम बंगाल में 30,300, आंध्र प्रदेश में 29,800, उत्तर प्रदेश में करीब 25,700 लोग फंसे हुए हैं. वहीं वापस लौटने वालों में जिन्होंने सरकार के एप्लीकेशन पर नाम रजिस्टर कराया है, उनमें ओडिशा से 24,900, बिहार से 23,400, केरल से 18,300, हरियाणा से 17,700, तेलंगाना से 15,900, पंजाब से 13,300, गोवा से 12,900, अंडमान निकोबार में से 11,080, मिजोरम से 10000, छत्तीसगढ़ से 10000, मध्य प्रदेश से 7,500, हिमाचल प्रदेश से 6,500, उत्तराखंड से 6,100, दादर और नगर हवेली से 4,400, जम्मू कश्मीर से 2,000, आसाम से 1,500, दमन दीव से 100, मणिपुर से 70, पांडिचेरी से 60, त्रिपुरा से 50, चंडीगढ़ से 40, सिक्किम से 40, मेघालय से 20 लोग शामिल हैं. इनके अलावा अन्य इलाकों में फंसे लोगों की संख्या लगभग 40,000 है.

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प्रवासी मजदूरों को लेकर झारखंड पहुंची सबसे पहली ट्रेन
वहीं देश के अलग-अलग इलाकों में फंसे प्रवासी मजदूरों को लेकर देश में सबसे पहली ट्रेन झारखंड के लिए चली थी. रांची पहुंची इस ट्रेन से 1200 मजदूर रांची पहुंचे थे. दरअसल तेलंगाना से 1 मई को वहां फंसे 1200 मजदूरों को लेकर पहली ट्रेन हटिया पहुंची थी. उसके बाद से अब तक झारखंड के अलग-अलग इलाकों में 44 से अधिक ट्रेनें आ चुकी है.

दूसरे राज्यों की इकोनॉमी के हिस्सा है झारखंड के श्रमिक

दरअसल, देश के बड़े राज्यों में लगे उद्योग धंधे में मुख्य रूप से श्रमिक के रूप में झारखंड के लोग कार्यरत हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली और राजस्थान कुछ ऐसे इलाके हैं जहां बड़ी संख्या में झारखंड के अलग-अलग इलाकों से माइग्रेट कर मजदूर के रूप में यहां के लोग काम करने जाते हैं. इतना ही नहीं यहां की लड़कियां और महिलाएं भी काम की तलाश में दिल्ली और दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में जाती हैं.

क्या कहता है पक्ष और विपक्ष
प्रवासी मजदूरों को लेकर बीजेपी का साफ कहना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सुविधा के अनुसार गोलपोस्ट बदल रहे हैं. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि जब केंद्र सरकार ने मजदूरों को वापस भेजने की घोषणा की तब राज्य सरकार ट्रेन की डिमांड की, सबसे बड़ी बात यह है कि दिल्ली में झारखंड के वरिष्ठ अधिकारी बैठते हैं, वह वहां से गृह मंत्रालय और रेल मंत्रालय से कोऑर्डिनेट कर मजदूरों को वापस ला सकते हैं, हैरत की बात यह है कि जब इस मुद्दे पर बीजेपी के सांसद जयंत सिन्हा ने मुख्यमंत्री से संपर्क करने की कोशिश की तो 6 दिनों तक उनके फोन कॉल का रिस्पांस नहीं मिला, ऐसे में आम आदमी को कितना रिस्पांस मिलेगा यह समझने वाली बात है. उन्होंने कहा कि अभी राजनीति का समय नहीं है, केंद्र और राज्य सरकार को बेहतर समन्वय कर लोगों को वापस लाना चाहिए.

वहीं, झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि केंद्र सरकार कुछ करना नहीं चाहती है, वह मामले को डायवर्ट कर रही है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर हवाई जहाज चलाने के लिए परमिशन मांगी, लेकिन उनकी चिट्ठी दबाकर केंद्र सरकार बैठी हुई है. झारखंड के मजदूर दूसरे राज्यों के उद्योगों की लाइफ लाइन है, यही वजह है कि वहां के उद्योगपति नहीं चाहते हैं कि वह उन श्रमिकों को वापस भेजें.

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