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बिरसा मुंडा की जयंती पर कार्यक्रम, जानिए कौन हैं धरती आबा - उलीहातू गांव

जननायक बिरसा मुंडा की 15 नवंबर को जयंती(birth anniversary of Birsa Munda ) है. 1875 में जन्मे बिरसा मुंडा की 146वीं जयंती पर सोमवार को कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इस दिन को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा था. 15 नवंबर को ही झारखंड का स्थापना दिवस भी मनाया जा रहा है.

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बिरसा मुंडा की जयंती पर कार्यक्रम
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Published : Nov 15, 2021, 12:02 AM IST

रांचीः जननायक बिरसा मुंडा की 15 नवंबर को जयंती (birth anniversary of Birsa Munda )है. झारखंड में आदिवासी इन्हें धरती आबा के नाम से पुकारते हैं. इस वर्ष से इस दिन को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस (Tribal pride day ) के रूप में मनाया जाएगा. भगवान बिरसा मुंडा की 146 वीं जयंती पर देश भर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इसमें से प्रमुख कार्यक्रम सोमवार को भोपाल में आयोजित होगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. यहीं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धरती आबा की याद में रांची में बनाए जा रहे बिरसा मुंडा संग्रहालय और स्मृति पार्क का भी उद्घाटन करेंगे.

ये भी पढ़ें-बिरसा मुंडा की जयंतीः आदिवासी किसान का बेटा ऐसे बना भगवान

शुरुआत से ही नेतृत्वकर्ता थे बिरसा

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को उस वक्त के रांची और वर्तमान के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा था. इनकी शुरूआती-पढ़ाई लिखाई गांव में हुई, इसके बाद वे चाईबासा चले गए जहां इन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की. इस दौरान वे अंग्रेज शासकों की तरफ से अपने समाज पर किए जा रहे जुल्म को लेकर चिंतत थे. आखिरकार उन्होंने अपने समाज की भलाई के लिए लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की ठानी और उनके नेतृत्वकर्ता बन गए. उस दौरान 1894 में छोटानागपुर में भयंकर अकाल और महामारी ने पांव पसारा. उस समय नौजवान बिरसा मुंडा ने पूरे मनोयोग से लोगों की सेवा की.

1894 में फूंका अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल

1894 में इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लगान माफी के लिए आंदोलन की शुरुआत कर दी. 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग जेल में दो साल बंद रहे. इस दौरान 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. अगस्त 1897 में बिरसा और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला. 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेजी सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे. उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे, बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुईं.

पड़ोसी राज्यों में भी पूजनीय हैं बिरसा

फरवरी 1900 में अंगेजी सेनाओं ने चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया. बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस 9 जून 1900 को रांची जेल में ली. झारखंड के अलावा बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है. बिरसा मुंडा की समाधि रांची के कोकर में स्थित है. वहीं रांची के बिरसा चौक समेत राज्य के कई इलाकों में उनकी स्टेच्यू स्थापित की गई है. उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है.

आज ही के दिन हुआ था झारखंड का गठन

झारखंड राज्य का भी गठन 15 नवंबर को ही हुआ था. 2000 में इस राज्य के गठन के बाद से अब 21 साल हो गए हैं. इस दौरान राज्य ने उतार चढ़ाव भरे कई काल देखे हैं. बहरहाल आज ही के दिन धूमधाम से झारखंड राज्य का स्थापना दिवस (foundation day of Jharkhand) भी मनाया जा रहा है.

रांचीः जननायक बिरसा मुंडा की 15 नवंबर को जयंती (birth anniversary of Birsa Munda )है. झारखंड में आदिवासी इन्हें धरती आबा के नाम से पुकारते हैं. इस वर्ष से इस दिन को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस (Tribal pride day ) के रूप में मनाया जाएगा. भगवान बिरसा मुंडा की 146 वीं जयंती पर देश भर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इसमें से प्रमुख कार्यक्रम सोमवार को भोपाल में आयोजित होगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. यहीं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धरती आबा की याद में रांची में बनाए जा रहे बिरसा मुंडा संग्रहालय और स्मृति पार्क का भी उद्घाटन करेंगे.

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शुरुआत से ही नेतृत्वकर्ता थे बिरसा

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को उस वक्त के रांची और वर्तमान के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा था. इनकी शुरूआती-पढ़ाई लिखाई गांव में हुई, इसके बाद वे चाईबासा चले गए जहां इन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की. इस दौरान वे अंग्रेज शासकों की तरफ से अपने समाज पर किए जा रहे जुल्म को लेकर चिंतत थे. आखिरकार उन्होंने अपने समाज की भलाई के लिए लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की ठानी और उनके नेतृत्वकर्ता बन गए. उस दौरान 1894 में छोटानागपुर में भयंकर अकाल और महामारी ने पांव पसारा. उस समय नौजवान बिरसा मुंडा ने पूरे मनोयोग से लोगों की सेवा की.

1894 में फूंका अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल

1894 में इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लगान माफी के लिए आंदोलन की शुरुआत कर दी. 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग जेल में दो साल बंद रहे. इस दौरान 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. अगस्त 1897 में बिरसा और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला. 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेजी सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे. उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे, बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुईं.

पड़ोसी राज्यों में भी पूजनीय हैं बिरसा

फरवरी 1900 में अंगेजी सेनाओं ने चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया. बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस 9 जून 1900 को रांची जेल में ली. झारखंड के अलावा बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है. बिरसा मुंडा की समाधि रांची के कोकर में स्थित है. वहीं रांची के बिरसा चौक समेत राज्य के कई इलाकों में उनकी स्टेच्यू स्थापित की गई है. उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार और बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है.

आज ही के दिन हुआ था झारखंड का गठन

झारखंड राज्य का भी गठन 15 नवंबर को ही हुआ था. 2000 में इस राज्य के गठन के बाद से अब 21 साल हो गए हैं. इस दौरान राज्य ने उतार चढ़ाव भरे कई काल देखे हैं. बहरहाल आज ही के दिन धूमधाम से झारखंड राज्य का स्थापना दिवस (foundation day of Jharkhand) भी मनाया जा रहा है.

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