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बिहार-झारखंड का एकमात्र भागलपुर कछुआ पुर्नवास केंद्र, लुप्तप्राय पर्यावरण रक्षक को कर रहा संरक्षित - First Turtle Rescue Center Of Bihar

कछुआ विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहा है. इसे बचाने के लिए विश्व कछुआ दिवस पर हर साल सजगता दिखायी जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं पूरे बिहार और झारखंड में कछुओं के लिए एकमात्र पुर्नवास केंद्र भागलपुर (Turtle Rehabilitation Center In Bhagalpur) में है जो कछुओं को संरक्षित कर पर्यावरण को सुरक्षित करने का काम कर रहा है.

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Published : May 23, 2022, 7:11 PM IST

भागलपुर: विश्व कछुआ दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको भागलपुर के कछुआ पुनर्वास केंद्र (Bihar Jharkhand only turtle rehabilitation center ) के बारे में बताने जा रहा है. यह केंद्र कई मायनों में खास है. साफ और ताजे पानी में कछुओं को स्वतंत्र होकर विचरण करने की आजादी है. इस केंद्र के वन विभाग के सुंदरवन में बनाया गया है. खास बात ये कि तकनीकी प्रारूप वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा तैयार की गयी है. यहां आपको कई दुर्लभ प्रजाति के कछुओं के साथ ही डॉल्फिन, ऊदबिलाव के साथ ही पक्षी भी देखने को मिल जाएंगे.

कछुआ पालना और तस्करी अपराध: भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कछुआ पालना एवं तस्करी को कानूनी अपराध की श्रेणी में रखा गया है.अगर कोई कछुआ पालता है या इसकी तस्करी करते पकड़ा जाता है तो इसके लिए कठोर कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है. इन सबके बावजूद कछुओं का शिकार किया जाता है. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत शेड्यूल-1 में शेर, बाघ की तरह ही कछुए भी इसी श्रेणी में विलुप्त होने वाली प्रजाति के अंतर्गत आते हैं. इन्हें मारने पर 7 साल तक की सजा का हो सकती है. कछुओं को रेस्क्यू कर बचाने के लिए पूरे बिहार और झारखंड ( Bihar Jharkhand Turtle Rehab Centre In Bhagalpur) का मात्र एक कछुआ पुनर्वास केंद्र (First Turtle Rescue Center Of Bihar) है जहां कछुओं को संरक्षित करने के लिए कई ठोस कदम उठाए जाते हैं. यहीं कारण है कि यहां कई प्रजातियों के कछुए पाए जाते हैं.

वन प्रमंडल पदाधिकारी

दुर्लभ कछुआ का विचरण केंद्र: गंगा के जल की स्वच्छत्ता को बनाये रखने के लिए गंगा एवं अन्य नदियों में कछुआ का रहना अति आवश्यक है इसलिए हमारी जिम्मेदारी भी है कि कछुआ के संरक्षण के लिए आगे आए. कछुआ की तस्करी और कछुआ को पालने की परंपरा को रोकने में सामाजिक दायित्व का निर्वहन करना बेहद जरूरी हो गया है. आपको बता दें भागलपुर गंगा के क्षेत्र में कई किलोमीटर तक दुर्लभ कछुआ का विचरण केंद्र है. कछुओं का यहां पूरा ख्याल रखा जाता है. साथ ही कई और जलीय जीव भी यहां की शोभा बढ़ाते हैं.

कछुओं का किया जाता है रेस्क्यू: कछुओं की बढ़ती तस्करी और विलुप्त हो रही प्रजाति को संरक्षित करने के लिए यह रेस्क्यू सेंटर कारगर साबित हो रहा है. भागलपुर में बनाए गए कछुआ पुनर्वास केंद्र और भागलपुर की गंगा में 60 किलोमीटर तक फैले गंगेटिक डॉल्फिन जोन में कछुओं का खास ख्याल रखा जाता है. सुल्तानगंज उत्तरवाहिनी गंगा से कहलगांव विक्रमशिला (65 किलोमीटर लम्बा और 6 किलोमीटर चौड़ा ) के मध्य की गंगा विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी (Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary) संरक्षित क्षेत्र है. यहां कई प्रकार के जलीय दुर्लभ जीव का वितरण क्षेत्र है. यह इसका आश्रय स्थली है. डॉल्फिन, ऊदबिलाव (Otter), कई प्रजाति के दुर्लभ कछुए, प्रवासी व स्थानीय प्रजाति की पक्षियां यहां रहते हैं.

जारी है तस्करी: तस्करों और आम लोगों के से रेस्क्यू किये गये कछुओं को कछुआ पुर्नवास केंद्र में स्वास्थ्य उपचार करने के बाद गंगा में छोड़ दिया जाता है ताकि धीरे धीरे इनकी संख्या में इज़ाफा हो सके. लेकिन साथ ही साथ भागलपुर और आसपास के गंगा में काफी संख्‍या में अमानवीय तरीके से हूक के माध्यम से शिकार धड़ल्ले से जारी है. कई किलोमीटर तक हजारों की संख्या में हूक लगाए गए हैं. भारी संख्या में कछुआ का बंगाल एवं निकटवर्ती राज्यों में तस्करी भी किया जाता है.

पर्यावरण संरक्षक होता है कछुआ: देशभर में पाए जाने वाले कछुओं की सभी 26 प्रजातियों में 13 प्रजातियां गंगा नदी में विचरण करती हैं. इनकी कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है जिसकी मुख्य वजह भारी मात्रा में कछुओं की तस्करी एवं हम लोगों के द्वारा घरों में कछुआ पालना है. मृत अवस्था में जीव जंतु और अन्य गंदे जलचर का सेवन कर कछुए गंगा एवं नदियों के जलीय पर्यावरण को स्वस्थ रखने का काम करते हैं.

डॉल्फिन और कछुओं का आश्रय स्थली: वन प्रमंडल पदाधिकारी भरत चिंतापल्ली कहते हैं कि अभी तक कछुआ पुनर्वास केंद्र में लगभग 1200 कछुओं को रेस्क्यू कर लाया गया है, जिसमें ज्यादातर कछुए बीमार स्थिति में ही पुनर्वास केंद्र आए थे. लगभग सभी कछुओं को स्वस्थ होने के बाद वेटरनरी डॉक्टर द्वारा बेहतर और स्वस्थ होने की स्थिति में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी (विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी )में छोड़ दिया जाता है. यह पूरे विश्व में एकमात्र सेंचुरी है जहां पर डॉल्फिन और कछुआ भारी संख्या में आश्रय स्थली बनाए हुए हैं.

"पिछले साल से अबतक बारह सौ कछुओं का रेस्क्यू किया गया है. कछुओं का इलाज कर हम वापस गंगा में छोड़ देते हैं. दस कछुओं का इलाज चल रहा है. 6 प्रजाति से ज्यादा कछुएं यहां पाए जाते हैं. यहां अनेक प्रकार के जलीय जीव पाए जाते हैं. यह पुनर्वास केंद्र अति महत्वपूर्ण है."- भरत चिंतापल्ली, वन प्रमंडल पदाधिकारी

1200 कछुओं को मिला संरक्षण और बचाव
जिले के सुंदरवन में बनाए गए कछुआ संरक्षण केंद्र में अभी तक कुल 1200 कछुओं को रेस्क्यू कर बचाया गया है. इनमें ऐसे कछुए शामिल हैं, जिसे लोग अपने घरों के एक्वेरियम में सजाकर रखते थे. रेस्क्यू किए गए इन कछुओं को ट्रेन से तस्करी कर बाहर ले जाया जा रहा था. लेकिन सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम ने सभी कछुओं को बरामद कर स्वास्थ्य परीक्षण के बाद टर्टल रेस्क्यू सेंटर ले गए. इसमें ऐसे कछुए हैं, जो ठंड के मौसम में मिट्टी में चले जाते हैं और इन्हें पानी की कोई जरूरत नहीं होती. ऐसे कछुओं की प्रजाति को लिसेमिस पेंक्टेटा कहते हैं. कछुए की एक प्रजाति को पेंगसुरा टेक्टा कहते हैं जो ठंड में भी पानी में विचरण करते हैं और धूप सेंकने के लिए बाहर आ जाते हैं.

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भागलपुर: विश्व कछुआ दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको भागलपुर के कछुआ पुनर्वास केंद्र (Bihar Jharkhand only turtle rehabilitation center ) के बारे में बताने जा रहा है. यह केंद्र कई मायनों में खास है. साफ और ताजे पानी में कछुओं को स्वतंत्र होकर विचरण करने की आजादी है. इस केंद्र के वन विभाग के सुंदरवन में बनाया गया है. खास बात ये कि तकनीकी प्रारूप वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा तैयार की गयी है. यहां आपको कई दुर्लभ प्रजाति के कछुओं के साथ ही डॉल्फिन, ऊदबिलाव के साथ ही पक्षी भी देखने को मिल जाएंगे.

कछुआ पालना और तस्करी अपराध: भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कछुआ पालना एवं तस्करी को कानूनी अपराध की श्रेणी में रखा गया है.अगर कोई कछुआ पालता है या इसकी तस्करी करते पकड़ा जाता है तो इसके लिए कठोर कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है. इन सबके बावजूद कछुओं का शिकार किया जाता है. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत शेड्यूल-1 में शेर, बाघ की तरह ही कछुए भी इसी श्रेणी में विलुप्त होने वाली प्रजाति के अंतर्गत आते हैं. इन्हें मारने पर 7 साल तक की सजा का हो सकती है. कछुओं को रेस्क्यू कर बचाने के लिए पूरे बिहार और झारखंड ( Bihar Jharkhand Turtle Rehab Centre In Bhagalpur) का मात्र एक कछुआ पुनर्वास केंद्र (First Turtle Rescue Center Of Bihar) है जहां कछुओं को संरक्षित करने के लिए कई ठोस कदम उठाए जाते हैं. यहीं कारण है कि यहां कई प्रजातियों के कछुए पाए जाते हैं.

वन प्रमंडल पदाधिकारी

दुर्लभ कछुआ का विचरण केंद्र: गंगा के जल की स्वच्छत्ता को बनाये रखने के लिए गंगा एवं अन्य नदियों में कछुआ का रहना अति आवश्यक है इसलिए हमारी जिम्मेदारी भी है कि कछुआ के संरक्षण के लिए आगे आए. कछुआ की तस्करी और कछुआ को पालने की परंपरा को रोकने में सामाजिक दायित्व का निर्वहन करना बेहद जरूरी हो गया है. आपको बता दें भागलपुर गंगा के क्षेत्र में कई किलोमीटर तक दुर्लभ कछुआ का विचरण केंद्र है. कछुओं का यहां पूरा ख्याल रखा जाता है. साथ ही कई और जलीय जीव भी यहां की शोभा बढ़ाते हैं.

कछुओं का किया जाता है रेस्क्यू: कछुओं की बढ़ती तस्करी और विलुप्त हो रही प्रजाति को संरक्षित करने के लिए यह रेस्क्यू सेंटर कारगर साबित हो रहा है. भागलपुर में बनाए गए कछुआ पुनर्वास केंद्र और भागलपुर की गंगा में 60 किलोमीटर तक फैले गंगेटिक डॉल्फिन जोन में कछुओं का खास ख्याल रखा जाता है. सुल्तानगंज उत्तरवाहिनी गंगा से कहलगांव विक्रमशिला (65 किलोमीटर लम्बा और 6 किलोमीटर चौड़ा ) के मध्य की गंगा विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी (Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary) संरक्षित क्षेत्र है. यहां कई प्रकार के जलीय दुर्लभ जीव का वितरण क्षेत्र है. यह इसका आश्रय स्थली है. डॉल्फिन, ऊदबिलाव (Otter), कई प्रजाति के दुर्लभ कछुए, प्रवासी व स्थानीय प्रजाति की पक्षियां यहां रहते हैं.

जारी है तस्करी: तस्करों और आम लोगों के से रेस्क्यू किये गये कछुओं को कछुआ पुर्नवास केंद्र में स्वास्थ्य उपचार करने के बाद गंगा में छोड़ दिया जाता है ताकि धीरे धीरे इनकी संख्या में इज़ाफा हो सके. लेकिन साथ ही साथ भागलपुर और आसपास के गंगा में काफी संख्‍या में अमानवीय तरीके से हूक के माध्यम से शिकार धड़ल्ले से जारी है. कई किलोमीटर तक हजारों की संख्या में हूक लगाए गए हैं. भारी संख्या में कछुआ का बंगाल एवं निकटवर्ती राज्यों में तस्करी भी किया जाता है.

पर्यावरण संरक्षक होता है कछुआ: देशभर में पाए जाने वाले कछुओं की सभी 26 प्रजातियों में 13 प्रजातियां गंगा नदी में विचरण करती हैं. इनकी कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है जिसकी मुख्य वजह भारी मात्रा में कछुओं की तस्करी एवं हम लोगों के द्वारा घरों में कछुआ पालना है. मृत अवस्था में जीव जंतु और अन्य गंदे जलचर का सेवन कर कछुए गंगा एवं नदियों के जलीय पर्यावरण को स्वस्थ रखने का काम करते हैं.

डॉल्फिन और कछुओं का आश्रय स्थली: वन प्रमंडल पदाधिकारी भरत चिंतापल्ली कहते हैं कि अभी तक कछुआ पुनर्वास केंद्र में लगभग 1200 कछुओं को रेस्क्यू कर लाया गया है, जिसमें ज्यादातर कछुए बीमार स्थिति में ही पुनर्वास केंद्र आए थे. लगभग सभी कछुओं को स्वस्थ होने के बाद वेटरनरी डॉक्टर द्वारा बेहतर और स्वस्थ होने की स्थिति में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी (विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी )में छोड़ दिया जाता है. यह पूरे विश्व में एकमात्र सेंचुरी है जहां पर डॉल्फिन और कछुआ भारी संख्या में आश्रय स्थली बनाए हुए हैं.

"पिछले साल से अबतक बारह सौ कछुओं का रेस्क्यू किया गया है. कछुओं का इलाज कर हम वापस गंगा में छोड़ देते हैं. दस कछुओं का इलाज चल रहा है. 6 प्रजाति से ज्यादा कछुएं यहां पाए जाते हैं. यहां अनेक प्रकार के जलीय जीव पाए जाते हैं. यह पुनर्वास केंद्र अति महत्वपूर्ण है."- भरत चिंतापल्ली, वन प्रमंडल पदाधिकारी

1200 कछुओं को मिला संरक्षण और बचाव
जिले के सुंदरवन में बनाए गए कछुआ संरक्षण केंद्र में अभी तक कुल 1200 कछुओं को रेस्क्यू कर बचाया गया है. इनमें ऐसे कछुए शामिल हैं, जिसे लोग अपने घरों के एक्वेरियम में सजाकर रखते थे. रेस्क्यू किए गए इन कछुओं को ट्रेन से तस्करी कर बाहर ले जाया जा रहा था. लेकिन सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम ने सभी कछुओं को बरामद कर स्वास्थ्य परीक्षण के बाद टर्टल रेस्क्यू सेंटर ले गए. इसमें ऐसे कछुए हैं, जो ठंड के मौसम में मिट्टी में चले जाते हैं और इन्हें पानी की कोई जरूरत नहीं होती. ऐसे कछुओं की प्रजाति को लिसेमिस पेंक्टेटा कहते हैं. कछुए की एक प्रजाति को पेंगसुरा टेक्टा कहते हैं जो ठंड में भी पानी में विचरण करते हैं और धूप सेंकने के लिए बाहर आ जाते हैं.

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