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Kali Puja 2022: रांची में काली पूजा को लेकर बंगाली समाज की तैयारी, जानिए क्या है महत्व

कार्तिक महीने की अमावस्या में दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. लेकिन बंगाली समाज में मां काली की पूजा का काफी महत्व है. रांची में काली पूजा में बंगाली समाज की तैयारी भी खास तरह से की जा रही (Kali Puja of Bengali Society In Ranchi) है. कोरोना काल के बाद इसको लेकर लोगों में काफी उत्साह है.

Bengali society Preparation for Kali Puja in Ranchi
रांची
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Published : Oct 23, 2022, 12:22 PM IST

रांची: सोमवर को पूरे देश दिवाली मनाई जाएगी. कार्तिक अमावस्या लोग दीपावली मनाते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, असम, झारखंड के इलाकों में इस दिन को मां काली की पूजा धूमधाम से की जाती है. बंगाली परंपरा में दीपावली को काली पूजा ही कह कर संबोधित भी किया जाता (Kali Puja of Bengali Society In Ranchi) है. दीपावली की मध्यरात्रि को लोग मां काली की आराधना करते हैं. राजधानी के विभिन्न मंदिरों में काली पूजा की तैयारी जोर शोर से की जा रही है.

इसे भी पढ़ें- हाई अलर्ट पर रांची की सुरक्षा व्यवस्था, चप्पे चप्पे पर पुलिस की पैनी नजर



राजधानी के प्रसिद्ध मंदिर मेन रोड स्थित काली मंदिर के पुजारी बताते हैं कि सनातन धर्म में काली पूजा की बहुत ही महत्व है. खासकर कर इस मंदिर में काली पूजा के दिन राजधानी के सभी इलाकों से लोग इस मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं. हिंदू धर्म में मान्यता के अनुसार काली पूजा के दिन ही मां काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं. उन्होंने रक्तबीज सहित कई असुरों का संहार किया था. इसलिए बंगाली समुदाय के लोग इस पूजा को शक्ति पूजा के रूप में भी मानते हैं. ऐसा माना जाता है कि आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने पर मनुष्य के जीवन के संकट, दुख और पीड़ा समाप्त हो जाती हैं. शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आने लगती है. इस वर्ष काली माता के मंदिरों में 24 अक्टूबर की रात को काली पूजा की जाएगी जो सुबह 3 बजे तक चलेगी.

देखें पूरी खबर

कॉसमॉस क्लब काली पूजा समिति के वरिष्ठ सदस्य देवाशीष रॉय कहते हैं कि बंगाली समुदाय में काली पूजा का एक विशेष महत्व है. लालपुर स्थित कॉसमॉस पूजा समिति में ज्यादातर बंगाली समाज के लोग अपना योगदान देते हैं. इस वर्ष भी बंगाली समाज की तरफ से पंडाल बनाया गया है. कोरोना काल के बाद लोगों को मौका मिला है कि वो खुलकर काली पूजा मना सकें. इसीलिए इस वर्ष का काली पूजा के मौके पर बंगाली समाज की तरफ से विभिन्न तरह के कार्यक्रम भी कराए जा रहे हैं. जिसमें कोलकाता से कलाकार को भी बुलाया जाएंगे.

स्थानीय चंचल चटर्जी बताते हैं बंगालियों के लिए काली पूजा बहुत ही महत्त्व रखता है. मां काली की पूजा के लिए इस वर्ष रांची के कोकर, डोरंडा, लालपुर, वर्धमान कंपाउंड में भव्य तरीके से पंडाल बनाकर मूर्ति की पूजन की जा रही है. उन्होंने बताया कि बंगाली समुदाय ने ही झारखंड में काली पूजा की शुरुआत की थी और उसके बाद अन्य समुदाय इसे आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं कॉसमॉस काली पूजा समिति के सदस्य बताते हैं कि बंगालियों की पूजा और आम समुदाय के काली पूजा के विधि में भी थोड़ा अंतर होता है.


काली पूजा को लेकर उत्साहित मेघा और सास्वती बनर्जी बताती हैं कि राजधानी रांची में काली पूजा बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है. काली पूजा के दिन बंगाली समाज की महिलाओं परंपरागत परिधान में पहनते हैं. इसके अलावा मां काली की पूजा विधि विधान के साथ करते हैं. वहीं बंगाली समुदाय की महिलाएं बताती हैं कि इस वर्ष रांची में रह रहे बंगालियों के द्वारा बनाए गए काली पूजा पंडाल लोगों को खूब आकर्षित करेगी.

रांची: सोमवर को पूरे देश दिवाली मनाई जाएगी. कार्तिक अमावस्या लोग दीपावली मनाते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, असम, झारखंड के इलाकों में इस दिन को मां काली की पूजा धूमधाम से की जाती है. बंगाली परंपरा में दीपावली को काली पूजा ही कह कर संबोधित भी किया जाता (Kali Puja of Bengali Society In Ranchi) है. दीपावली की मध्यरात्रि को लोग मां काली की आराधना करते हैं. राजधानी के विभिन्न मंदिरों में काली पूजा की तैयारी जोर शोर से की जा रही है.

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राजधानी के प्रसिद्ध मंदिर मेन रोड स्थित काली मंदिर के पुजारी बताते हैं कि सनातन धर्म में काली पूजा की बहुत ही महत्व है. खासकर कर इस मंदिर में काली पूजा के दिन राजधानी के सभी इलाकों से लोग इस मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं. हिंदू धर्म में मान्यता के अनुसार काली पूजा के दिन ही मां काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं. उन्होंने रक्तबीज सहित कई असुरों का संहार किया था. इसलिए बंगाली समुदाय के लोग इस पूजा को शक्ति पूजा के रूप में भी मानते हैं. ऐसा माना जाता है कि आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने पर मनुष्य के जीवन के संकट, दुख और पीड़ा समाप्त हो जाती हैं. शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आने लगती है. इस वर्ष काली माता के मंदिरों में 24 अक्टूबर की रात को काली पूजा की जाएगी जो सुबह 3 बजे तक चलेगी.

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कॉसमॉस क्लब काली पूजा समिति के वरिष्ठ सदस्य देवाशीष रॉय कहते हैं कि बंगाली समुदाय में काली पूजा का एक विशेष महत्व है. लालपुर स्थित कॉसमॉस पूजा समिति में ज्यादातर बंगाली समाज के लोग अपना योगदान देते हैं. इस वर्ष भी बंगाली समाज की तरफ से पंडाल बनाया गया है. कोरोना काल के बाद लोगों को मौका मिला है कि वो खुलकर काली पूजा मना सकें. इसीलिए इस वर्ष का काली पूजा के मौके पर बंगाली समाज की तरफ से विभिन्न तरह के कार्यक्रम भी कराए जा रहे हैं. जिसमें कोलकाता से कलाकार को भी बुलाया जाएंगे.

स्थानीय चंचल चटर्जी बताते हैं बंगालियों के लिए काली पूजा बहुत ही महत्त्व रखता है. मां काली की पूजा के लिए इस वर्ष रांची के कोकर, डोरंडा, लालपुर, वर्धमान कंपाउंड में भव्य तरीके से पंडाल बनाकर मूर्ति की पूजन की जा रही है. उन्होंने बताया कि बंगाली समुदाय ने ही झारखंड में काली पूजा की शुरुआत की थी और उसके बाद अन्य समुदाय इसे आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं कॉसमॉस काली पूजा समिति के सदस्य बताते हैं कि बंगालियों की पूजा और आम समुदाय के काली पूजा के विधि में भी थोड़ा अंतर होता है.


काली पूजा को लेकर उत्साहित मेघा और सास्वती बनर्जी बताती हैं कि राजधानी रांची में काली पूजा बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है. काली पूजा के दिन बंगाली समाज की महिलाओं परंपरागत परिधान में पहनते हैं. इसके अलावा मां काली की पूजा विधि विधान के साथ करते हैं. वहीं बंगाली समुदाय की महिलाएं बताती हैं कि इस वर्ष रांची में रह रहे बंगालियों के द्वारा बनाए गए काली पूजा पंडाल लोगों को खूब आकर्षित करेगी.

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