रांचीः कहा जाता है रक्तदान महादान, करके देखिए अच्छा लगता है. राजधानी रांची में कई ऐसे शख्स हैं जो रक्तदान कर लोगों की जान बचा रहे हैं और उनकी मदद कर रहे हैं. ऐसे ही एक शख्स हैं अतुल गेरा. जो अब तक करीब 90 बार रक्तदान कर चुके हैं और आगे भी रक्तदान करने के लिए उत्सुक हैं. विश्व रक्तदाता दिवस के मौके पर ऐसे रक्त वीरों कि पूरे देश में चर्चा हो रही है ताकि लोग रक्तदान के प्रति जागरूक हो सके.
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समाजसेवी अतुल गेरा बताते हैं आज से कई वर्ष पहले के एक परिजन को रक्त की आवश्यकता हुई तो उस वक्त अस्पताल से ब्लड लेने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद उन्होंने अपना रक्त देकर अपने परिजन का जान बचाया. उसी वक्त उन्होंने यह प्रण लिया कि समाज में जरूरतमंदों के लिए रक्त संग्रहित करने का वह पुण्य काम करेंगे. वो बताते हैं कि वह बचपन से ही रांची शहर में रह रहे हैं और उनका पूरा परिवार रांची में रहता है. इसीलिए वह अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर रक्तदान शिविर की शुरुआत की है जो धीरे-धीरे वृहद स्तर पर काम करने लगा और आज की तारीख में अतुल गेरा और उनकी टीम ने हजारों यूनिट रक्तदान कर ब्लड बैंक में उसको संग्रहित किया है जो लाखों लोगों की जान बचाने में मददगार हो रहे हैं.
अतुल गेरा बताते हैं कि झारखंड में सैकड़ों ऐसे बच्चे हैं जो थैलेसीमिया और सिकल एनीमिया जैसी बीमारी से ग्रसित हैं. जिन्हें महीने में एक बार या दो बार रक्त की आवश्यकता होती है, वैसे बच्चों को अगर समय पर रक्त नहीं मिलता है तो कई बार उनकी मौत भी हो जाती है. वैसे बच्चों की जिंदगी को बचाने के लिए अतुल गेरा लगातार रक्तदान शिविर का आयोजन करते हैं और उससे जमा किए गए ब्लड को सदर अस्पताल के डे केयर में उपलब्ध कराते हैं ताकि प्रत्येक बच्चे को समय पर रक्त मिले और उन्हें ब्लड के लिए भटकना ना पड़े.
अतुल गेरा के साथ काम कर रहे अंकित जैन व रवि दत्त बताते हैं कि रक्तदान करने से कई तरह के लाभ हैं. लेकिन आज भी लोग भ्रम में जी रहे हैं और रक्तदान करने से परहेज करते हैं. उन्होंने अपील करते हुए कहा कि रक्तदान समय-समय पर करते रहना चाहिए इससे जरूरतमंदों को समय पर रक्त मिलता है और रक्तदाता के स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचता है. अतुल गेरा के इस प्रयास से थैलेसीमिया से ग्रसित एक बच्ची की मां बताती है कि समय पर ब्लड मिलना ही बहुत बड़ी बात होती है, क्योंकि समय पर खून ना मिलने से थैलेसीमिया के बच्चे मौत भी हो सकती है.
थैलेसीमिया और सिकल एनीमिया जैसी बीमारी को लेकर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मृत्युंजय बताते हैं कि इस बीमारी में बच्चों के शरीर में खून बनना बंद हो जाता है, जिस वजह से कई बार बच्चों की मौत हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक 21 दिन पर बच्चे को जांच कराया जाए और उन्हें समय रहते ब्लड मुहैया करा दी जाए.
इसको लेकर रांची के सिविल सर्जन डॉक्टर विनोद प्रसाद बताते हैं कि अतुल गेरा की संस्था की मदद से थैलेसीमिया के बच्चे को समय पर ब्लड मिलता है. क्योंकि वो पूरे राज्य के थैलेसीमिया और सिकल एनीमिया के बच्चे को चिन्हित करते हैं. साथ ही समय-समय पर उनके परिजनों और अभिभावकों से बात कर उन्हें ब्लड मुहैया कराते हैं. उनका यह प्रयास निश्चित रूप से बेहतर और सराहनीय है.