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बिना जमीन और जनाधार बनाए कैसे पूरी होगी कांग्रेस की राह - झारखंड न्यूज

पांच राज्यों में हुए विधानसभा के चुनाव और आए चुनाव परिणाम के बाद की राजनीति में कांग्रेस एक बार फिर मंथन करने में जुट गई है कि कांग्रेस की पूरी कहानी बनेगी कैसे. झारखंड में कांग्रेस के भीतर चल रहे भितरघात का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले झारखंड कांग्रेस के प्रभारी रहे आरपीएन सिंह पाला बदलकर बीजेपी के साथ चले गए. उसके बाद जो कुछ झारखंड की राजनीति में हुआ उस में चल रही सरकार के साथ रहा कैसे जाए और पार्टी के लिए जमीन और जनाधार मजबूत किया कैसे जाए यह बड़ा सवाल था, जो पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद ज्यादा पूरा तो नहीं हुआ, लेकिन कांग्रेस की पूरी कहानी ही अधूरी छोड़ दी .

Analysis of Congress Position in Jharkhand Politics
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Published : Mar 26, 2022, 10:24 PM IST

Updated : Mar 27, 2022, 6:12 AM IST

रांची: कांग्रेस के नेताओं को इस बात का भरोसा था कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में जिस तरीके से प्रियंका गांधी मुखर होकर मैदान में हैं, वह नए कांग्रेस को दिशा देगा. नारा ही बेहतरीन. कहा गया था उत्तर प्रदेश जीतने के लिए प्रियंका गांधी लड़की हूं तो लड़ लूंगी, आधी आबादी के उस व्यवसाय, व्यवस्था और जरूरत से जुड़ा था जिसमें इमोशन भी था ड्रामा भी था. लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो पूरी कांग्रेस ही उत्तर प्रदेश में कोमा में चली गई.

ये भी पढ़ें- हेमंत से गुरुजी नाराज! सियासी सफर में अपनों के बगावती सुर

अब लोग तो उत्तर प्रदेश की कोई नीति न उत्तर प्रदेश का कोई दावा, ना ही उत्तर प्रदेश का कोई वादा किसी राज्य में कहा जा सकता है, बताया जा सकता है और ना ही उसे मॉडल बनाया जा सकता है. कमोबेश यही स्थिति पंजाब की भी रही क्योंकि परिवर्तन के जिस दौर से कांग्रेस पंजाब में गुजरी उसमें पंजाब की जनता ने उसे सत्ता से उतारकर किनारे कर दिया और सबसे बड़ी बात यह है कि पंजाब में जो भी कांग्रेस के दिग्गज थे, सब की लुटिया डूब गई. अब डूबती जहाज पर सफर किया कैसे जाए यह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सवाल है. क्योंकि पूर्वी भारत में और खासतौर से हिंदी पट्टी में कांग्रेस के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा का ही एक गठजोड़ चल रहा है जो सरकार के साथ कम से कम पूरी कहानी बता रहा है. बाकी जगहों पर कांग्रेस की हर कहानी अधूरी ही रह जा रही है.

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लिए एक मजबूत रणनीति तैयार की थी लेकिन बदलते राजनीतिक समय और हालात ने कांग्रेस को बदलने के लिए मजबूर कर दिया. बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद 2 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से एक सीट कांग्रेस की थी जिसपर कांग्रेस फिर से चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन तेजस्वी वाली राष्ट्रीय जनता दल ने उसके लिए उन्हें सीट नहीं दी और यहां से राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच बिहार में बगावत का खेल शुरू हो गया. एमएलसी का चुनाव आते-आते यह बहुत आगे बढ़ गया और जब से बिहार की सत्ता कांग्रेस के हाथ से गई है, कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल के पीछे ही बैठकर सियासत करती रही है और यह सिर्फ बिहार की नहीं संयुक्त बिहार झारखंड की राजनीति में रहा है. वर्ष 2000 में झारखंड के बंटवारे के बाद सियासत ने दूसरी परिपाटी झारखंड की राजनीति के साथ जरूर शुरू की, लेकिन कांग्रेस की राजनीति में बहुत कुछ बदलाव नहीं आ पाया और क्षेत्रीय दलों के पीछे बैठना उसकी मजबूरी रह गई.

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2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव को अगर कांग्रेस के जीत या हार के नजरिए से देखा जाए तो कांग्रेस की जो कहानी अभी तक अधूरी है उसे पूरा करने के लिए प्रियंका गांधी ने आगाज तो कर दिया है. उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन और जनाधार को मजबूत करने के लिए और अपने बूते सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए प्रियंका गांधी ने जिस तरीके से दमखम बानाया और खुल करके उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपने बूते पर ही चुनाव लड़ना चाहिए और अपने बूते ही पार्टी को खड़ा करना चाहिए. यह बिहार और झारखंड के लिए भी एक संदेश है कि आने वाले समय में पार्टी अकेले ही चुनाव में जा सकती है. यह तो राजनीति में संभावनाओं की बात है, गुणा गणित है, जोड़ घटाव है, क्योंकि अस्थाई तौर पर दोस्ती और दुश्मनी का कोई फॉर्मूला राजनीति में होता नहीं है, इसमें जरूरत राजनीति में दोस्ती होती है और दोस्ती वाली राजनीति सियासत में चलती है.

झारखंड में कांग्रेस और हेमंत की सरकार चल रही है. पूर्ण बहुमत की सरकार है और झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए हेमंत सरकार की तरफ से नीतियां भी मजबूत है. पार्टी के तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड में मजबूती से काम भी कर रही है, लेकिन बात कांग्रेस की करें तो झारखंड में कांग्रेस का सियासी सफर अधूरी राजनीति का खाली पैमाना लिए बैठा है, क्योंकि इनके नेता लगातार कांग्रेस पार्टी के कमजोर होने और सबसे बड़ी बात यह है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा ही कांग्रेस को कमजोर करने का आरोप लगाते रहे हैं. बात दीपिका सिंह पांडे की हो या फिर इरफान अंसारी के बगावती बोल, यह बताते हैं कि हेमंत सोरेन के साथ चल रही कांग्रेस और उसका गठबंधन उन नेताओं को चुभता जरूर है, जिनके जिम्में झारखंड में कांग्रेस की जमीन और जनाधार को खड़ा करने की जिम्मेदारी है.

ये भी पढ़ें- वीपी सिंह, मुफ्ती मोहम्मद सईद के दबाव के कारण छोड़े गए थे पांच आतंकी : आरिफ मोहम्मद खान

सबसे बड़ा मामला जो हाल के दिनों में रहा है और सियासत में काफी चर्चा में भी रहा वो बन्ना गुप्ता का रहा है. जिन्होंने खुलकर के हेमंत सोरेन की मुखालफत की. राहुल गांधी से मुलाकात के समय में भी बन्ना गुप्ता ने साफ कह दिया था कि हमारा राजनीतिक आधार जमीन और जनाधार सब झारखंड मुक्ति मोर्चा उड़ रहा है, लेकिन राजनीति के खिलाड़ी हेमंत सोरेन ने भी अपने तरीके से चाल चली और बन्ना गुप्ता फिलहाल चुप हैं. लेकिन कांग्रेस के लिए बोलने वाली कहानी शुरू करनी पड़ेगी, नहीं तो झारखंड में कांग्रेस की जो भी राह है वह आधे डगर से ही लौट जाएगी. इस कहानी को पूरा करने के लिए जमीन और जनाधार पर काम तो करना पड़ेगा.

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने अब यह तय कर दिया है कि जिन राज्यों में चुनाव होने हैं और उन्हें जो भी वक्त बचा है उसके लिए कांग्रेस को तैयारी फिर से मजबूती से करनी पड़ेगी. पंजाब हाथ से चला गया, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बहुत कुछ कर नहीं पाई, बिहार में गठबंधन राजद के साथ हिचकोले खा रहा है, सिर्फ झारखंड है जहां सरकार चल रही है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ कांग्रेस का गठबंधन है लेकिन सियासत में जिस जरूरत को कांग्रेस चाहती है, वह झारखंड में पूरा नहीं हो रहा है और यही कांग्रेस की पूरी सियासत की अधूरी कहानी है, जिसे पूरा करने के लिए पूरी दूरी तय करनी पड़ेगी नहीं तो झारखंड में भी कांग्रेस की राह अधूरी ही रह जाएगी.

रांची: कांग्रेस के नेताओं को इस बात का भरोसा था कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में जिस तरीके से प्रियंका गांधी मुखर होकर मैदान में हैं, वह नए कांग्रेस को दिशा देगा. नारा ही बेहतरीन. कहा गया था उत्तर प्रदेश जीतने के लिए प्रियंका गांधी लड़की हूं तो लड़ लूंगी, आधी आबादी के उस व्यवसाय, व्यवस्था और जरूरत से जुड़ा था जिसमें इमोशन भी था ड्रामा भी था. लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो पूरी कांग्रेस ही उत्तर प्रदेश में कोमा में चली गई.

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अब लोग तो उत्तर प्रदेश की कोई नीति न उत्तर प्रदेश का कोई दावा, ना ही उत्तर प्रदेश का कोई वादा किसी राज्य में कहा जा सकता है, बताया जा सकता है और ना ही उसे मॉडल बनाया जा सकता है. कमोबेश यही स्थिति पंजाब की भी रही क्योंकि परिवर्तन के जिस दौर से कांग्रेस पंजाब में गुजरी उसमें पंजाब की जनता ने उसे सत्ता से उतारकर किनारे कर दिया और सबसे बड़ी बात यह है कि पंजाब में जो भी कांग्रेस के दिग्गज थे, सब की लुटिया डूब गई. अब डूबती जहाज पर सफर किया कैसे जाए यह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सवाल है. क्योंकि पूर्वी भारत में और खासतौर से हिंदी पट्टी में कांग्रेस के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा का ही एक गठजोड़ चल रहा है जो सरकार के साथ कम से कम पूरी कहानी बता रहा है. बाकी जगहों पर कांग्रेस की हर कहानी अधूरी ही रह जा रही है.

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लिए एक मजबूत रणनीति तैयार की थी लेकिन बदलते राजनीतिक समय और हालात ने कांग्रेस को बदलने के लिए मजबूर कर दिया. बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद 2 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से एक सीट कांग्रेस की थी जिसपर कांग्रेस फिर से चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन तेजस्वी वाली राष्ट्रीय जनता दल ने उसके लिए उन्हें सीट नहीं दी और यहां से राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच बिहार में बगावत का खेल शुरू हो गया. एमएलसी का चुनाव आते-आते यह बहुत आगे बढ़ गया और जब से बिहार की सत्ता कांग्रेस के हाथ से गई है, कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल के पीछे ही बैठकर सियासत करती रही है और यह सिर्फ बिहार की नहीं संयुक्त बिहार झारखंड की राजनीति में रहा है. वर्ष 2000 में झारखंड के बंटवारे के बाद सियासत ने दूसरी परिपाटी झारखंड की राजनीति के साथ जरूर शुरू की, लेकिन कांग्रेस की राजनीति में बहुत कुछ बदलाव नहीं आ पाया और क्षेत्रीय दलों के पीछे बैठना उसकी मजबूरी रह गई.

ये भी पढ़ें- जीत के जश्न वाले मंच पर 'हार' वाला मन! CM योगी के शपथ ग्रहण में नीतीश की मौजूदगी के मायने समझिए

2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव को अगर कांग्रेस के जीत या हार के नजरिए से देखा जाए तो कांग्रेस की जो कहानी अभी तक अधूरी है उसे पूरा करने के लिए प्रियंका गांधी ने आगाज तो कर दिया है. उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन और जनाधार को मजबूत करने के लिए और अपने बूते सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए प्रियंका गांधी ने जिस तरीके से दमखम बानाया और खुल करके उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपने बूते पर ही चुनाव लड़ना चाहिए और अपने बूते ही पार्टी को खड़ा करना चाहिए. यह बिहार और झारखंड के लिए भी एक संदेश है कि आने वाले समय में पार्टी अकेले ही चुनाव में जा सकती है. यह तो राजनीति में संभावनाओं की बात है, गुणा गणित है, जोड़ घटाव है, क्योंकि अस्थाई तौर पर दोस्ती और दुश्मनी का कोई फॉर्मूला राजनीति में होता नहीं है, इसमें जरूरत राजनीति में दोस्ती होती है और दोस्ती वाली राजनीति सियासत में चलती है.

झारखंड में कांग्रेस और हेमंत की सरकार चल रही है. पूर्ण बहुमत की सरकार है और झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए हेमंत सरकार की तरफ से नीतियां भी मजबूत है. पार्टी के तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड में मजबूती से काम भी कर रही है, लेकिन बात कांग्रेस की करें तो झारखंड में कांग्रेस का सियासी सफर अधूरी राजनीति का खाली पैमाना लिए बैठा है, क्योंकि इनके नेता लगातार कांग्रेस पार्टी के कमजोर होने और सबसे बड़ी बात यह है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा ही कांग्रेस को कमजोर करने का आरोप लगाते रहे हैं. बात दीपिका सिंह पांडे की हो या फिर इरफान अंसारी के बगावती बोल, यह बताते हैं कि हेमंत सोरेन के साथ चल रही कांग्रेस और उसका गठबंधन उन नेताओं को चुभता जरूर है, जिनके जिम्में झारखंड में कांग्रेस की जमीन और जनाधार को खड़ा करने की जिम्मेदारी है.

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सबसे बड़ा मामला जो हाल के दिनों में रहा है और सियासत में काफी चर्चा में भी रहा वो बन्ना गुप्ता का रहा है. जिन्होंने खुलकर के हेमंत सोरेन की मुखालफत की. राहुल गांधी से मुलाकात के समय में भी बन्ना गुप्ता ने साफ कह दिया था कि हमारा राजनीतिक आधार जमीन और जनाधार सब झारखंड मुक्ति मोर्चा उड़ रहा है, लेकिन राजनीति के खिलाड़ी हेमंत सोरेन ने भी अपने तरीके से चाल चली और बन्ना गुप्ता फिलहाल चुप हैं. लेकिन कांग्रेस के लिए बोलने वाली कहानी शुरू करनी पड़ेगी, नहीं तो झारखंड में कांग्रेस की जो भी राह है वह आधे डगर से ही लौट जाएगी. इस कहानी को पूरा करने के लिए जमीन और जनाधार पर काम तो करना पड़ेगा.

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने अब यह तय कर दिया है कि जिन राज्यों में चुनाव होने हैं और उन्हें जो भी वक्त बचा है उसके लिए कांग्रेस को तैयारी फिर से मजबूती से करनी पड़ेगी. पंजाब हाथ से चला गया, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बहुत कुछ कर नहीं पाई, बिहार में गठबंधन राजद के साथ हिचकोले खा रहा है, सिर्फ झारखंड है जहां सरकार चल रही है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ कांग्रेस का गठबंधन है लेकिन सियासत में जिस जरूरत को कांग्रेस चाहती है, वह झारखंड में पूरा नहीं हो रहा है और यही कांग्रेस की पूरी सियासत की अधूरी कहानी है, जिसे पूरा करने के लिए पूरी दूरी तय करनी पड़ेगी नहीं तो झारखंड में भी कांग्रेस की राह अधूरी ही रह जाएगी.

Last Updated : Mar 27, 2022, 6:12 AM IST
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