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लोहरदगा के इस गांव के लोगों की समस्या पहाड़ों जैसी, आदिम युग में जीने को मजबूर - BASIC FACILITIES IN CHAPAL VILLAGE

लोहरदगा जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर दूर चपाल गांव में अब तक कोई सरकारी सुविधा नहीं पहुंची है. लोग आदिम काल में जीते हैं.

BASIC FACILITIES IN CHAPAL VILLAGE
पीने का पानी घर लेकर जाती आदिम समाज के लोग (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 4 hours ago

लोहरदगा: जिले के जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले लोगों की जिंदगी काफी दयनीय है. इलाके में ना पीने के लिए पानी है, ना सड़क, ना राशन कार्ड है और ना ही अन्य बुनियादी सुविधाएं. उनकी इस कठिन जिंदगी को समझने के लिए, उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कोई नहीं जाता. लोहरदगा के पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाली आदिम जनजाति परिवारों की हालत भी काफी खराब है. सूचना मिलने पर जिला प्रशासन के अधिकारी ने पहल करने की बात की है.

आदिम जनजाति परिवारों की खराब स्थिति

लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर चपाल गांव में आदिम जनजाति परिवार के साथ-साथ दूसरे समुदाय के लोग भी रहते हैं. इन क्षेत्रों में विकास की किरण नहीं पहुंची है. लोगों को बुनियादी सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं. आदिम जनजाति परिवारों की हालत भी खराब है. सरकार कहती है कि आदिम जनजाति परिवार के घरों तक हम राशन पहुंचाते हैं. वास्तविकता यह है कि इन्हें 10 किलोमीटर दूर जंगली और पहाड़ी रास्ता तय कर राशन लाने के लिए जाना पड़ता है.

संवाददाता विक्रम कुमार चौहान की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

इलाके में रास्ते की हालत काफी खराब है. जंगली जानवरों का खतरा हमेशा बना रहता है. लोहरदगा जिला में निवास करने वाले 663 आदिम जनजाति परिवारों की स्थिति बेहद दयनीय है. इन लोगों को आवास योजनाओं का भी पूरी तरह से लाभ नहीं मिल पाया है. पेयजल के नाम पर बरसाती नाले में बने हुए चुआं का पानी पीते हैं. बिजली की हालत ऐसी है कि तार टूट जाए तो खुद ही मरम्मत करनी पड़ती है. महीनों तक बिजली के दर्शन नहीं होते हैं. ना रोजगार के साधन हैं और ना ही दूसरी सुविधाएं. समस्या सुनने के लिए भी कोई नहीं आता.

चपाल गांव के लोगों की जिंदगी बेहद कठिन और चुनौतियों से गुजर रही है. नदी में पुल नहीं है. जो स्कूल है, उसमें शिक्षक पढ़ाने के लिए नहीं आते हैं. स्कूल में खिचड़ी ही स्कूल की पहचान बन कर रह गई है. बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है. स्थानीय लोगों के चेहरे बता रहे हैं कि उन्हें अपने भविष्य को लेकर कितनी चिंता है. जिला प्रशासन के अधिकारी उनके लिए पहल करने की बात कह रहे हैं. उप विकास आयुक्त कहते हैं कि उनके लिए योजना बनाकर धरातल पर उतारा जाएगा. उनकी समस्याओं को हल किया जाएगा. अब तो यह आने वाले वक्त में ही पता चलेगा कि इन बातों का प्रभाव जमीन पर कितना दिखाई देता है.

लोहरदगा जिले में पहाड़ी इलाकों के विकास को लेकर योजनाएं धरातल पर नजर नहीं आती हैं. लोगों की समस्याएं आज भी बनी हुई हैं. महीने तक बिजली के दर्शन नहीं होते हैं. सड़क की पुलिया, शिक्षा, स्वास्थ्य की स्थिति बेहद बदहाल है. यहां के लोगों की जिंदगी यहां की समस्याएं और भी कठिन बना रही हैं.

ये भी पढ़ें- ईटीवी भारत की खबर पर सीएम हेमंत सोरेन ने लिया संज्ञान, आदिम जनजाति युवक की नौकरी का रास्ता साफ

लोहरदगा के इस गांव में 'विकास' को पहुंचने के लिए नहीं मिला रास्ता, आदिम युग में जी रहे लोग

लातेहार में बदहाल आदिम जनजाति परिवार, सरकारी सुविधाओं का है इंतजार - Primitive Tribe in Latehar

लोहरदगा: जिले के जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले लोगों की जिंदगी काफी दयनीय है. इलाके में ना पीने के लिए पानी है, ना सड़क, ना राशन कार्ड है और ना ही अन्य बुनियादी सुविधाएं. उनकी इस कठिन जिंदगी को समझने के लिए, उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कोई नहीं जाता. लोहरदगा के पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाली आदिम जनजाति परिवारों की हालत भी काफी खराब है. सूचना मिलने पर जिला प्रशासन के अधिकारी ने पहल करने की बात की है.

आदिम जनजाति परिवारों की खराब स्थिति

लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर चपाल गांव में आदिम जनजाति परिवार के साथ-साथ दूसरे समुदाय के लोग भी रहते हैं. इन क्षेत्रों में विकास की किरण नहीं पहुंची है. लोगों को बुनियादी सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं. आदिम जनजाति परिवारों की हालत भी खराब है. सरकार कहती है कि आदिम जनजाति परिवार के घरों तक हम राशन पहुंचाते हैं. वास्तविकता यह है कि इन्हें 10 किलोमीटर दूर जंगली और पहाड़ी रास्ता तय कर राशन लाने के लिए जाना पड़ता है.

संवाददाता विक्रम कुमार चौहान की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

इलाके में रास्ते की हालत काफी खराब है. जंगली जानवरों का खतरा हमेशा बना रहता है. लोहरदगा जिला में निवास करने वाले 663 आदिम जनजाति परिवारों की स्थिति बेहद दयनीय है. इन लोगों को आवास योजनाओं का भी पूरी तरह से लाभ नहीं मिल पाया है. पेयजल के नाम पर बरसाती नाले में बने हुए चुआं का पानी पीते हैं. बिजली की हालत ऐसी है कि तार टूट जाए तो खुद ही मरम्मत करनी पड़ती है. महीनों तक बिजली के दर्शन नहीं होते हैं. ना रोजगार के साधन हैं और ना ही दूसरी सुविधाएं. समस्या सुनने के लिए भी कोई नहीं आता.

चपाल गांव के लोगों की जिंदगी बेहद कठिन और चुनौतियों से गुजर रही है. नदी में पुल नहीं है. जो स्कूल है, उसमें शिक्षक पढ़ाने के लिए नहीं आते हैं. स्कूल में खिचड़ी ही स्कूल की पहचान बन कर रह गई है. बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है. स्थानीय लोगों के चेहरे बता रहे हैं कि उन्हें अपने भविष्य को लेकर कितनी चिंता है. जिला प्रशासन के अधिकारी उनके लिए पहल करने की बात कह रहे हैं. उप विकास आयुक्त कहते हैं कि उनके लिए योजना बनाकर धरातल पर उतारा जाएगा. उनकी समस्याओं को हल किया जाएगा. अब तो यह आने वाले वक्त में ही पता चलेगा कि इन बातों का प्रभाव जमीन पर कितना दिखाई देता है.

लोहरदगा जिले में पहाड़ी इलाकों के विकास को लेकर योजनाएं धरातल पर नजर नहीं आती हैं. लोगों की समस्याएं आज भी बनी हुई हैं. महीने तक बिजली के दर्शन नहीं होते हैं. सड़क की पुलिया, शिक्षा, स्वास्थ्य की स्थिति बेहद बदहाल है. यहां के लोगों की जिंदगी यहां की समस्याएं और भी कठिन बना रही हैं.

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