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आजसू की मांग, फिर से लिखा जाए स्वाधीनता संग्राम का इतिहास, हूल क्रांति से की जाए शुरुआत - आजसू ने 1855 से भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास लिखने की मांग की

आजसू पार्टी ने देश के स्वाधीनता आंदलोन को फिर से लिखे जाने की मांग की है. आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत ने कहा कि 1855 में सिदो-कान्हू समेत हजारों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और शहीद हुए. उन्होंने कहा कि 1855 से भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास लिखा जाना चाहिए.

Ajsu demanded again write history of freedom struggle
जानकारी देते देवशरण भगत
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Published : Jun 30, 2020, 4:17 PM IST

रांची: झारखंड के प्रमुख राजनीतिक दल आजसू पार्टी ने देश के स्वाधीनता आंदोलन को फिर से लिखे जाने की मांग की है. पार्टी ने साफ तौर पर कहा कि स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत 1855 के संताल क्रांति से होनी चाहिए. आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत ने कहा कि भारतीय इतिहास में सिपाही विद्रोह को ही स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत माना जाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि 1855 में सिदो-कान्हू समेत हजारों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और शहीद हुए. उन्होंने कहा कि 1855 से भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास लिखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आंदोलन जल जंगल जमीन के लिए लड़ने के लिए समर्पित रहा साथ ही लोगों ने अपना पूरा जीवन अपनी मिट्टी के लिए समर्पित कर दिया.

देखें पूरी खबर
रिसर्च के बाद सिलेबस में किया जाए शामिलदेवशरण भगत ने कहा कि इसे लेकर बाकायदा रिसर्च होना चाहिए और हूल क्रांति की पढ़ाई सिलेबस में जुड़नी चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि मौजूदा दौर में नौजवान क्रांति की उन घटनाओं से प्रेरणा ले सकें, साथ ही उन शहीदों के प्रति सम्मान रख सकें. उन्होंने कहा कि हूल दिवस के आयोजन को महज एक आयोजन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, साथ ही उन्होंने कहा कि यह आज के दिन इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि देश आजाद हो चुका है और झारखंड भी अलग राज्य बन चुका है.


इसे भी पढे़ं:- रांची: हूल दिवस पर कांग्रेसी मंत्रियों ने सिद्धू कान्हू को दी श्रद्धांजलि, भाजपा पर लगाया राजनीति करने का आरोप


कितना साकार हुआ सपना इसकी हो समीक्षा
आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता ने कहा कि इसकी भी समीक्षा की जानी चाहिए कि जिन उद्देश्य के साथ झारखंड राज्य का गठन हुआ, वह कितने पूरे हुए. उन्होंने कहा कि मौजूदा कोरोना संक्रमण के दौर में जो तस्वीर उभर कर आयी उसमें यह साफ दिखा कि यहां के लोग बड़ी संख्या में पलायन करते हैं, इसलिए सरकार को इसे लेकर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए.


1855 में दी गई थी हूल क्रांति के नायकों को फांसी
दरअसल, 30 जून 1855 को झारखंड के मौजूदा संताल परगना के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह इलाके में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव समेत बड़ी संख्या में लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी. उन क्रांतिकारियों को फांसी से लटका दिया था. उन शहीदों की याद में भोगनाडीह में हर साल कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. हालांकि इस साल कोरोना संक्रमण के मद्देनजर कोई सरकारी आयोजन नहीं किया जा रहा है. यहां तक कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने आवास पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी, जबकि गवर्नर द्रौपदी मुर्मू ने भी राजभवन में संताल क्रांति के नायकों को श्रद्धा सुमन अर्पित की है.

रांची: झारखंड के प्रमुख राजनीतिक दल आजसू पार्टी ने देश के स्वाधीनता आंदोलन को फिर से लिखे जाने की मांग की है. पार्टी ने साफ तौर पर कहा कि स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत 1855 के संताल क्रांति से होनी चाहिए. आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत ने कहा कि भारतीय इतिहास में सिपाही विद्रोह को ही स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत माना जाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि 1855 में सिदो-कान्हू समेत हजारों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और शहीद हुए. उन्होंने कहा कि 1855 से भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास लिखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आंदोलन जल जंगल जमीन के लिए लड़ने के लिए समर्पित रहा साथ ही लोगों ने अपना पूरा जीवन अपनी मिट्टी के लिए समर्पित कर दिया.

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रिसर्च के बाद सिलेबस में किया जाए शामिलदेवशरण भगत ने कहा कि इसे लेकर बाकायदा रिसर्च होना चाहिए और हूल क्रांति की पढ़ाई सिलेबस में जुड़नी चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि मौजूदा दौर में नौजवान क्रांति की उन घटनाओं से प्रेरणा ले सकें, साथ ही उन शहीदों के प्रति सम्मान रख सकें. उन्होंने कहा कि हूल दिवस के आयोजन को महज एक आयोजन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, साथ ही उन्होंने कहा कि यह आज के दिन इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि देश आजाद हो चुका है और झारखंड भी अलग राज्य बन चुका है.


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कितना साकार हुआ सपना इसकी हो समीक्षा
आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता ने कहा कि इसकी भी समीक्षा की जानी चाहिए कि जिन उद्देश्य के साथ झारखंड राज्य का गठन हुआ, वह कितने पूरे हुए. उन्होंने कहा कि मौजूदा कोरोना संक्रमण के दौर में जो तस्वीर उभर कर आयी उसमें यह साफ दिखा कि यहां के लोग बड़ी संख्या में पलायन करते हैं, इसलिए सरकार को इसे लेकर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए.


1855 में दी गई थी हूल क्रांति के नायकों को फांसी
दरअसल, 30 जून 1855 को झारखंड के मौजूदा संताल परगना के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह इलाके में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव समेत बड़ी संख्या में लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी. उन क्रांतिकारियों को फांसी से लटका दिया था. उन शहीदों की याद में भोगनाडीह में हर साल कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. हालांकि इस साल कोरोना संक्रमण के मद्देनजर कोई सरकारी आयोजन नहीं किया जा रहा है. यहां तक कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने आवास पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी, जबकि गवर्नर द्रौपदी मुर्मू ने भी राजभवन में संताल क्रांति के नायकों को श्रद्धा सुमन अर्पित की है.

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